राजेंद्र नगर स्थित शिव शक्ति मंदिर के प्रांगण में आयोजित श्री अध्यात्म संस्था के श्रीमद भागवत कथा सप्ताह के दूसरे दिन हरिद्वार से आए आचार्य ब्रजकिशोर महाराज ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की व्याख्या की। अर्थ की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ध्रुव महाराज ने वैभव की कामना की, लेकिन उससे पहले उन्होंने ईश्वर की भक्ति की। ईश्वर से मिलने वाला अर्थ-वैभव ही स्थाई रहता है और व्यक्ति को अहम नहीं होता।
परमात्मा की प्राप्ति के साधन बताते हुए ब्रजकिशोर महाराज ने कहा कि भगवान को पाने के तीन मार्ग हैं। ज्ञान के रास्ते को ज्ञानियों ने अपनाया और वैराग्य की राह वैरागियों ने चुनी। लेकिन प्रेम और सेवा से युक्त भक्ति मार्ग सबसे सरल है। मोह और ममता प्रेम नहीं, आसक्ति है और जहां आसक्ति है, वहां राग और द्वेष आ जाते हैं। हम राग और आसक्ति को ही प्रेम समझने लगते हैं, जबकि प्रेम तो निश्छल है। हमें मानव, जीव-जंतु, पेड़-पौधों, समस्त प्रकृति से प्रेम करना चाहिए।
गुरु-शिष्य परंपरा पर रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का उद्धरण देते हुए ब्रजकिशोर महाराज ने कहा कि शिष्य यदि निश्छल है तो उसे गुरु भी सदगुरु मिलेगा और शिष्य यदि कपटी है तो उसे गुरु भी कपटी मिलेगा। शिष्य में समर्पण होना चाहिए और जाति, धर्म, संप्रदाय सभी प्रकार के भेदभाव से रहित होने का नाम ही गुरु, सदगुरु या संत है। श्रीमद भागवत कथा 8 जनवरी तक रोजाना दोपहर दो से शाम पांच बजे तक चलेगी।
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