Bareillylive : मानव सेवा क्लब और शब्दांगन संस्था के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को नावल्टी चौराहा स्थित एक सभागार में सदी के महान ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की 91 वीं जयंती पर एक विचार गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने दुष्यंत जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मात्र 42 वर्ष की अल्पायु में दुष्यंत कुमार ने हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में इतना अधिक काम कर दिया कि वह सदी के महानायक कहे जाने लगे। दुष्यंत कुमार की गजलें बहुत चर्चित हैं। आज भी लोग उसे खूब पसंद करते हैं।

हिंदी साहित्य में हिंदी गजल विधा को प्रतिष्ठित करने वाले प्रसिद्ध रचनाकार दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितंबर 1933 को उत्तर-प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गांव में हुआ था। उनका मूल नाम ‘दुष्यंत कुमार त्यागी’ था लेकिन वह साहित्य जगत में ‘दुष्यंत कुमार’ के नाम से जाने गए। प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ ही साहित्यिक जीवन का आरंभ हुआ और उनके लेखन को एक नया आयाम मिला। अपने अध्ययन के दौरान दुष्यंत कुमार साहित्यिक संस्था ‘परिमल’ की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और ‘नए पत्ते’ जैसे महत्वपूर्ण पत्र से भी जुड़े रहे। इस समय उन्हें मार्गदर्शक के रूप में ‘डॉ.रामकुमार वर्मा’, ‘डॉ. धीरेंद्र कुमार शास्त्री’ व ‘डॉ. रसाल’ मिले तो सहपाठी के रूप में ‘कमलेश्वर’, ‘मार्केंडय’ और ‘रवींद्रनाथ त्यागी’ का सानिध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने ‘ऑल इंडिया रेडियो’ में एक सामान्य पद के कर्मचारी के रूप में नौकरी की शुरुआत की। यहाँ कुछ समय तक कार्य करने के बाद उन्होंने इस कार्य से इस्तीफा दे दिया और ‘किरतपुर इंटर कॉलेज’ में अध्यापन कार्य की शुरुआत की। किंतु इस कार्य को भी उन्होंने कुछ समय बाद छोड़ दिया और पुनःआकाशवाणी दिल्ली में नौकरी करने लगे। यहाँ कुछ समय तक कार्य करने के बाद उनका भोपाल केंद्र में ट्रांसफर हो गया जहाँ उन्होंने रेडियो के लिए ध्वनि नाटक लिखे। इसके पश्चात दुष्यंत कुमार ने आकाशवाणी में सहायक निर्माता का पद छोड़ दिया और ट्रायबल वेलफेयर में डिप्टी डायरेक्टर का पद भार संभाला। किंतु अपने विद्रोही व्यवहार के कारण उन्होंने इस नौकरी को भी कुछ समय बाद छोड़ दिया। फिर उन्होंने कुछ वर्षों तक मध्य प्रदेश के राजभाषा विभाग में सहायक निर्माता के रूप में कार्य किया।

आधुनिक हिंदी साहित्य में दुष्यंत कुमार का पदार्पण होने के बाद उन्होंने अपनी आरंभिक रचनाएँ ‘परदेसी’ के नाम से लिखी थीं। किंतु कुछ समय बाद उन्होंने अपने उपनाम ‘दुष्यंत कुमार’ से ही लिखना शुरू कर दिया। दुष्यंत कुमार ने हिंदी साहित्य जगत में कई विधाओं में रचनाएँ की जिनमें उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, गीति नाट्य और गजल विधा शामिल हैं। दुष्यंत कुमार की संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं में गजल-संग्रह साये में धूप, उपन्यास छोटे-छोटे सवाल -आँगन में एक वृक्ष- दुहरी ज़िंदगी-काव्य-संग्रह सूर्य का स्वागत-आवाज़ों के घेरे-जलते हुए वन का वसंत, गीति नाट्य एक कंठ विषपायी, नाटक और मसीहा मर गया कहानी-संग्रह मन के कोण आदि।

हिंदी गजल विधा के पुरोधा महानायक दुष्यंत कुमार के सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने एक डाक टिकट जारी किया। इसके साथ ही ‘दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय’ में उनकी धरोहरों को सँभालने का प्रयास किया गया है। दुष्यंत कुमार की लोकप्रिय गजल हैं,

“मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ। इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है। नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों, इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है। एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है। एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है। निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है। दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर, और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।”

दुष्यंत कुमार का जीवनकाल लंबा तो नहीं रहा किंतु उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य में जिस भी विधा में साहित्य का सृजन किया वह इतिहास बन गया। मात्र 42 वर्ष की आयु में ह्रदय गति रुक जाने से उनका 30 दिसंबर 1975 को निधन हो गया। फिर भी उनकी साहित्यिक साधना के कारण दुष्यंत कुमार को हमेशा हिंदी जगत में याद किया जाता रहेगा। उनकी 91 वीं जयंती पर शत-शत नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि।

शायरी और ग़ज़ल में विशेष योगदान के लिए मुरादाबाद के वरिष्ठ ग़ज़लकार और शायर डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ को 11 वां दुष्यंत कुमार स्मृति साहित्य सम्मान दिया गया। सम्मान में हार, शाल, अभिनंदन-पत्र और स्मृति चिन्ह विशिष्ट अतिथि अशोक उपाध्याय, पवन सक्सेना, सुरेन्द्र बीनू सिन्हा और इन्द्र देव त्रिवेदी ने दिया। अपने सम्मान के बाद शायर डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें हिंदी ग़ज़ल का महानायक बताया। कार्यक्रम का प्रारम्भ अरुणा सिन्हा की सरस्वती वंदना से हुआ। वन्दे मातरम का नेतृत्व मीरा मोहन ने किया। क्लब का आव्हान गीत प्रकाश चंद्र सक्सेना ने प्रस्तुत किया। संचालन इन्द्र देव त्रिवेदी ने किया। मौजूद लोगों में मंजू लता सक्सेना, प्रीती सक्सेना, जितेंद्र सक्सेना, रणधीर प्रसाद गौड़, सुधीर मोहन, प्रकाश सक्सेना, अरुण शुक्ला, उमेश गुप्ता, पीयूष गुप्ता, इं डी. डी. शर्मा, विजय कपूर, मोहन चन्द्र पांडेय, विशाल शर्मा, प्रकाश निर्मल, अनिल चौबे, रामप्रकाश ओज, मनोज टिंकू सहित कई कविता प्रेमी उपस्थित रहे।

error: Content is protected !!