बरेली। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ सुरेश बाबू मिश्रा ने कहा कि 19 दिसंबर 1927 को आज के ही दिन काकोरी कांड के अमर क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां एवं ठाकुर रोशन सिंह हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे। उनके इस बलिदान ने लोगों के दिलों में सुलग रही आजादी की आग को और भड़का दिया। उनकी यह अमर शहादत देश के युवाओं के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत रहेगी।

डॉ मिश्रा काकोरी कांड की अमर क्रांतिकारी शहीदों की स्मृति में शनिवार को आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद की बैठक में बोल रहे थे। प्रांतीय संरक्षक डॉ एनएल शर्मा ने कहा कि देश में क्रांति के लिए हथियारों की आवश्यकता थी, इसलिए सरकारी खजाने को लूटने का निर्णय लिया गया। सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन से खजाना ले जाया जाता था। चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में इस खजाने को लूटने की योजना बनाई गई। राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी इस योजना में शामिल थे। सरकारी खजाने की लूट की घटना 9 अगस्त 1925 में ककोरी स्टेशन के पास अंजाम दी गई। इसे इतिहास में काकोरी कांड नाम से जाना जाता है। दिनदहाड़े सरकारी खजाने की लूट की इस घटना से अंग्रेजी शासन में हड़कंप मच गया। देशभर में क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज हो गई। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी  समेत 22 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। विभिन्न धाराओं के तहत उन पर मुकदमा चला। 18 महीने तक चले मुकदमे के बाद राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई।

प्रांतीय संयुक्त मंत्री रोहित राकेश ने बताया 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई। जब रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी के लिए बुलावा आया तो वह ‘वंदे मातरम’ और  ‘भारत माता’ की जय कहते हुए तुरंत चल दिए। फांसी के तख्ते पर खड़े होकर उन्होंने  कहा- मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हू। फिर उन्होंने एक शेर पढ़ा- अब न अहले बुलबुले हैं और अरमानों की भीड़ है,  एक मिट जाने की हसरत अब दिले में बिस्मिल में है।

बैठक का संचालन रोहित राकेश ने किया।बैठक में इंद्रदेव त्रिवेदी, डॉ एसपी मौर्य, डॉ नितिन सेठी, डॉ रवि प्रकाश शर्मा, दीपांकर गुप्त,प्रमोद अग्रवाल आदि उपस्थित रहे।

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