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77 वां उर्से आले रसूल के आखिरी दिन उमड़ा अकीदतमंदों का सैलाब, दुआ को उठे हाथ

BareillyLive: दरगाह आले रसूल, खानकाहे वामिकिया निशातिया में आज तीसरे दिन कुल की शुरुआत सुबह नौ बजे हाफिज मुजाहिद वमिकी तिलावत से हुई इसके बाद कमाले निशात वमिकी, जीशान वामिकी ने नातोमंकबत का नजराना पेश किया। बदरे तरीकत मौलाना सय्यद असलम मियाँ वामिकी ने जायरीन को नसीहत करते हुये कहा पैगंबरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम के बताए हुए रास्ते पर अमल करते हुए दरगाहों और खानकाहों में सूफियों ने लोगों की हाजत रवाई करना और भूखों को खाना खिलाना इंसानियत के तकाजे के मुताबिक समझा और समाज के लोगों के अंदर इस जज्बे के पैदा करने के लिए समाज के अंदर आपसी एकता को बहाल किया। सूफियों ने अपने कहने और करने से समाजी रवादारी को बहाल करने में बहुत बड़ा किरदार अदा किया।

हिंदुस्तान के बहुत बड़े सूफी हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी ने फरमाया बेकसों की फरियाद को पहुंचना मोहताजों की हाजत रवाई करना और भूखे को खाना खिलाना बेहतरीन इबादत है चिश्ती सिलसिले के सूफियों ने इस शिक्षा पर बहुत ज्यादा जोर दिया और हजरत वामिक मियां रहमतुल्लाह अलैह ने पूरी जिंदगी इस पर मुकम्मल तरीके से अमल किया। खुसूसी खिताब में डा0 महमूद हुसैन प्रोफेसर बरेली कालेज ने कहा के खानकाह इसलिए बनाई गई कि मस्जिदों में सिर्फ मुसलमान ही जा सकते हैं दूसरे मजहब के मानने वाले नहीं, मंदिर में सिर्फ हिंदू जा सकते हैं दूसरे मजहब वाले नहीं, गुरुद्वारों में सिर्फ सिख धर्म के, चर्च में सिर्फ ईसाई गोया के कोई भी एक दुसरे की इबादत गाहों में नही जाना चाहता था अब एक ऐसी जगह की जरूरत थी जहां हिंदू और मुसलमान और और सिख और इसाई यह सब लोग एक जगह बैठ कर हिंदुस्तानी समाज से बुराइयों का खात्मा करें यहां के समाज को मजबूत करके मुल्क को मजबूत करें और आपस में मिलजुल कर रहें इसलिए सूफी संतों ने खानकाहें काईम कीं जहां जात-पात, ऊंच-नीच, दीन, धर्म रंग, काला गोरा, मालदार, शहरी देहाती वगैरा होने की वहां कोई पाबंदी नहीं है तो जहां पर यह सारे मामलात होते हैं उसको खानकाह कहते हैं।

इस के बाद मेहमाने खुसूसी मुफ्ती फईम सकलैनी अजहरी ककराला ने अपनी तकरीर में कहा हजरत ख्वाजा गरीब नवाज अजमेरी के खलीफा हजरत सूफी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्ला जब नागौर पहुंचे तो वहां जैन धर्म के मानने वाले ज्यादा रहते थे और सब लोग जानते हैं कि जैनी गोश्त खाने से बहुत परहेज करते हैं हजरत सूफी हमीदुद्दीन ने जैनियों को तकलीफ ना पहुंचे इस वजह से गोश्त खानकाह में पकाने से मना कर दिया और आपने वसीयत की के जैसे मेरी जिंदगी में मेरी खानकाह के लंगर में गोश्त वगैरह नहीं पकाया जाता है मेरे मरने के बाद भी यहां की फातिहा में गोश्त को शामिल ना किया जाए। जिस पर दरगाह कमेटी नागौर के लोग आज तक कार्य बंद है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसी के दिल को ठेस ना पहुंचे इसके लिए सूफी कुछ भी कर सकते हैं। इस के बाद ठीक 1 बजे कुल शरीफ की रस्म अदा हुई जिस में साहिबे सज्जादा बदरे तरीकत मौलाना सय्यद असलम मियाँ वामिकी ने शजरा शरीफ पढ़ा और हाजरीन, मुहिब्बीन और शहर व मुल्क्क की तरक्की के लिए दुआ की इस के बाद कव्वाल हजरात ने रवाएती चश्ती रंग पेश किया बदहू लंगरे आम जरी हुआ। मीडिया प्रभारी जावेद कुरैशी ने बताया इस साल उर्से आले रसूल में खुसूसी शिरकत दरगाह मखदूम सबिर पाक (कलियर शरीफ) के सज्जादा नशीन यावर मियां सबरी की रही। सारी जिम्मेदारी वामिकिया एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी के तत्वाधान में रही है।

जिस में खासतौर पर डा0 महमूद हुसैन वामिकी, जफर बेग, हाफिज अलाउद्ीदीन, फरहान चिश्ती, उस्मान चमन, सय्यद चाँद मियाँ, मीराज सबरी, कारी यासीन, मुस्तजब मालिक, आरिफ मालिक, मासूम वामिकी, सफी वामिकी, हाजी मुख्तियार प्रधान, शोकत वामिकी, कबीर वामिकी, जमीर अहमद वामिकी, सरफराज वामिकी, सय्यद कासिम अली, हाजी चंद बाबू, अकरम खान वामिकी, कमाले निशात वामिकी, सय्यद हसनैन वामिकी, फिरोज वामिकी, उसमान चमन, मसद वमिकी, सरताज, सय्यद चाँद मियां, हाफिज मुजाहिद वामिकी, सय्यद जहाँगीर अशरफ वामिकी, सरताज कैन्ट, अयाज हुसैन वामिकी, मुकीम वामिकी, सलीम वामिकी, निराले वामिकी, मसद वामिकी, अजहर खां वामिकी, जहीर वामिकी, हाफिज अफजाल वामिकी, नबी अहमद वामिकी, सय्यद जीशान वामिकी, सय्यद सलमान वामिकी, सय्यद अरमान वामिकी शब्लू वामिकी, शानू अथर वामिकी, अफशां वामिकी, अब्दुल हक वामिकी, गुलजार, जमीर वामिकी, कबीर वामिकी, शमशाद, आरिफ मालिक, वसीम, इरशाद, छोटे जाकिर चच्चा आदि का सहयोग रहा।

Sachin Shyam Bhartiya

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