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बरेली में कवि सम्मेलन-मुशायरा : “एक हाथ में आबे जमजम एक हाथ में गंगा हो”

बरेली समाजवादी पार्टी द्वारा प्रायोजित एवं उत्तर प्रदेश सद्भावना कमेटी द्वारा आयोजित मुशायरा एवं कवि सम्मेलन खलील स्कूल में सम्पन्न हुआ। इसमें कविताओं, शायरी, गजल, और नगमों से नामचीन शायरों और कवियों ने बरेली के श्रोताओं को खूब गदगद किया। शायरों और कवियों ने महफिल में ऐसा रंग जमाया कि कड़ाके की ठंड के बावजूद मध्य रात्रि के बाद भी श्रोतागण गजलों, नज्मों, कविताओं और गीतों का आनन्द लेने के लिए पंडाल में जमे रहे।

चुनावी साल नजदीक है इसलिए हर पार्टी अपनी-अपनी तरह से मतदाओं को रिझाने में लगी हुई है। इसी का लाभ बरेली के श्रोताओं को भी मिल गया। पूरे कार्यक्रम में अन्त तक नामचीन शायरों और कवियों ने अपने कलाम और रचनाओं से महफिल में समा को बाधे रखा।

 दिल्ली से आयी मशहूर शायरा अना देहलवी ने अपनी खूबसूरत आवाज मे बेहतरीन यह  गजल पेश की-

 “दिल के कागज को सजाने में बड़ी देर लगी।

तेरी तस्वीर बनाने में बड़ी देर लगी।।

अब किसी और के हाथों का मुकद्दर हूं मैं।

तुझको परदेस से आने में, बड़ी देर लगी।।

सामाजिक सद्भाव और भाषाई एकता पर भी उन्होंने खूबसूरत नज्म़ पेश की-

“होली के रंग को तितली के हवाले कर दूं।

गालिब और मीर को तुलसी के हवाले कर दूं।।

आज आपस में मिला दूं मैं सगी बहनों को।।

यानी ‘उर्दू’ को ‘हिंदी’ के हवाले कर दूं।।”

प्रतापगढ़ से आए शहजादा कलीम ने न केवल काफी वाहवाही लूटी, बल्कि अपने शेरों और कलाम से महफिल में समा बांध दिया। उन्होंने अर्ज-

“जो मंदिर और मस्जिद पर सियासत दान करते हैं

यह सच है अपनी ही नस्लों से वह गद्दारी करते हैं।।

यह हिंदुस्तान की मिट्टी है यहां एक चटाई पर

मुसलमा और हिंदू बैठकर अफ्तार करते हैं।।

“वह है नादान जो इस सच्चाई से अनजान बनता है

यही तो मुल्क की तारीख का उनवान बनता है।।

बिखरने से बचा लो ‘ रिश्ते’ हिंदू और मुसलमा के

इन्हीं दो तत्वों से मिलकर ‘हिंदुस्तान’ बनता है।।”

“खून बहे ना अपनों का अब,और न कोई दंगा हो

एक हाथ में आबे जमजम एक हाथ में गंगा हो।।

जिसको जितना प्यार है देश से, यह वो ही जानें लेकिन

मेरा तो अरमान यही है मेरा कफन तिरंगा हो।।”

उत्तर प्रदेश सद्भावना कमेटी के चेयरमैन आजाद अहमद जी ने अपना यह कलाम पेश किया-

“खुद्दारी को ताक पर रखकर कब तक और जियोगें तुम।

जो कातिल है उसे मसीहा कब तक और कहोगें तुम।।

मिलकर के आवाज उठाओ वक्त को कब पहचानोगे।

कब तुम चुपचाप रहोगें कब तक जुल्म सहोगें तुम।।”

 मशहूर यासिर सिद्दीकी ने भी कुछ यूं अपनी बात रखी-

“सब्र करने के सिवा दूसरी सूरत क्या है

दोस्त तुझसा है तो अहसास-ए-कदूरत क्या है।।

तेरा खंजर भी है, गर्दन भी है, गरदाव भी

तेरे होते हुए, दुश्मन की जरूरत क्या है।।”

“ऐसा भी नहीं  कोई समझदार नहीं है

मस्जिद में कोई झुकने को तैयार नहीं है।।

पिछले जमाने में  चलन रहा रवि का

इस दौर के इंसानों में किरदार नहीं है।।

कार्यक्रम में अन्य जगहों से आए कवि और शायरों ने भी अपने-अपने कलाम पढ़े। इस कार्यक्रम का नदीम ने ऐसा कुशलता पूर्वक संचालन किया कि दर्शक उनके लहजे और शायरी का अन्त तक लुफ्त लेते रहे।

gajendra tripathi

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