Bareillylive : डॉ ज्योति स्वरूप ने बरेली कॉलेज में शिक्षण के साथ ही खिलाड़ी के रूप में भी काफी नाम कमाया। वर्ष 1939 में दिल्ली ओलंपिक एसोसिएशन की साइकिल रेस में ज्योति स्वरूप ने भाग लिया था जिसमें सीनियर ग्रुप में फिल्म अभिनेता जानकी दास प्रथम आए थे। जबकि जूनियर ग्रुप में ज्योति स्वरूप प्रथम आए थे। जिसका वायसराय लॉर्ड लिन लिथ गो द्वारा सर्टिफिकेट भी उन्हें दिया गया था। वर्ष 1925 उनका जन्म शताब्दी वर्ष है जिस पर उनके पुत्र असित रंजन ने मानव सेवा क्लब के साथ मिलकर कार्यक्रम भी किया था। ज्योति स्वरूप ने मंद मधुर मुस्कान तथा कार्यक्षमता से नगर के शिक्षा जगत में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई। बरेली कॉलेज से सेवानिवृत होने के उपरांत भी उनकी छवि महाविद्यालय के वातावरण पर अमिट रही। आज भी डॉ ज्योति स्वरूप के नाम से कॉलेज में उनका स्मरण किया जाता है।

मेजर डॉक्टर ज्योति स्वरूप का जन्म 19 मई 1925 को सौदागरान निवासी सराफ महाशय श्याम सुंदर लाल= श्रीमती लीलावती के यहां हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती विद्यालय में हुई तथा माध्यमिक शिक्षा कुंवर दयाशंकर इंटर कॉलेज बरेली में हुई। तत्पश्चात उन्होंने बरेली कॉलेज से हिंदी और संस्कृत में एम ए किया किया और साहित्य रत्न की उपाधि भी प्राप्त की। उन्होंने अपना शोध प्रबंध हिंदी मे बाल साहित्य में पूर्ण किया था। उनका विवाह 7 दिसंबर वर्ष 1951 में श्रीमती सोमवती से हुआ। उनके एक पुत्र असित रंजन, पुत्री साधना एवं अर्चना हुई। डॉ ज्योति स्वरूप का निधन 30 जुलाई 2008 में हुआ था । उनकी पत्नी श्रीमती सोमवती का निधन भी 21 जनवरी 1999 में हुआ था। डॉ ज्योति स्वरूप वर्ष1951 से 1985 ई तक बरेली कॉलेज में एक बहुआयामी व्यक्तित्व लेकर कार्यरत रहे। बरेली कॉलेज में एक कुशल प्राध्यापक, कुशल संयोजन तथा कुशल अनुशासन के रूप में अपने सदैव यश अर्जित किया। बरेली कॉलेज जैसे महाविद्यालय की 34 वर्ष की सेवा में 8 वर्ष 1977 से 1985 तक विभाग का अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहे।

वर्ष 1956 में कमीशन द्वारा ज्योति स्वरूप एनसीसी ऑफिसर चुने गए थे। वर्ष 1973 में मेजर की उपाधि के साथ एन सी सी विभाग की सेवाओं से जुड़े। बरेली कॉलेज छात्रावास अनुशासक के रूप में भी 1976 तक वार्डन के पद पर रहे। बरेली कॉलेज की क्रीड़ा समिति के निरंतर 11 वर्ष 1965 से 1976 तक वह सदस्य रहे। क्रीड़ा सचिव के रूप में ज्योति स्वरूप अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर रहे। रोहिलखंड विश्वविद्यालय की क्रीड़ा समिति के भी वह सदस्य रहे। एक कुशल अनुशासक के रूप में वह 1968 से 1972 तक बरेली कॉलेज में प्रॉक्टर भी रहे। वर्ष 1973 से 1976 तक चीफ प्रॉक्टर के रूप में कॉलेज की अनुशासन व्यवस्था में सफलता पूर्वक सक्रिय सहयोग करते रहे।

इसी अवधि में मेजर ज्योति स्वरूप कॉलेज छात्रावास के वार्डन भी रहे। साहित्यिक क्षेत्र में ज्योति स्वरूप ने हिंदी प्रचारिणी सभा तथा हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना करके निरंतर 8 वर्ष तक अध्यक्ष पद पर रहे। इन दोनों संस्थाओं के उप संरक्षक रहकर भी अपने विश्वविद्यालय स्तर की अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन समिति में रहे। बरेली कॉलेज छात्र संघ के उप संरक्षक के रूप में पूर्ण अनुशासन एवं शांतिपूर्वक व्यवस्था बनाकर अपने 1972 से 1974 तक कार्य किया। रोहिलखंड विश्वविद्यालय की पाठ्यक्रम समिति एवं विदत्त परिषद के भी तीन सत्र तक सदस्य रहे। एम फिल पाठ्यक्रम समिति का भी उन्होंने संयोजन किया।

उक्त सभी व्यवस्थाओं के बीच रोहिलखंड विश्वविद्यालय की पाठ्य पुस्तक एकांगी संकलन, एकांगी कुंजिका का भी डॉ ज्योति स्वरूप ने संपादन किया। उनके अनेक लेख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। 27 विद्यार्थियों का शोध निर्देशन करके उन्हें पीएचडी की उपाधि से अलंकृत भी कराया। आकाशवाणी रामपुर से अनेक वार्ताएं भी उनकी प्रसारित हो चुकी हैं। कई विश्व विद्यालय की स्नातक एवं स्नातकोत्तर परीक्षाओं के परीक्षक होने के साथ- साथ शोध परीक्षक के रूप में भी डॉ ज्योति स्वरूप की प्रतिष्ठा रही। उत्तर प्रदेश एवं बिहार लोक सेवा आयोग के परीक्षक होने का भी डॉ ज्योति स्वरूप को गौरव प्राप्त हुआ। बरेली कॉलेज परिसर में अनेक संस्थाओं की परीक्षाओं का भी उन्होंने कुशलता पूर्वक संचालन कराया था। डॉ ज्योति स्वरूप बरेली से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र में भी रहे।

वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। उनके पुत्र डॉ असित रंजन ने अपने करियर की शुरुआत हार्टमैन कॉलेज में शिक्षक के रूप में की। तत्पश्चात उन्होंने बिशप कॉन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में बायोलॉजी लेक्चरर के रूप में 23 वर्ष अपनी सेवाएं दी। उसके बाद 2 वर्ष खंडेलवाल कॉलेज ऑफ साइंस एंड मैनेजमेंट बीएससी की कक्षाओं को पढ़ाया। डॉ असित रंजन ने रोहिलखंड विश्वविद्यालय में गेस्ट फैकेल्टी के रूप में बीएससी व एमएससी की कक्षाओं को भी पढाया। डॉ असित रंजन ने हिमाचल विश्वविद्यालय शिमला से योग में डिप्लोमा भी किया। अब वह अपने रामपुर गार्डन निवास पर योगा थेरेपी की कक्षाएं लेते हैं। ज्योति स्वरूप की बड़ी पुत्री साधना का विवाह हैदराबाद में डॉ सुभाष चंद्र के साथ हुआ है। छोटी पुत्री अर्चना का विवाह रामपुर में आशुतोष के साथ हुआ है। दोनों पुत्रियां गृहणी हैं।

साभार: निर्भय सक्सेना

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