विशाल गुप्ता, बरेली। 2017 के मेयर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के टिकट को लेकर कार्यकर्ताओं में जबर्दस्त असंतोष है। समर्पित कार्यकर्ता और नेता स्वयं को बेहद अपमानित महसूस कर रहे हैं। इसीलिए पार्टी विद डिफरेन्स के लेवल वाली पार्टी के उम्मीदवार जहां भितरघात से परेशान हैं, वहीं इससे सपाइयों की बांछें खिली हुईं हैं। समाजवादियों को अभी से अपनी जीत का रास्ता दिखने लगा है ।
भाजपा में 37 लोगों ने आवेदन किये थे, लेकिन टिकट मिला इंवर्टिस यूनिवर्सिटी के चांसलर उमेश गौतम को। हालांकि वह पार्टी में कुछ ही समय पहले इसी उद्देश्य से आये थे। खास बात ये कि इन आवेदकों में संघ की बैकग्राउण्ड से लेकर पार्टी के लिए तन-मन-धन से समर्पित रहने वाले तमाम कार्यकर्ता शामिल थे। उमेश के नाम टिकट की घोषणा होते ही ये सभी कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस करने लगे।
टिकट के दावेदार कहने लगे हैं कि पार्टी विद डिफरेन्स खत्म हो गयी। अब पार्टी विद नो डिफरेन्स हो गयी है। ‘‘ऐसा कोई सगा नहीं जिसे भाजपा ने ठगा नहीं’’..यही वाक्य बोलकर पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता अपना दर्द बयां कर रहे हैं।
बता दें कि बरेली से जिन खास लोगों ने टिकट के लिए आवेदन किये थे, उनमें दो प्रमुख हड्डी एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ डॉ. राघवेन्द्र शर्मा और डॉ. प्रमेन्द्र माहेश्वरी बीते कई साल से संघ और भाजपा के बड़े नेताओं के सम्पर्क में थे। डा. प्रमेन्द्र समाजसेवा के कई काम करके अपनी पहचान बनाये हुए थे। साथ ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी उनके निवास पर चाय पी चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी को बरेली एयरफोर्स स्टेशन पर रिसीव करने वाले लोगों वह शामिल थे। इससे उनके बढ़ते राजनीतिक कद का अंदाजा लगाया जा सकता है लेकिन सब धरा रह गया ।
इसी तरह भाजपा के आवेदकों में संघ समर्थित एकमात्र ब्राह्मण चेहरा थे डॉ. राघवेन्द्र शर्मा। एक बारगी उनका नाम लगभग तय हो गया था, लेकिन अंतिम क्षणों में फैसला उमेश के पक्ष में गया। इसके अलावा संजीव अग्रवाल, पिछले चुनाव में डा. तोमर के सामने भाजपा के प्रत्याशी रहे गुलशन आनन्द शामिल थे। गुलशन, बरेली से सात बार के सांसद और केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। लेकिन हर बार टिकट मनमर्जी से करा लेने वाले संतोष गंगवार की इस बार नहीं चली और पार्टी के फैसले के सामने उन्होंने भी घुटने टेक दिए ।
ऐसे में इस फैसले से जहां समर्पित कार्यकर्ताओं को निराशा हुई वहीं गौतम के टिकट प्राप्त करने के तरीकों को लेकर मीडिया में आयी खबरों से भाजपा का वोटर हताश हो गया। वोटर अब साफ कह रहे हैं कि हमें भाजपा ने खरीद नहीं लिया है। जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ हम भाजपा और मोदी जी के साथ थे, अब वह कारण खत्म हो गया।
बरेली लाइव ने जब भाजपा के वोटर्स से बात की तो अधिकांश ने अपनी हताशा व्यक्त की। बोले- देश को एकमात्र भाजपा से उम्मीद थी, वह भी नहीं रही। नाउ बीजेपी इज द पार्टी विद नो डिफरेन्स। अब पार्टी के बड़े नेताओं का चाल,चरित्र और चेहरा सब बदल चुका है। पार्टी के नेता तो मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं लेकिन गौतम की सभाओं में से अधिकांश की गैरहाजिरी नाराजगी को समझने के लिए काफी है।
अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को और ज्यादा नाराज करने का काम किया भाजपा के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष हर्षवर्धन आर्य के बयान ने। उन्होंने यहां तक कह डाला कि ‘‘भाजपा ने जिताऊ प्रत्याशी उतारा है, अभी तक कैडर के प्रत्याशी ही उतारे गये लेकिन वे हारते गये।’’ ऐसे में सवाल उठता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सभी नौ विधायक भाजपा से जीते हैं, क्या वे कैडर के नहीं हैं? हर्षवर्धन के बयान ने आग में घी काम किया है। उन्होंने डैमेज कण्ट्रोल की जगह असंतोष को और भड़काने का काम किया है।
बरेली लाइव से बातचीत के दौरान एक बड़े नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा- कि सीधे तौर पर हर उस कार्यकर्ता और वोटर का अपमान है, जो निश्छल भाव से भाजपा का समर्थक था ।
जिन उमेश गौतम को हषवर्धन आर्य जिताऊ उम्मीदवार बता रहे हैं आइये उनके राजनीतिक सफर पर निगाह डालते हैं । बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उमेश गौतम बसपा के प्रत्याशी थे और संतोष गंगवार को उन्होंने चुनौती दी थी। हालांकि इसमें उनकी जमानत बचने के भी लाले पड़ गये थे। वह संतोष गंगवार के 5,17,450 वोटों के मुकाबले केवल 1,06,049 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। जबकि दूसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी आयशा इस्लाम रही थीं। उन्हें 2,77,573 वोट मिले थे।
उमेश गौतम के नामांकन में शामिल होना संतोष गंगवार की राजनीतिक और पार्टीगत मजबूरी हो सकती है लेकिन उनके चेहरे के भाव देखकर साफ समझ में आ सकता है कि वह इस टिकट से कितने ‘‘खुश’’ हैं।
पार्टी के पुराने कार्यकर्ता अपने नेता के खिलाफ खुलकर बोलने को तैयार नहीं हैं। लेकिन गुपचुप चर्चा है कि बरेली में भाजपा की इस स्थिति के लिए कहीं न कहीं संतोष गंगवार ही जिम्मेदार हैं। जैसा बोओगे-वैसा ही काटोगे, की कहावत यहां चरितार्थ हुई है।
पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी करके बाहर से प्रत्याशी लाकर उन्हें लड़वाने और जितवाने के माहिर संतोष गंगवार ने बरेली में दूसरी मजबूत लाइन तैयार ही नहीं होने दी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आंवला सांसद धर्मेन्द्र कश्यप और शहर विधायक डा. अरुण कुमार हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में डा. अरुण कुमार समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़े थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। उसमें भाजपा के राजेश अग्रवाल जीते थे और कांग्रेसी अनिल शर्मा दूसरे स्थान पर थे। निर्दलीय डा. तोमर चौथे स्थान पर रहे थे।
गंगवार ने तीसरे स्थान पर रहे डा. अरुण को 2012 में भाजपा का टिकट दिया और वो विधायक बन गये। इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में वह समाजवादी पार्टी से धर्मेन्द्र कश्यप को ले आये और सांसद बनवा दिया। इससे पूर्व धर्मेन्द्र कश्यप ने अपनी राजनीति बहुजन समाज पार्टी से शुरू की थी।
कुल मिलाकर उमेश गौतम के मेयर बनने का रास्ता अत्यन्त कठिन और कांटों से भरा है। उन्हें न केवल डैमेज कण्ट्रोल के लिए अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने पर काम करना होगा बल्कि कदम दर कदम भितरघात से भी जूझना होगा। इन्हीं सब हालातों के चलते समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी की बांछें खिली हुईं हैं। हालांकि वहां भी भितरघात कम नहीं हैं फिर भी पार्टी के नेता अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं।
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