बरेली। 22 फरवरी 1994 को भारतीय संसद में एक संकल्प लिया गया था जोकि था कि “जम्मू कश्मीर और लद्धाख की जो भी भूमि पाकिस्तान और चीन के पास है उसपर भारत का अधिकार है और उसकी एक-एक इंच हम लेकर रहेंगे।” यह संकल्प रविवार को बरेली में दोहराया गया। इसके लिए विचार गोष्ठी व संकल्प दिवस का आयोजन बरेली स्थित Trounce Language Center बरेली में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र, रूहेलखंड द्वारा किया गया ।
मुख्य वक्ता Asian Eurasian ह्यूमन राइट फ़ोरम की रिसर्च स्कोलर डॉ निधि बहुगुणा रहीं, जो कि Occupied Territories of Bharat क़िताब की सहलेखिका हैं।
उन्होंने बताया कि 13550 हेक्टेयर भूमि मीरपुर मुज्जफराबाद POJ के नाम से, 70000 हेक्टेयर भूमि गिलगिट बलीचिस्तान के नाम से क्षेत्र पाकिस्तान के क़ब्ज़े में और 36000 हेक्टेयर भूमि अक्षय चिन्ह के नाम से, 5180 हेक्टेयर भूमि शक्शगम वैली के नाम से चाइना ने दबा रखी है। इसके अलाबा मिन्सर (तिब्बत) जोकि एक भारतीय इनक्लेव है और एक वक़्त में कैलाश मानसरोवर को सबसे ज्यादा टैक्स देने वाला क्षेत्र रहा है, वो भी चाइना के क़ब्ज़े में है।
एक समय में किशन गंगा में सोने के पार्टीकल मिला करते थे। इतना पवित्र स्थान आज हमारे पास नहीं है । वहां के लोग बेहद परेशान हैं और भारत से जुड़ना चाहते हैं । पाकिस्तान के कभी भी 4 टुकड़े हो सकते है । कश्मीर में 24 सीटें हैं, अभी जनमत संग्रह हो तो सब इधर ही रहना चाहेंगे। उनहोंने ये भी बताया कि गिलगित बलिस्तान एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी सीमाएँ 5 देशों से जुडती है और इस क्षेत्र के द्वारा यूरोप तक सडक मार्ग से जाया जा सकता है। प्राचीन काल में इसी मार्ग से भारत का ट्रेड होता था।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार महेन्द्र मनुज जी ने कहा कि वो सारे इलाका वर्फ़ से ढका रहता है हमे यहां से इतना अंदाज़ा नहीं लग पाता, पर वहां के लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं। हमें उनके पक्ष में आबाज उठाना होगी जैसे अभी डोकलाम में उठायी सोशल मीडिया की सहायता से सबको जागरूक करना होगा । चाइना को अब हमसे व्यापार करना है, इसीलिए वो हम पर भौगोलिक हमला नहीं करेगा।
अंत मे संस्थान के निदेशक अनुज गुप्ता ने अतिथियों को धन्यवाद दिया और कहा कि हमे इस विषय मे और बहुत सी चीज़ें व बातें जाननी हैं और सीखनी हैं।