नयी दिल्ली। फसलों का शत्रु माने जाने वाले टिड्डी दल को देशी उपायों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये टिड्डियां नीम, धतूरा और आक के पौधों या पत्तों को नहीं खाते। ये पौधे औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और स्वाद में कड़वे और विषैले होते हैं। नीम धतूरा और आक के घोल को फसलों पर छिड़क कर टिड्डी दल से फसलों को बचाया जा सकता है। इसके अलावा भी अन्य देशी उपाय हैं जिनसे टिड्डी को नियंत्रित किया जा सकता है।
धतुरा, अकवन और नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकर यदि फसल पर छिड़काव किया जाये तो टिड्डी दल उस खेत में नहीं बैठता। इससे फसलों का नुकसान से बचाया जा सकता है। बिहार सरकार के कृषि विभाग ने टिड्डी दल के संभावित हमले को ध्यान में रखकर किसानों को इसके नियंत्रण के कुछ देसी उपाय सुझाये हैं। सुझाव में कहा गया है कि किसान समय से पहले धतुरा, अकवन और नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर रख लें और जरुरत होने पर उसका फसलों पर छिड़काव करें। धतूरा के फल का बीज बहुत ज्यादा नशीला होता है और इसके फूल देवताओं पर चढ़ाये जाते हैं।
आकवन भी जहरीला होता है और इसके पत्ते काफी मोटे होते हैं जिन्हें पशु भी खाना पसंद नहीं करते हैं । घरेलू नुस्खे से उपचार में इसके पत्ते का उपयोग किया जाता है । धतुरा और अकवन के पौधे गांवों में बहुतायत से पाये जाते हैं। नीम का औषधीय गुण तो जगजाहिर है। सुझाव में कहा गया है कि खरपतवार और घास को जलाकर धुंआ किये जाने से भी टिड्डी दल भाग जाता है।
ढोल, नगाड़ों और शोर मचाने से तो टिड्डी दल स्थान बदलने को मजबूर होता ही है। टिड्डी हमले के दौरान यदि पटाखे चलायें जायें तो यह प्रभावशाली साबित होता है और वे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि प्रौद्योगिकी सूचना केन्द्र के मुख्य तकनीकी अधिकारी हरीश कुमार ने बताया कि टिड्डी के बच्चों को गहरे गड्ढे खोद कर भी रोका जा सकता है।
इसके छोटे बच्चे शुरुआत में उड़ नहीं पाते हैं बल्कि रेंगते हैं। इस दौरान लोगों का समूह उन्हें गड्ढे में गिरा सकता है जिससे वे निकल नहीं पाते हैं । इसके बाद उसे उसे मिट्टी से ढके दिया जाता है जिससे उनका प्रसार नहीं हो पाता है। डा कुमार के अनुसार टिड्डी के अंडों को तो खेतों की जुताई कर नष्ट किया जा सकता है।
मादा टिड्डी रात में गुच्छे में अंडे देती है जिनसे दस बारह दिन में बच्चे निकलते हैं। कई बार तो एक वर्ग मीटर में टिड्डी के एक हजार अंडों के गुच्छे पाये जाते हैं । मादा अपने जीवन काल में दो तीन बार अंडे देती हैं । एक गुच्छे में एक सौ से डेढ सौ अंडे होते हैं। आम तौर पर एक टिड्डे का वजन पांच से सात ग्राम होता है और यह हवा के अनुकूल होने पर एक दिन में एक सौ से डेढ सौ किलोमीटर तक की उड़ान भर सकता है।
उन्होंने बताया कि मक्का, बाजरा , मिर्च या सब्जियों के जिस खेत में टिड्डियों का झुंड बैठ गया उसमें सुबह सिर्फ डंठल ही नजर आती है । टिड्डियों का झुंड दिन में उड़न भरता है और रात में आराम करता है इसलिए प्रभावी नियंत्रण के लिए इस पर रात में कीटनाशकों का छिड़काव किया जाना चाहिये। ड्रोन और हेलीकाप्टर से भी कीटनाशकों का छिड़काव कर इस पर प्रभावी तरह से नियंत्रण पाया जा सकता है।
जैविक खेती के लिए जाने जानेवाले किसान पद्मश्री राजेन्द्र चौधरी ने जहरीले कीटनाशकों के छिड़काव से टिड्डी नियंत्रण के उपायों की आलोचना की है । उन्होंनें कहा है कि सरकार रासायनिक उपायों को छोड़ कर जैविक/गैर-रासायनिक उपायों के माध्यम से ही टिड्डियों को नियंत्रित करे। अगर सब जगह ऐसा न कर पाए तो कम से कम आबादी के पास सुरक्षित उपायों को ही अपनाया जाना चाहिए।
टिड्डी दल रात में झुंड में एक जगह स्थिर रहता है , ऐसे में इसे जाल से पकड़ कर इकट्ठा किया जा सकता है इनसे पौष्टिक मुर्गी आहार बना कर मोटी कमाई भी की जा सकती है । इसकी आर्थिक एवं भौतिक व्यवहार्यता स्थापित की जा चुकी है । एक रात में एक व्यक्ति 10 क्विंटल तक टिड्डी पकड़ सकता है।
मुर्गियाँ एवं बत्तखें टिड्डियों का भक्षण कर के इनके नियंत्रण में सहायक होती हैं । अलसी के तेल, मीठे सोडे, लहसून, जीरा एवं संतरे इत्यादि के अर्क के मिश्रण से भी 24 घंटे के अन्दर टिड्डियों को ख़त्म किया जा सकता है। इस मिश्रण के प्रयोग का फसलों पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता। फसलों पर चिकनी मिट्टी के घोल के छिड़काव करने से भी टिड्डी फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
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