1.शुभ का चौघड़ियाः- प्रातः 8ः26 से प्रातः 9ः45 बजे तक।
2.चर, लाभ, अमृत का चौघड़ियाः- ’माध्यन्ह 12ः24 बजे से अपराह्न 4ः40बजे तक।
’प्रथम पहर की पूजाः- सांय 6ः16 बजे, सांय कालीन पूजा मुहूर्त लाभ के चौघड़िया में सांय 5ः10 बज़े से रात्रि 7ः45 बज़े तक
प्रथम प्रहर की पूजाः- सांय काल/प्रदोष काल 6ः08 बज़े
दूसरे प्रहर की पूजाः- रात्रि 09ः24 बजे
तीसरे प्रहर की पूजाः- रात्रि 12ः33 बजे (दिनांक 19 फरवरी 2023, रविवार)
चतुर्थ प्रहर की पूजाः- प्रातः काल 3ः41 बजे (दिनाँक 19 फरवरी 2023, रविवार)
महाशिवरात्रि व्रत निशीथ व्यापिनी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यदि दो दिन निशीथ व्यापिनी हो या दोनों ही दिन न हो तो पर्व दूसरे दिन मनाया जाएगा। यदि चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथ के एक भाग को और पहले दिन सम्पूर्ण भाग को व्याप्त करे तो यह पर्व पहले ही दिन मनाया जाएगा। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा के अनुसार इस बार यह पर्व 18 फरवरी शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन सांय 8ः03 बजे से पंचक प्रारम्भ होगी, जोकि 19 फरवरी प्रातः 6ः00बज़े तक रहेगी. महाशिवरात्रि का भोग व मोक्ष को प्राप्त कराने वाले दस मुख्य व्रतों जिन्हें ( 10 शैव व्रत) भी कहा जाता है, में सर्वोपरि है। महाशिवरात्रि पर्व का महत्व सभी पुराणों में मिलता है। ’गरुड़ पुराण, पदम पुराण, स्कन्द पुराण, शिव पुराण तथा अग्नि पुराण सभी में महाशिवरात्रि पर्व की महिमा का वर्णन मिलता है। कलियुग में यह व्रत थोड़े से ही परिश्रम साध्य होने पर भी महान पुण्य प्रदायक एवं सब पापों का नाश करने वाला होता है। फाल्गुन मास की शिवरात्रि को भगवान शिव सर्वप्रथम शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे, इसलिये भी इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।इस बार शुभ अति श्रेष्ठ इस योग में जिस कामना को मन में लेकर मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान संपन्न करेगा, वह मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी। इस लोक में जो चल अथवा अचल शिवलिंग हैं, उन सब में इस रात्रि को भगवान शिव की शक्ति का संचार होता है, इसलिए इस शिवरात्रि को महारात्रि कहा गया है। इस एक दिन उपवास रहते हुए ’शिवार्चन करने से साल भर के पापों से शुद्धि हो जाती है।
शिवरात्रि रहस्य :-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है। अतः वही समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलान होता है। इसलिए इन चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्टतम पदार्थ की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि रहस्य है।
पूजन सामग्रीः- शिव पूजन में प्रायः भयंकर वस्तुएं ही उपयोग होती हैं।जैसे– भांग, धतूरा, मदार आदि इसके अतिरिक्त रोली, मौली, चावल, दूध, चंदन, कपूर, विल्बपत्र, केसर, दूध, दही, शहद, शर्करा, खस, भांग, आक-धतूरा एवं इनके पुष्प, फल, गंगाजल, जनेऊ, इत्र, कुमकुम, पुष्पमाला, शमीपत्र, रत्न-आभूषण, परिमल द्रव्य, इलायची, लौंग, सुपारी, पान, दक्षिणा बैठने के लिए आसन आदि।
