बरेली। इत्तेहादे मिल्लत कौसिंल के बैनर तले हजारों मुसलमानों ने इस्लामियां इण्टर कॉलेज के मैदान में रैली करके रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में आवाज बुलन्द की। रैली मे इस बात पर आश्चर्य जताया गया कि अरब और अन्य इस्लामिक देशों समेत दुनिया के किसी भी मुल्क ने अब तक म्यांमार की घटनाओं को रोकने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी लगभग मूक दर्शक बना हुआ है। जुमे की नमाज के बाद मुस्लिमों का रैला शहर के चारों ओर से इस्लामियां इण्टर कॉलेज मैदान की ओर उमड़ पड़ा।
यहां लोगों को सम्बोधित करते हुए इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां ने कहा कि लगभग तीन सौ साल पहले म्यांमार में जाकर बसे रोहिंग्या मुसलमानों के अब अचानक नागरिक अधिकार खत्म कर दिए गए हैं। म्यांमार की सरकार ने उन्हें अपना नागरिक मानने से ही इनकार कर दिया है। उनका मताधिकार और नौकरी का अधिकार को छीन लिया गया है। अपने ऊपर जुल्म होने पर वे एफआईआर भी दर्ज नहीं करा पा रहे हैं। उनके खिलाफ बौद्ध जनता और सेना की हिंसा लगातार बढ़ती जा रही हे।
अपना घर बार छोड़कर दस लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश, ईरान और भारत में पलायन करने को मजबूर हुए हैं। कहा कि चीन ने तिब्बत के लोगों पर जुल्म किए तो भारत ने उदारता से उन्हें शरण दी थी। उसी उदारता के साथ रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या का समाधान करने के लिए भारत को हाथ बढ़ाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ और दुनिया के तमाम मुल्कों को आगे आकर राहिंग्या मुसलमानों को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने का काम करना चाहिए। शांति का नोबिल पुरस्कार पाने वाली म्यांमार की प्रभावशाली महिला नेता आंग सांग सूकी भी पहले तो रोहिंग्या मुसलमानों पर हुए जुल्मों पर खामोश रहीं। लेकिन वे भी अब जुल्म के शिकार रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ जहर उगल रही हैं। हांलाकि एक अन्य नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसूफ जई ने म्यांमार की घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए इसे इक्कीसवी सदी की सबसे बुरी घटना बताया।
हजरत शाह सकलैन एकेडमी के संरक्षक हाजी मुमताज मियां सकलैनी ने भारत सरकार से मांग की है कि म्यांमार के हालात सामान्य होने तक वहां से आए रोहिंग्या मुसलमानों को यहां शरण देकर उनके रहने और खाने का भी उचित इंतजाम किया जाए। रैली स्थल पर आकर एडीएम सिटी और सिटी मैजिस्ट्रेट नें आईएमसी और दूसरे संगठनों के राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन लिये है।