लखनऊ/बरेली। उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, अयोध्या, बरेली समेत 14 बड़े शहरों का आने वाले 25-30 वर्षों की जरूरतों के हिसाब से मास्टर प्लान बनाकर विकास किया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन बड़े शहरों में बढ़ती आबादी, बढ़ते मकानों, कारोबारी/औद्योगिक आवश्यकताओं, बढ़ते ट्रैफिक लोड और भविष्य की जरूरतों का संज्ञान लेते हुए विकास का खाका खींचने को कहा है। अब इन शहरों का नया सिटी डेवलपमेंट प्लान यानी मास्टर प्लान बनेगा। कुछ शहरों के मास्टर प्लान में संशोधन भी किया जाएगा।
इन बड़े शहरों का सिटी डेवलपमेंट प्लान तैयार कराने के लिए आवास विभाग में कंसल्टेंट का चयन करने की कवायद शुरू हो गई है। नया मास्टर प्लान जीआईएस आधारित होगा। सचिव आवास की अध्यक्षता में बनी समिति मास्टर प्लान में जरूरत के हिसाब से नई चीजें जोड़ने के लिए प्रस्ताव तैयार करेगी।
सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि नए तैयार किए जाने वाले मास्टर प्लान में ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व वाले स्थलों के सुंरीकरण एवं संरक्षण के कार्य कराने तथा तालाबों, जलाशयों, झीलों आदि को शामिल करने के साथ ही वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, रिजर्व फॉरेस्ट, पर्यावरण, वन और अन्य संरक्षित क्षेत्रों का विशेष ध्यान रखा जाएगा।
लखनऊ, कानपुर, बरेली, मुरादाबाद, चित्रकूट, गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज, झांसी, आगरा, मथुरा, मेरठ, सहारनपुर, गौतमबुद्धनगर (नोएडा)।
नए मास्टर प्लान में इन शहरों की ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण एवं सुंदरीकरण का कार्य भी किया जाएगा। इससे नई पीढ़ी आपनी समृद्ध विरासत के बारे में जानेगी तथा पर्यटन कारोबार और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
आवास विभाग के अधिकारियों के अनुसार, नए मास्टर प्लान में नए सिरे से शहरों के तमाम क्षेत्रों का भू उपयोग निर्धारित होगा। इसके लिए जरूरी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। नदियों, हवाई अड्डा, बस स्टैंड, सैन्य क्षेत्रों सहित तमाम चीजों को मास्टर प्लान में प्रदर्शित किया जाएगा। वर्तमान जरूरतों के हिसाब से नए औद्योगिक क्षेत्र, बस अड्डे, मास्टर प्लान रोड तथा वाटर वर्क्स व एसटीपी, कूड़ा निस्तारण केंद्र सहित अन्य तमाम चीजें भी मास्टर प्लान में चिह्नित होंगी।
मास्टर प्लान में क्षेत्रीय विकास की योजनाओं को भी शामिल किया जाएएगा ताकि संबंधित शहरों को आने वाले दिनों में किसी तरह की दिक्कत न हो। इन शहरों में सेना की फायरिंग रेंज को खतरनाक क्षेत्र घोषित किया जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि शहरों में जिन लोगों ने लैंड यूज के विरुद्ध निमार्ण कराएं हैं, उनका समायोजन मास्टर प्लान में शासनादेश के मुताबिक ही हो पाएगा।
लखनऊ और बरेली में कुछ इलाकों में पिछले तीन-साढ़े तीन दशकों में कराई गए कई विकास कार्यों में दूरदर्शिता का अभाव साफ दिखता है। लखनऊ में रिंग रोड बनाए जाने के करीब दो दशक बाद ही एक और रिंग रोड का प्रस्ताव पास करना पड़ा। यहां कपूरथला से जानकीपुरम् के बीच इस तरह से विकास हुआ है मानो शहर का दम ही घुट गया हो। बरेली में चौपाला चौराहे पर फ्लाईओवर बनाए जाने के एक दशक से भी कम समय के अंदर एक और बड़ा फ्लाईओवर बनाए जाने की जरूरत महसूस होने लगी और अंततः वाई शेप फ्लाईओवर बनाना पड़ रहा है जिसकी एक ब्रांच पुराने फ्लाईओवर से भी जोड़ी जानी है। बरेली में ही शहरीकरण का विस्तार चारों दिशाओं में हो रहा है पर शहर में ट्रैफिक का लोड करने के लिए बड़ा बाईपास के नाम से पश्चिम दिशा से उत्तर की तरफ होते हुए एक मार्ग को पूर्वी छोर पर राजमार्ग संख्या 24 से जोड़ा गया। इससे शहर में एक तरफ का ट्रैफिक दबाव तो कम हो गया पर किला, चौपला से लेकर लालफाटक तक हैवी ट्रैफिक बदस्तूर बना रहा। हालांकि अब फतेहगंज पश्चिम से चौबारी-रामगंगा होते हुए रिंग रोड के नाम से एक नया मार्ग इन्वर्टीज यूनिवर्सिटी तक बनाया जाना प्रस्तावित है। यानी ये नया मार्ग बड़े बाइपास से जुड़कर रिंग रोड का स्वरूप लेगा। अगर नगर नियोजन से जुड़े अधिकारियों ने दूरदर्शिता दिखाई होती तो यह कार्य बड़े बाईपास से निर्माण के समय ही पूरा कर लिया गया होता।
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