बबलू चन्द्रा, नैनीताल। रक्षाबंधन पर पिछले दो दिन खगोलीय घटनाओं के लिहाज से बेहद खास रहे। सौर मंडल का विशाल ग्रह बृहस्पति और गले में ख़ूबसूरत वलयों का हार लिये दूसरा सबसे बड़ा ग्रह शनि चांद के करीब से होकर गुजर गए। ये दोनों इतने विशाल ग्रह हैं कि देवगुरु में हमारी पृथ्वी के आकार के 1300 व शनि में 700 पिंड समा सकते हैं।
प्राचीन काल में ही विशाल ग्रह की पहचान कर देवगुरु बृहस्पति का नाम दिया गया। तैत्तरीय ब्राह्रण में उल्लेख है- ब्रह्स्पतिः प्रथमः जायमानः, तिष्यनः नक्षत्रमभिसँबभूव (जब बृहस्पति पहले प्रकट हुआ तब वह पुष्य नक्षत्र के समीप था।) भारत की पौराणिक कथाओं में बृहस्पति को देवताओं के गुरु यानी देवगुरु का सम्मान दिया गया है, तो रोमनों ने इस ग्रह को अपने सबसे बड़े देवता जूपिटर का नाम दिया है। गैलीलियो ने इसके चार चन्द्रमाओं को सन् 1610 में ही देख लिया था, जिनके नाम ग्यानीमेड, आईओ, यूरोपा और काल्लीस्टो हैं। ग्यानीमेड चांद बुध ग्रह से भी बड़ा है। अब तक इसके 79 चांद खोजे जा चुके हैं और 53 का नामकरण किया जा चुका है।
शनि जिसे प्रकृति ने रंगबिरंगे मनोहारी वलय का वरदान देकर सबसे खूबसूरत बनाया है, उसे पौराणिक ग्रन्थों और कथाओं में अशुभ बताया गया है। पाश्चात्य ज्योतिष में शनि को सैटर्न कहा गया जो जुपिटर के पिता हैं। रोमन लोग सैटर्न को कृषि का देवता मानते थे। 30 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा पूरी करने के कारण प्राचीन काल में इसे शनै:चर (बहुत धीरे चलने वाला) नाम दिया गया था, जिसे बाद मे अन्धविश्वसियों ने सनीचर बना दिया। शनि के हार, वलय, कंकड़, कण, ठोस व द्रव को लेकर खगोलविदों में हमेशा एक अद्भुत जिज्ञासा रही है। खगोलविद् जिओवान्नी ने वलयों का विभाजन तथा बोर्बोव ने वलयों की मोटाई-चौड़ाई का अनुमान लगाकर शनि के अरबों लघुचन्द्रों की कल्पना का खंडन करते हुए चौड़ाई का अनुमान लगा इसे 70 हजार किमी के लगभग बताया था।
1997 में शनि की ओर भेजे गए *कासिसिनी- हाइगेन्स यान ने वर्ष 2005 में शनि के वलयों के पास शनि के छोटे से चांद हैपरिओन के पास पहुंचकर कई तस्वीरें धरती पर भेजीं, जिससे अब हम जानते हैं कि शनि के चारों ओर लगभग तीन प्रमुख सेकेंड्री वलय हैं। इनका व्यास लगभग 2,70,000 किमी है और मोटाई करीब 100 मीटर है जो 70 हजार किमी की ऊंचाई से शुरू होकर 140 हजार किमी तक फैले हैं। ब्रिटिश भौतिकवेत्ता जेम्स क्लार्क मैक्सवेल बता चुके हैं कि शनि के वलयों को ठोस या द्रवरूप संयोजन गणित रूप से वलय नहीं बना सकते। उन्होंने वलयों कणो, ठोस व द्रवरूप के प्रत्येक कण को एक चंद्र बताया है। पर अब तक वलयों को छोड़ शनि के 82 उपग्रहों को खोजे जा चुके है, जिनमे 29 चन्द्रमाओं की पुष्टि होनी अभी बाकी है। शनि का टाइटन उपग्रह हमारे सौर मंडल का दूसरा सबसे बड़ा चांद है टाइटन उपग्रह की विशेषता यह है कि इसमें वायुमंडल भी है जिसमें 90 प्रतिशत नाइट्रोजन और बाकी मीथेन गैस है।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डॉ शशिभूषण पांडेय के अनुसार 21 अगस्त को शनि चन्द्रमा के पास 3.7 डिग्री की दूरी व रविवार को ब्रह्स्पति 4 डिग्री करीब आ पहुंचा था, जिसे नग्न आंखों से बिना झिलमिल करते हुए तारे की तरह देखा जा सका। अच्छी दूरबीन की सहायता से शनि के वलय रिंग व चांद के करीब बृहस्पति के उपग्रहों को भी देखा गया।
करीब 20 साल से खगोलीय घटनाओं पर रिपोर्टिंग करते आ रहे वरिष्ठ पत्रकार रमेश चंद्रा ने बताया कि आज के दौर में अंतरिक्ष को लेकर बढ़ती जिज्ञासा ने खगोलीय घटनाओं के महत्व को बढ़ा दिया है। सन् 1609 ई. में केपलर के ग्रहों की गतियों के नियम प्रकाशित होने के साथ ही महान खगोल वैज्ञानिक गैलीलियो गैलीलेई के महत्वपूर्ण दूरबीन का अविष्कार व आकाश के पिंडो का अवलोकन कर चांद की सतह के खड्ड, पहाड़ और सूर्य के काले धब्बों को देख लिया था। ब्रह्स्पति की ओर देखकर उसके उपग्रहों को पहचाना और बता दिया था कि जिस तरह चांद पृथ्वी की परिक्रमा करता है उसी तरह गुरु के चारों ओर भी उपग्रह परिक्रमा कर रहे हैं। आज हम खगोल विज्ञानियों के अथक मेहनत, शोधों से नित नई खोजों से ब्रह्मण्ड की नई जानकारी प्राप्त करते हुए काल्पनिकता के पर्दे मे छुपे अंतरिक्ष रहस्यों को समझ रहे हैं।
(छायाचित्र : सभी फ़ोटो एस्ट्रोफोटोग्राफर राजीव दुबे ने रविवार की रात नैनीताल से अपने कैमरे में कैद कीं।)
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