उद्दापन विधिः-रात्रि के समय द्वादश लिंगों एवं द्वादश कुम्भों से युक्त मंडल बनाना चाहिए, उस मंडल को दीपमालाओं से सुशोभित कर उसके बीच वेद मंत्रों के साथ कलश स्थापना करना चाहिए उसकी षोडशोपचार विधि से शिवजी की पूजा करें। पूजन के पश्चात 108 बिल्वपत्र द्वारा अग्नि में हवन करें फिर तिल, अक्षत, यव आदि वस्तुओं को लेकर दोगुना हवन करें, हवन के अंत मे शतरुद्री का जाप करें ऐसा करने से शिवजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं। प्रातः काल 12 ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार उद्धापन करने से शिवजी एवं माता पार्वती जी अत्यंत प्रसन्न होकर शुभफल प्रदान करते हैं।
पूजन विधान :- इस प्रातः काल दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर काले तिलों का उबटन लगाकर स्नान करें,फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प करें कि मैं महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प पाप के नाश के लिए,भोगों की प्राप्ति हेतु तथा अक्षय मोक्ष की प्राप्ति हेतु लेता हूँ। इसके पश्चात शिवजी का पूजन, गणेश, पार्वती, नंदी के साथ उनके प्रिय जैसे – आक, धतूरे के पुष्प, बेलपत्र, दूर्वा, कनेर, मौलश्री, तुलसी दल आदि के साथ षोडशोपचार द्वारा विधि-विधान से करें।इस दिन शिवजी पर पके आम्रफल चढ़ाना अधिक फलदायी होता है। पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन दान करें। शिव स्तोत्र, रुद्राष्टाध्यायी, शिवपुराण की कथा, शिवचालिसा का पाठ और रात्रि जागरण करें।दूसरे दिन व्रत का पारण करने के उपरांत प्रातः काल योग्य ब्राह्मणों द्वारा हवन और रुद्राभिषेक करके अन्न-जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
व्रतकथाः- शिवमहापुराण के अनुसार बहुत पहले अबुर्द देश में सूंदरसेन नामक निषाद राजा रहता था। वह एक बार जंगल मे अपने कुत्तों के साथ शिकार के लिए गया।पूरे दिन परिश्रम के बाद उसे कोई भी जानवर नहीं मिला।भूख प्यास से पीड़ित होकर वह रात्रि में जलाशय के तट पर एक वृक्ष के पास जा पहुंचा। जहां उसे शिवलिंग के दर्शन हुए।
अपने शरीर की रक्षा के लिए निषादराज ने वृक्ष की ओट ली लेकिन उनकी जानकारी के बिना कुछ पत्ते वृक्ष से टूरकर शिवलिंग पर गिर पड़े उसने उन पत्तों को हटाकर शिवलिंग के ऊपर स्थित धूलि को दूर करने के लिए जल से उस शिवलिंग को साफ किया।उसी समय शिवलिंग के पास ही उसके हाथ से एक बाण छूटकर पृथ्वी पर गिर गया। अतः घुटनों को भूमि पर टेककर एक हाथ से शिवलिंग को स्पर्श करते हुए उसने उस बाण को उठा लिया।
इस तरह राजा द्वारा रात्रि-जागरण, शिवलिंग का स्नान, स्पर्श और पूजन भी हो गया। प्रातः काल होने पर निषाद राजा अपने घर चला गया और पत्नी के द्वारा दिये गए भोजन को खाकर अपनी भूख मिटाई। यथोचित समय पर उसकी मृत्यु हुई तो यमराज के दूत उसको पाश में बांधकर यमलोक ले जाने लगे, तब शिवजी के गणों ने यमदूत से युद्द कर निषाद को पाश से मुक्त करा दिया।इस तरह वह निषाद अपने कुत्तो के साथ भगवान शिव के प्रिय गणों में शामिल हुआ।
चंद्रः- शिवलिंग पर दूध में काले तिल मिलाकर स्नान कराएं।
सूर्यः- आक पुष्प एवं विल्बपत्र से पूजा करें।
मंगलः- गिलोय बूटी के रसे अभिषेक करें।
बुधः- विधारा जड़ी के रस से अभिषेक करें।
गुरुः-दूध में हल्दी मिलाकर अभिषेक करें।
शुक्रः- पंचामृत शहद व घी से अभिषेक करें।
शनिः– गन्ने के रस व छाछ से स्नान कराएं।
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