शरद सक्सेना, आंवला। बरेली और बदायूं जिलों में फैला आंवला लोकसभा क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। हालांकि बीच-बीच में जनसंघ, बीएलडी, जनता पार्टी और सपा को भी सफलता मिलती रही पर पिछले तीन आम चुनावों ने इस पर भाजपा का गढ़ होने की मुहर लगा दी है।
आंवला लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के सतीश चंद्र विजयी रहे। 1967 व 71 में कांग्रेस की ही साबित्री श्याम ने यहां कांग्रेस की विजय पताका फहरायी। 1984 में कांग्रेस के ही कल्याण सिंह सोलंकी यहां से संसद पहुंचे। कांग्रेस के इस सुनहरे दौर में भी आछूबाबू ने यहां से दो बार जीत दर्ज की। वे 1962 में जनसंघ जबकि 1977 में बीएलडी के टिकट पर चुनाव जीते। 1980 के आम चुनाव में जयपाल सिंह कश्यप जनता पार्टी के टिकट पर जीते। इसके बाद यह सीट भाजपा और सपा के बीच में आती-जाती रही।
भाजपा के राजवीर सिंह 1989, 91 व 98 में जबकि मेनका गांधी 2014 में यहां से संसद की चौखट पर पहुंचे। 2014 में बसपा से भाजपा में आए धर्मेंद्र कश्यप ने यहां जीत दर्ज की। भाजपा के वर्चस्व के इस दौर में भी 1996 व 1999 में सपा के कुंवर सर्वराज सिंह यहां से सांसद बने जबकि 2004 में उन्होनें भाजपा-जदयू गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर यह सीट जीती।
आंवला लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं- जनपद बरेली के आंवला, बिथरी चैनपुर और फरीदपुर जबकि बदायूं जनपद के दातागंज और शेखूपुर। वर्तमान में इन पाचों सीटों पर भाजपा का कब्जा है।
देश के पहले रक्षा राज्य मंत्री सतीश चंद्र, भाजपा किसान प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवीर सिंह और मेनका गांधी जैसे कद्द्वर नेताओं को संसद भेजने वाला आंवला लोकसभा क्षेत्र विकास के मामले में आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। बरेली लोकसभा क्षेत्र से पूरब और दक्षिण की ओर बढ़ते ही विकास का यह अंतर साफ नजर आने लगता है। हर सांसद ने चुनाव के समय विकास को लेकर बहुत से वादे किए पर ज्यादातर वादे हवा-हवाई ही साबित हुए। हाल यह है राजस्व के मामले में अग्रणी रेलवे स्टेशनों में शुमार आंवला रेलवे स्टेशन भी ऊंधता हुआ सा लगता है। उपेक्षा का आलम यह है कि यहां एक अदद फुटओवर ब्रिज तक नहीं है। यह संसदीय क्षेत्र सबसे ज्यादा चीनी मिल को लेकर छला गया है।
आंवला, बिथरी चैनपुर और दातागंज में चीनी मिल लगवाने का दावा यहां से चुने गए लगभग हर सांसद ने किया पर किसी ने भी इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। क्षेत्र में कृषि अनुसंधान केंद्र और राजकीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के वादे भी न जाने कितनी तहों के नीचे दफन हो चुके हैं। संसदीय क्षेत्र के चार विधानसभा क्षेत्र- बिथरी चैनपुर, शेखूपुर, दातागंज और फरीदपुर काफी पिछड़े हुए हैं। आंवला में विकास के नाम पर इफको के खाद कारखाने की स्थापना सांसद जयपाल सिंह कश्यप के प्रयासों से वर्ष 1986 में अवश्य हुई थी।
आंवला संसदीय क्षेत्र में शिक्षा के नाम पर भी बदहाली है। केवल आंवला और फरीदपुर में राजकीय डिग्री कॉलेज हैं। आंवला कॉलेज में बीकॉम, बीडए और एलएलबी की कक्षाओं की मांग लंबे अर्से से की जा रही है पर कोई सुनने वाला नहीं है।
विश्वविख्यात जैन तीर्थस्थाल अहिच्छत्र आंवला क्षेत्र में ही है तो पांडवकालीन धरोहर के रूप में लीलौर झील भी है। लगभग सभी नेताओं ने इन स्थानों को विकसित कर पर्यटन के नक्शे पर लाने के वादे किए पर यहां भी मतदाता छले गए। पांडवकालीन कहे जाने वाले रामनगर स्थित किले के भग्नावेशों की सुध लेने वाले भी कोई नहीं है। हाल यह है कि किसी भी दल के सांसद ने आंवला लोकसभा क्षेत्र के विकास को गंभीरता से नहीं लिया। कोई “ख्वाबबहादुर” साबित हुआ तो कोई “बातबहादुर”।
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