बरेली। होलिकोत्सव अर्थात होलिका दहन आज होगा। होलिका दहन आज रात 11 बजकर 14 मिनट से रात साढ़े 12 बजे तक के बीच किया जाएगा। इस बार होलिका पूजन से लेकर दहन तक सर्वार्थ सिद्धि योग में किया जाएगा। सर्वार्थ सिद्धि योग आज प्रातः 7:14 बज़े से आगामी अर्थात 25 मार्च को सूर्योदय तक रहेगा।
बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा बताते हैं कि धर्मसिंधु एवं देशाचार, कुलाचार के अनुसार स्नान-दान-व्रतदि की पूर्वफागुनी नक्षत्रयुता फाल्गुनी पूर्णिमा को होलिका दहन ग्राह्म है।
आज हुताशिनी फाल्गुनी पूर्णिमा है, हुताशीनी जयंती एवं चैतन्य महाप्रभु का जन्मोत्सव भी मनाया जाएगा। होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक का समापन भी हो जाएगा।
होलिका पूजन मुहूर्त:-
24 मार्च रविवार को माध्यन्ह काल में(माध्यन्ह काल 12:28 बज़े तक एवं अपराह्न 1:57 बज़े से 3:35 बज़े तक .
होलिका दहन मुहूर्त:-
दिनांक 24 मार्च 2024 को रात्रि 11:14 बजे से (दिनांक 25 मार्च 2024 को ) अर्द्ध रात्रि 12:33 बजे तक
विशेष:- वायु प्रदूषण एवं संक्रमण रोकने के लिए कुछ मात्रा कपूर एवं गुग्गल की प्रज्ज्वलित होली में अवश्य डालें।
इस वर्ष पूर्णिमा दिनांक 24 मार्च 2024, रविवार को प्रातः 9:56 बज़े से आरम्भ होकर 25 मार्च सोमवार को माध्यन्ह 12:30 बज़े तक रहेगी चूंकि प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा केवल 24 मार्च को ही है इसलिए होलिका दहन दिनांक 24 मार्च 2024, रविवार को ही किया जाना शास्त्रसम्मत है परन्तु उस दिन भद्रा प्रातः 9:56 बज़े से आरम्भ होकर रात्रि 11:14 बज़े तक रहेगी, शास्त्र के अनुसार यदि भद्रा अर्धरात्रि से पूर्व ही समाप्त हो जाती है तो भद्रा के उपरांत अर्धरात्रि तक होलिका दहन किया जाना चाहिए
सामग्री:- एक लोटा जल,माला,रोली,चावल,गन्ध, पुष्प,कच्चा सूत, गुड़,सबूत हल्दी,मूंग,बताशे,गुलाल,नारियल,गेहूं की बालियाँ आदि।
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके बैठकर होलिका का पूजन करना चाहिए। बड़गुल्ले की बनी चार मालाएं इनमें से एक पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी माला अपने घर परिवार की होलिका को समर्पित कर कच्चे सूत की तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुएं होली को समर्पित करें। गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें।
पूजन के बाद जल से अर्ध्य दे तथा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में होलिका में अग्नि प्रज्ज्वलित करें। होली की अग्नि में सेंक कर लाये गए धान्यों को खाएं, इसके खाने से निरोगी रहने की मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि तथा राख को अगले दिन प्रातः काल घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है तथा इस राख को शरीर पर लेपन करना भी कल्याणकारी रहता है।
किसी ग्रह की पीड़ा होने पर होलिका दहन के समय देशी घी में भिगोकर दो लोंग के जोड़े,एक बताशा और एक पान के पत्ते पर रखकर अर्पित करना चाहिए।अगले दिन होली की राख लाकर अपने शरीर पर तेल की तरह लगाकर एक घंटे बाद हल्के गर्म पानी से स्नान करना चाहिए।ग्रह पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
होलिका दहन से पूर्व नवग्रह की लकड़ियां एकत्रित करके होली की परिक्रमा करते हुए क्रमानुसार उन्हें होलिका में डाल देना चाहिए।परिक्रमा करते समय संबंधित ग्रह का मंत्र जाप भी करते रहना चाहिए।इस प्रकार सभी ग्रह की लकड़ियों को होलिका में डाल देना चाहिए।
विशेष:- जिन नवजात शिशुओं की पहली होली होती है उन बच्चों की ढूंढ पूजा अवश्य कराएं।
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