शरद सक्सेना, आंवला। लोकसभा चुनाव 2019 के सात चरणों में से चार के लिए मतदान हो चुका है। इनमें बरेली मंडल की पांच में से चार सीटें- बरेली, आंवला, पीलीभीत और बदायूं शामिल हैं। इनमें से बरेली, आंवला और पीलीभीत को भाजपा का गढ़ माना जाता है। बरेली और पीलीभात सीटों पर भाजपा के दो कद्दावर नेता केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार और वरुण गांधी के लड़ने से जहां पलड़ा भाजपा के पक्ष में कुछ झुका हुआ माना जा रहा है, वहीं आंवला महागठबंधन की नाक का सवाल बन हुआ है।
आंवला में तीनों प्रमुख दलों के उम्मीदवारों भाजपा के धर्मेंद्र कुमार कश्यप, कांग्रेस के कुंवर सर्वराज सिंह और महागबठबंध की रुचिवीरा समेत सभी दावेदारों के भाग्य का फैसला मतदाताओं ने ईवीएम में बंद कर दिया है। मतदाताओं ने किस पर अपना भरोसा जताया है यह तो आगामी 23 मई को पता चलेगा पर अब तक प्राप्त रुझान बता रहे हैं कि भाजपा को महागठबंधन कड़ी टक्कर दे रहा है।
तीन दलों के महागठबंधन में आंवला सीट बसपा को मिली है। पिछले कई लोकसभा चुनावों में बसपा यहां तीसरे स्थान पर रहती आई है। क्षत्रिय बाहुल्य मानी जाने वाली इस सीट पर 2009 में बसपा के टिकट पर लड़े कुंवर सर्वराज सिंह भी हाथी को जीत नहीं दिला पाये थे और वह हांफते-हांफते तीसरे स्थान पर ही पहुंच पाया था। दूसरी और सपा ने लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। पिछले कुछ दशकों में आंवला भाजपा के गढ़ के रूप में उभरा है। भाजपा के अपने समय के कद्दावर नेता राजवीर सिंह यहां से तीन बार सांसद चुने गए जबकि मेनका गांधी और धर्मेंद्र कश्यप एक-एक बार सांसद चुने जा चुके हैं। भाजपा ने इस बार भी धर्मेंद्र कश्यप पर ही दांव लगाया है। गठबंधन प्रत्याशी के रूप में कुंवर सर्वराज सिंह भी यहां से एक बार लोकसभा जा चुके हैं। लेकिन, इस बार परिस्थितियां कुछ बदली-बदली सी नजर आ रही हैं।
महागठबंधन की प्रत्य़ाशी रुचिवीरा जो कि बिजनौर के एक राजघराने से ताल्लुक रखती हैं और वैश्य समाज से आती हैं, के प्रति वैश्य समाज का सहज झुकाव नजर आया। इसके अलावा बसपा और सपा के परम्परागत वोट भी महागठबंधन से नहीं छिटके हैं। यहां के मुस्लिम सपा के परंपरागत वोटर माने जाते रहे हैं जो कि महागठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में हाथी इस क्षेत्र में जमकर दौड़ा है। वहीं भाजपा के धर्मेंद्र कश्यप को अपने सजातीय वोटरों के अलावा भाजपा के परम्परागत वोट बैंक और नरेंद्र मोदी के नाम पर पूरा भरोसा है। क्षत्रिय समाज कुंवर सर्वराज सिंह के साथ खड़े नजर आया और कांग्रेस ने भी उनको टिकट देकर 35 साल का सूखा खत्म करने के लिए पूरी ताकत झोंकी।
खैर, ये तो प्रमुख दलों और स्थानीय राजनीति के जानकारों के दावे हैं पर 2014 के मुकाबले 2 प्रतिशत कम मतदान होना सबके लिए चिंता का विषय बना हुआ है। कम वोटिंग होना किसको और कितना प्रभावित करेगा यह तो 23 मई को ही पता चलेगा पर फिलहाल तो यही लग रहा है कि इस बार भाजपा की राह आसान नहीं है।
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