ivri izzatnagarबरेली। इंडियन सोसाइटी आॅफ एनीमल जेनेटिक्स एण्ड ब्रीडिंग का दो दिवसीय तेरहवीं राष्ट्रीय काॅन्फ्रेन्स यहां आईवीआरआई में शुरू हो गयी। इस काॅन्फ्रेन्स का विषय ‘‘देशी पशु अनुवांशिकी संसाधन में मात्रात्मक विकास की चुनौतियां’ है। काॅन्फ्रेन्स में देश के कोने-कोने से विभिन्न पशु विज्ञान व पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों तथा अनुसंधान संस्थानों से 200 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक डा. त्रिलोचन महापात्रा के संरक्षण में आयोजित इस काॅन्फ्रेन्स में देश के पशु अनुवांशिकीविद् देश में पशु उत्पादों की बढती मांग तथा पशुपालन के लिए घटते संसाधनांे की परिस्थिति में उत्पादों में वृद्धि करने पर विचार कर रहे हैं। समारोह के उद्घाटन के अवसर पर काॅन्फ्रेन्स के कम्पेडियम का विमोचन भी किया गया। आगत अतिथियों एवं प्रतिनिधियों के सम्मान में एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया जिसमें प्रसिद्ध शास्त्रीय कत्थक नृत्यांगना नलिनी-कमलिनी की नृत्य प्रस्तुति हुई।

काॅन्फ्रेन्स का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि गुरू अंगद देव पशुचिकित्सा विश्वविद्यालय, लुधियाना के पूर्व कुलपति ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारत में दूध देने वाले 5.1 मिलियन देशी पशु संसाधन हैं। देश दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। बढ़ती आबादी तथा पशुपालन के लिए घटते संसाधनों के बीच भविष्य में पशु उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ेगी। इसके लिए पशु अनुवांशिकीविद्ों को श्रेष्ठ पशुओं का चयन एवं उनके पुनर्जनन पर ध्यान देना होगा।

भारत सरकार के पशुपालन आयुक्त रह चुके डा. तनेजा ने दूध वाले पशुओं के विकास के लिए सरकार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि पशुधन विकास में देशी पशु अपनी रोग प्रतिरोधक तथा अधिक गर्मी सहने की क्षमता के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इतना ही नहीं, देशी पशु का दूध ए-2 श्रेणी का है जबकि विदेशी जाति की गायें ए-1 श्रेणी का दूध देती हैं जो मानव शरीर में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न करता है। इसलिए देशी गायों का दूध स्वास्थ्य के अनुकूल है। उन्होंने पशुधन विकास के लिए देश में राष्ट्रीय अनुवांशिकी मूल्याकंन पद्धति के विकास पर जोर दिया।

इससे पूर्व समारोह के विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय पशु जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, हैदराबाद के निदेशक डा. सुबीर मजूमदार ने कहा कि सन् 2050 तक देश की आबादी 1.6 अरब हो जायेगी तथा इस आबादी के लिए पशु उत्पादों की मांग को देखते हुए दुग्ध उत्पादन बढाना बहुत ही मुश्किल कार्य है। भारत का मौसम इस कार्य की सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि काॅन्फ्रेन्स में प्रस्तुत किये जाने वाले व्याख्यानों से इस दिशा में बढ़ने में सहायता मिलेगी। अपने अध्यक्षीय संबोधन में संस्थान निदेशक डा. राजकुमार सिंह ने कहा कि देश में बढ़ते दूध की मांग के लिए देशी गायों के लिए तकनीक का विकास करना ज्यादा आवश्यक है।

समारोह के प्रथम तकनीकी सत्र में राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो, करनाल के पूर्व निदेशक एवं बाएफ डेवलपमेन्ट रिसर्च फाउन्डेशन, पुने के सलाहकार डा. बी.के. जोशी एवं सी.आई.आर.बी., हिसार के पूर्व निदेशक डा. आर.के. सेठी ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। अपने व्याख्यान में डा. जोशी ने कहा कि देश में प्रति व्यक्ति 336 ग्राम दूध की उपलब्धता है परन्तु सन् 2020 तक 5 से 6 प्रतिशत तक पशुधन घटने की संभावना है। सन् 2030 तक मिट्टी की घटती उर्वरता, पानी एवं चारा उत्पादन में कमी के कारण हमें ऐसी तकनीकों की आवश्यकता है जिससे दूध उत्पादन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद बढेे़। साथ ही पारिस्थितिकी में भी सुधार जरूरी है। दूध उत्पादन में वृद्धि के लिए साल भर चारे की व्यवस्था तथा औद्योगिक क्षेत्रों में पशुपालन को बढ़ावा देना आवश्यक है।

डा. आर.के. सेठी ने अपने व्याख्यान में कहा कि देश में मादा दुग्ध पशुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। उनका कहना था कि उत्तर पश्चिम भारत में पशुपालन बढ़ा है जबकि पूरब-दक्षिण भारत में पशुओं की संख्या घटी है। गायों में रेड सिन्धी और साहीवाल तथा भैंसों में नीली राबी में दुग्ध उत्पादन बढा है। इस अवसर पर 5 अन्य प्रतिनिधियों ने भी अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये। समारोह को देश के प्रमुख पशु अनुवांशिकीविद् डा. आर.एम. आचार्य ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर कांफ्रेंस के समन्वयक एवं संस्थान के संयुक्त निदेशक (शोध) डा. बी.पी. मिश्रा ने स्वागत भाषण करते हुए आशा व्यक्त की कि इस कांफ्रेंस से पशुधन शिक्षा एवं विकास का रोड मैप बनेगा। इस अवसर पर बड़ी संख्या में संयुक्त निदेशकगण, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, छात्रगण आदि उपस्थित रहे।

error: Content is protected !!