प्रश्न – आप बरेली की स्थिति को लेकर सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय रहते हैं, क्या है आपके मन बरेली को लेकर?
डा. प्रमेन्द्र : विशाल भाई, बरेली मेरी कर्मस्थली है। शुरू में यहां गंगाचरण अस्पताल में शहर के विभिन्न इलाकों से आने वाले मरीजों से बातचीत में शहर के बारे में पता चलता था। जब हालात समझे तो खुद भी शहर में घूमने जाने लगा। बीते दो दशक में शहर को जितनी तरक्की करनी चाहिए थी, वह नहीं हुई। जहां तक मेरे सक्रिय रहने की बात है तो सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जिसका उपयोग यदि जनहित में किया जाये तो क्रान्तिकारी परिवर्तन हो सकते हैं। अन्ना आन्दोलन इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। मैं शहर में गंदगी को लेकर बहुत चिन्तित रहता हूं। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी तक सभी स्वच्छता पर जोर दे रहे हैं। लेकिन अपने शहर में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेण्ट प्लाण्ट होने के बावजूद शहर में हर ओर गंदगी के अम्बार लगे हैं। तमाम लोग बीमार हो रहे हैं। नगर निगम इस ओर से आंखें मूंदे हुए है। आप सभी बरेलियन्स की तरह मैं भी इस शहर को साफ-सुथरा और स्मार्ट देखना चाहता हूं।
प्रश्न – आपके सपनों का बरेली कैसा होना चाहिए?
डा. प्रमेन्द्र : सिटी ऑफ ड्रीम की बात करें तो शहर में नागरिकों के लिए सहज जीवन शैली हो। साफ-सफाई हो, लोग परस्पर सभी धर्मों का सम्मान करने वाले हों। गंदगी और जाम से मुक्त शहर, अतिक्रमण से मुक्त शहर, शान्त और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण वाला शहर। देखिए, हर शहर का एक मिजाज होता है, जो कि लोगों के मूड और कल्चर पर निर्भर करता है। जैसे मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी है और दिल्ली देश की राजधानी। ऐसे ही यूपी की बात करें तो लखनऊ प्रदेश की राजधानी है, लेकिन बरेली सूबे की सांस्कृतिक राजधानी होने की सारी योग्यताएं रखता है। बरेली का प्राचीन इतिहास 5000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पांचाल से लेकर रुहेलों तक विभिन्न संस्कृतियां यहां पनपी और फली-फूलीं। आजादी की लड़ाई में बरेली का योगदान किसी से छिपा नहीं है।
इसके अलावा बरेली में सुर्में और झुमके की लोकप्रियता जग जाहिर है। प्रियंका चोपड़ा, दिशा पाटनी, पारस अरोड़ा सरीखे अनेक कलाकारों ने आधुनिक सांस्कृतिक जगत में बरेली को नयी पहचान दी है। तो जड़ों में पंडित राधेश्याम कथावाचक, निरंकार देव सेवक और हजारों साल पुरानी नाथ परम्परा से समृद्ध है यह शहर। इसके अलावा आला हजरत के दीन की रोशनी तो खानकाहे नियाजिया के सूफी संगीत के इल्म से रोशन है, जिसकी चमक दुनिया भर में फैली हुई है। इसके अलावा स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर से नियमित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम से सांस्कृतिक राजधानी के रूप में स्थापित करने को काफी है। बस, इसके लिए जरूरत है एक आन्दोलन की।
प्रश्न- वर्तमान में आप बरेली को कैसा पाते हैं?
डा. प्रमेन्द्र : हम यूपी के अन्य मण्डल मुख्यालयों के मुकाबले बहुत पिछड़ी स्थिति में हैं। कानपुर, मेरठ, गोरखपुर और अलीगढ़ से भी पिछड़ गयी है बरेली। स्मार्ट सिटी की तीसरी सूची में भी बरेली को स्थान नहीं मिल सका।
प्रश्न- स्मार्ट सिटी में नाम नहीं आ पाने के लिए कौन जिम्मेदार है?
डा. प्रमेन्द्र : शहर के नागरिक और प्रशासनिक ढिलाई दोनों ही जिम्मेदार हैं। किसी भी शहर की पहचान उनके नागरिकों से होती है। जब हम अपने घरों को साफ रखते हैं तो गली, कालोनी और शहर को क्यों नहीं रख सकते? क्यों लोग घरों का कूड़ा सड़कों पर डालते हैं। हर सड़क पर अतिक्रमण करते हैं शहरी। इससे जाम लगता है। नगर निगम प्रशासन की जिम्मेदारी है ऐसे लोगों पर नकेल कसना, व्यवस्था बनाना, शहर को अतिक्रमण से मुक्त कराना, बिजली, सड़क और पानी की व्यवस्था करना। लोगों का काम है व्यवस्था में सहयोग करना जैसे-बिजली चोरी न करें, हाउस एवं वाटर टैक्स समय पर दें आदि। किसी एक की कमी से लक्ष्य को नहीं पाया जा सकता।
प्रश्न – आपके अनुसार शहर में और क्या समस्याएं हैं?
डा. प्रमेन्द्र : शहर की आबादी दिनों दिन बढ़ रही है। ऐसे में ट्रैफिक का लोड भी सड़कों पर बढ़ रहा है। ऐसे में ट्रैफिक को व्यवस्थित करके चलाना प्रशासन का काम है। फिलहाल पार्किंग, खराब सड़कें, पार्कों की कमी, अतिक्रमण, गंदगी, सार्वजनिक सुलभ शौचालयों और यूरेनल्स की कमी शहर की मुख्य समस्याएं मुझे लगती हैं। सरकार का जोर शहर को ओडीएफ करना यानि खुले में शौच से मुक्त करना, लेकिन इसके लिए सुविधाएं मुहैया कराना तो नगर निगम का काम है।
गरीबी स्वयं में एक बड़ी समस्या है। हमने अपनी संस्था विजन रुहेलखण्ड के माध्यम से रोटी बैंक की स्थापना की है। इसके माध्यम से शहर के लोग दो-दो रोटी रोजाना बैंक में जमा करते हैं, जिन्हें संस्था के वॉलिण्टियर्स जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं।
प्रश्न – क्या शहर के जनप्रतिनिधियों से कुछ कहना चाहेंगे?
डा. प्रमेन्द्र : लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर मेयर बनाते हैं। विधायक और सांसद चुनकर विधानसभा और संसद भेजते हैं। इसके बाद जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे शहर में विकास करायें। अगर विकास की बात करें तो बरेली के युवाओं को पढ़ाई के बाद नौकरी के लिए बाहर जाना पड़ता है। हैदराबाद, बंगलौर, नोएडा, गुड़गांव में बरेली के हजारों युवा नौकरियां खोजते हैं, करते हैं। यदि यही विकास कार्य बरेली में हुए होते, यहां उद्योग लगे होते तो शहर की तस्वीर दूसरी होती। अन्य शहरों के लोग यहां काम करने आते। विकास को और पंख लगते। अब हालांकि एयरपोर्ट बन रहा है, इससे उम्मीद है कि विकास के पहिये को गति मिलेगी।
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