नई दिल्ली। केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों और सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता भी बेनतीजा रही। किसान कानून वापसी की मांग पर ही अड़े रहे। दोनों पक्षों के बीच अगले दौर की वार्ता आठ जनवरी को होगी।

तीनों कृषि कानूनों को वापस करने की मांग पर सरकार ने कहा कि एक संयुक्त कमेटी बना देते हैं जो तय करे कि इन तीनों कानूनों में क्या-क्या संशोधन किए जाने चाहिए। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सरकार के इस प्रस्ताव को किसान संगठनों ने असंतुष्टि जाहिर करते हुए सरकार के इस प्रस्ताव को नकार दिया।

गौरतलब है कि किसान संगठन सितंबर में संसद द्वारा पारित तीनों कृषि कानूनों को लगातार निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार का कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलिए की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे। दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का सुरक्षा कवच और मंडियां खत्म हो जाएंगी तथा खेती बड़े कारपोरेट समूहों के हाथ में चली जाएगी।

सातवें दौर की वार्ता से पहले भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि उम्मीद है कि सरकार बात मान ले। अगर मांगें पूरी नहीं होती तो आंदोलन चलेगा। उन्होंने कहा कि कानून वापस हों, एमएसपी पर कानून बने, स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू हो। हमें बिन्दुवार वार्ता करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। विरोध के दौरान अब तक 60 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। हर 16 घंटे में एक किसान मर रहा है। इसका जवाब देना सरकार की जिम्मेदारी है।

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