आंँवला (बरेली)। तहसील क्षेत्र में किसान और राहगीर परेशान हैं। कारण हैं आवारा पशु। या तो ये सड़कों पर इधर-उधर घूमते रहते हैं। आंवला नगर में ये कहीं जाम का कारण बनते हैं तो कभी लोगों के चोटिल होने का। गांवों में किसान इनसे आतंकित हैं। ये आवारा पशु खेतों में घुसकर फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। इससे किसान को भारी क्षति होती है। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है।
बता दें कि प्रदेश सरकार ने फरमान जारी किया था कि 10 जनवरी तक बेसहारा पशुओं को बाडे़ के अंदर कर दिया जाये। आंवला क्षेत्र की स्थिति में इसका कोई असर होता नहीं दिखाई दे रहा है। यहां बेसहारा गौवंश सड़कों पर घूमता रहता है। गौरतलब यह भी है कि सरकार द्वारा प्रत्येक गांव, नगर और शहर में इनके लिए कान्हा योजना के तहत गौशाला निर्माण हेतु धनराशि आंवटित करने का प्रावधान है।
भमोरा के किसान बाबू राम श्रीवास्तव कहते हैं कि उनके पास 12 बीघा जमीन है। परिवार का कोई न कोई सदस्य प्रत्येक समय खेत पर मौजूद रहकर अपनी फसलों की रखवाली कर रहा है। यहींं के किसान सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि इन बेसहारा पशुओं से अचाव हेतु अपने खेत के चारों ओर तारकसी कर दी है। फिर भी फसलों को यह पशु नुकसान पहुंचा देते है, कहीं कोई सुनने वाला नहीं है।
नगरिया सतन के प्रधान पप्पू यादव कहते है कि इन बेसहारा पशुओं के आतंक से किसान बहुत परेशान है। रात-रात भर जाग कर अपनी फसलों की रखवाली कर रहा है। जरा सी चूक होने पर यह फसलों को भारी नुकसान पहुंचा जाते है।
भाकियू नेता शिशुपाल िंसंह कहते है कि वर्तमान केन्द्र व प्रदेश सरकार गौ गंगा व किसान के नाम पर सत्ता में आयी, परन्तु इन बेसरहा गौवंशीय पशुओं का कहीं कोई इंतजाम नहीं किया। सत्ता में आते ही यह अपने वायदे भूल गये। बेचारा किसान रात-रात भी कड़ाके की सर्दी में जागकर अपनी फसलों की रखवाली कर रहा है। इस कारण बहुत से किसान बीमार भी हो जाते हैं। कहीं कोई सुनने वाला नहीं है।
आवंला नगर से एक किलो मीटर की दूरी पर अलीगंज मार्ग पर एक सैकडो साल पुरानी गौशाला है जो कि जीर्ण-शीण अवस्था में है। इसमें कुछ गायें हैं। गौशाला महंत संतोष दास की देखरेख में संचालित है। महंत कुंभ गये हुए हैं। इस दौरान यहां मौजूद, नरेश, बलवीर, जागनराम आदि ने बताया कि इस गौशाला के नाम 35 बीघा जमीन है जो कि बंटाई पर है। जमीन में सिंचाई का सांधन न होने तथा बंदरों के आतंक के चलते भूमि में अपेक्षाकृत पैदावार बहुत कम होती है। आसपास के क्षेत्र की मदद से जैसे तैसे कुछ गायों को यहां पाला पोसा जा रहा है। जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते गौशाला जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। यदि सरकार इस ओर ध्यान दे तो यहां पर बेसहारा गौवंशीय पशुओं की देख-रेख हो सकती है।
वहीं पालिका चेयरमैन ने बताया कि प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप अपने प्रस्तव बनाकर भेज दिया है जिसमें एक करोड़ 60 लाख का बजट बताते हुए क्षेत्र में कान्हा गौशाला बनाए जाने की मांग की है।
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