शरद सक्सेना, आँवला (बरेली)। न खुदा ही मिला, न बिसाले सनम। न इधर के रहे-न उधर के रहे। कुछ यही हाल हो गया है अपने पक्के मकान की चाहत में प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों का। पक्का मकान तो बन नहीं पाया, बल्कि जो टूटा-फूटा कच्चा आसियाना था वो भी उजड़ गया। गर्मी और बरसात झेलने के बाद कड़कड़ाती सर्दी में खुले आसमान के नीचे जिन्दा रहने की जद्दोजहद इनकी नियति बन गयी है। सरकारी सिस्टम है कि किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है।
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी में सत्ता में आते ही प्रत्येक गरीब परिवार को पक्के आवास देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना लागू की थी। सरकार का लक्ष्य था कि कोई भी गरीब अब छप्पर अथवा कच्ची छत व पालीथीन के नीचे न रहे, सबका अपना घर हो।
सरकार ने 2022 तक सभी को पक्की छत मुहैया कराने हेतु प्रधानमंत्री आवास योजना लागू की। इसके तहत शहरी क्षेत्र में गरीब और बेसहारा लोगों के लिए पक्की छत देने हेतु पात्रों के पास मकान बनाने हेतु अपनी भूमि होनी चाहिए। आवास निर्माण के लिए उनको ढाई लाख रूपये का अनुदान सरकार द्वारा दिया जाता है।
पहली किस्त 50 हजार रूपये की आवेदक के बैंक खाते में आती है। इससे वह अपनी भूमि पर फाउण्डेशन तैयार करके उसमें मानक के अनुरूप सरिया व सीमेन्ट से पिलर खड़े करते हैं। इसके बाद दूसरी किस्त में करीब एक लाख पचास हजार रूपये पात्रों के खातों में भेजे जाते हैं। इससे वह दीवारें खड़ी करके लिंटर डाल सके। तीसरी और अन्तिम किस्त में सरकार द्वारा 50 हजार रूपए भेजा जाता है जिससे पात्र व्यक्ति प्लास्टर व फिनिसिंग कार्य करता है। इस प्रकार आवास पूर्ण हो जाता है। इसी के साथ गरीब को पक्की छत नसीब हो जाती है। इस पूरी निर्माण प्रक्रिया में करीब 45 दिन का समय लगता है। यह पूरी प्रक्रिया सूडा व डूडा के अंर्न्तगत संचालित होती है।
उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकरियों की सुस्ती देखिए कि 2016 में आवास का आवेदन करने वालों के आवास 2018 में स्वीकृत हुए। पहली किस्त अब से करीब 6 माह पहले पात्रों के खातों में डाली गई। किस्त पाकर गरीबों के चेहरों पर खुशी आई कि अब उनका भी अपना पक्का घर होगा। इस योजना का लाभा उठाने के लिए पात्रों ने अपने कच्चे, टूटे-फूटे, घरों के ऊपर पड़े छप्पर व पन्नी हटा दिये। पहली किस्त में मिली रकम से नींव यानि फाउण्डेशन तैयार की। इसके बाद उन्हें ठेंगा दिखा दिया गया, और पक्के मकान के शीध्र निर्माण की आस में वे बेघर हो गये। ये बेचारे असहाय बेघर लोग पड़ोसियों या रिश्तेदारों के यहां रहने को मजबूर हो गये। जिनको कहीं शरण नहीं मिली वे खुले आसमान के नीचे बसर करना को मजबूर हैं।
गर्मी बीती और पूरी बरसात भी गुजर गई, परन्तु दूसरी किस्त उनके खाते में नहीं आयीं। ये बेघर-बेआसरा लोग येजना से जुडे़ कर्मचारियों व अधिकारियें से मिले। उनके कार्यालयों के चक्क्कर काटे परन्तु दूसरी किस्त नहीं आई। अब कड़कड़ाती सर्दी और आने वाली हाड़ गला देने वाली ठण्ड में ये बेसहारे कैसे जियेंगे? ये बड़ा सवाल इनके आगे खड़ा है।
मोहल्ला कच्चा कटरा, खेडा, गौसिया चौक आदि स्थानें पर रहने वाले पा़त्रों को कहना है कि पहली किस्त के बाद दूसरी के इंतजार में बरसात सिर पर गुजार दी। अब सर्दी खुले में गुजारने को मजबूर हैं। गरीबों और मजबूरों की कोई सुनने वाला नहीं है।
वहीं कच्चा कटरा और अन्य वार्डों के पालिका सभासद अमर मौर्य, ललिता देवी, अकबर खान, लालमन मौर्य का कहना है कि विभाग द्वारा कुल 106 गरीबों के आवास स्वीकृत हुए थे। दूसरी किस्त न आने की दशा में यह बेचारे बेसहारा हो गये हैं। इनके सिर से उनकी कच्ची छत भी चली गयी। अब यह दूसरे के यहां सिर छिपाने को मजबूर हैं। इसके अलावा कई ऐेसे आवेदक जो कि बहुत ही दयनीय स्थिति में हैं। उनके मकान टूटे-फूटे हैं। आवेदन करने के बाद भी उनका नाम प्रधानमंत्री आवास योजना में शामिल नहीं किया गया। पूरी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नजर आ रही है।
पालिका चेयरमैन संजीव सक्सेना का कहना है कि उन्हें मामले की पूरी जानकारी है। इस सम्बन्ध में डूडा व सूडा अधिकारियों से बात की है। इस योजना के तहत सर्वे करने वाले लोगों ने भ्रष्टाचार के चलते योजना को पलीता लगा दिया है। बहुत से पात्रों को इसका लाभ नहीं मिल सका है। हमने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की है। शीघ्र ही दूसरी किस्त के पैसे पात्रों के बैंक खातों में पहुंच जाएगी।
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