पिनाकी फाउण्डेशन, सनातन यात्रा, अमावस्या को पीपल के नीचे क्यों जलाते हैं दीप,sanatan yatra, pinaki foundation,

बरेली। पिनाकी फाउण्डेशन ने शनिवारी अमावस्या की रात श्री अलखनाथ स्थित शनिधाम में दीप प्रज्ज्वलन किया और प्रसाद स्वरूप खिचड़ी वितरण किया। पिनाकी फाउण्डेशन ने लोगों को सनातनी परम्पराओं के वैज्ञानिक महत्व बताने के लिए ‘सनातन यात्रा’ अभियान का शुभारम्भ किया है। इसी के तहत शनिवार को शनिधाम में पीपल वृक्ष के नीचे 108 दीये प्रज्ज्वलित किये गये।

फाउण्डेशन की ट्रस्टी अनुवन्दना माहेश्वरी ने बताया कि सनातन यात्रा के अन्तर्गत लोगों को सनातन परम्पराओं की पीछे का वैज्ञानिक कारण बताया जाएगा, जिससे लोग अपनी परम्पराओं को समझकर उनका लाभ उठा सकें।

अभियान के सदस्य एडवोकेट आलोक शंखधर ने बताया कि आज लोग सनातनी परम्पराओं पर उंगली उठाने वालों को जवाब नहीं दे पाते। हमारी वैज्ञानिक परम्पराओं और रीतियों को विधर्मी आडम्बर बताते हैं जबकि सनातन धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक है। यहां कोई प्राचीन परम्परा अवैज्ञानिक नहीं है। एक अन्य सदस्य एडवोकेट गोपेश कुमार शर्मा ने कहा कि सनातन धर्म की प्रत्येक परम्परा के पीछे हमारे ऋषियों का शोध और तपस्या छिपी है।

फाउण्डेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी विशाल गुप्ता ने बताया कि पीपल के नीच दीये जलाने का बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है। पीपल का पेड़ फाइकस फैमिली का सदस्य है, जो सर्वाधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। पीपल एक मात्र ऐसा पेड़ है जो 24 घण्टे ऑक्सीजन देने की क्षमता रखता है। लेकिन ऑक्सीजन देने के लिए पेड़ को प्रकाश की आवश्यकता होती है। इसीलिए हमारे ऋषियों ने पीपल के नीचे अमावस्या की रात को दिये जलाने की परम्परा शुरू की। क्योंकि बाकी के दिनों चन्द्रमा का थोड़ा बहुत प्रकाश मिल जाता है जबकि अमावस्या की रात पूरी काली होती है। अमावस्या को दीये जलाने से पीपल की 24 घण्टे ऑक्सीजन देने की क्षमता का उपयोग जनकल्याण के लिए किया जाता है।

आयोजन में वरिष्ठ पत्रकार गजेन्द्र त्रिपाठी, भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जिलाध्यक्ष शैलेन्द्र विक्रम, फाउण्डेशन के पीआरओ सचिन श्याम भारतीय, डॉ गौरी शंकर शर्मा, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक गिरीश पाण्डेय, कौशिक टण्डन और कैमरामैन गोपेश शर्मा, शोभित, अर्पित का विशेष सहयोग रहा।

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