बरेली। मुस्लिम समुदाय का पवित्र महीना यानि माह-ए-रमज़ान इस साल 5 मई से शुरू हो रहा है। मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार शनिवार 4 तारीख को चांद दिखने की संभावना है जिसके बाद रविवार 5 तारीख से एक महीने तक चलने वाले ‘रोजे’ यानि रोज़ा की शुरुवात हो जाएगी। ये रोजे अगले माह जून की 4 या 5 तारीख तक चलेंगे। रमजान के आखिरी दिन ईद-उल-फितर यानि मीठी ईद मनायी जाएगी।
रमज़ान इस्लामी कैलेण्डर का नौवां महीना होता है। इस महीने को नेकियों यानि सद्कार्यों का महीना भी कहा जाता है। इसीलिए इसे मौसम-ए-बहार बुलाते हैं। इस पूरे महीने में इस्लाम के अनुयायी यानि मुसलमान अल्लाह की इबादत में ध्यान लगाते हैं। इस महीने में वे खुदा को खुश करने इबादत के साथ कुरआन का पाठ और ज़कात यानि दान ीी करते हैं।
1- रमजान के पूरे महीने रोज़े (व्रत) रखना अत्यंत शुभ माना जाता है।
2- रोजों के दौरान रात में तरावीह की नमाज़ पढना और क़ुरान की तिलावत यानि पाठ करना अच्छा होता है।
3- एतेकाफ़ पर बैठना, यानी अपने आस पड़ोस और प्रियजनों के उत्थान व कल्याण के लिये अल्लाह से दुआ करते हुये मौन व्रत रखना भी इसकी खासियत है।
4- इस माह में दान पुण्य का भी अत्यंत महत्व होता है जिसे ज़कात करना कहते हैं।
इस महीने की सबसे बड़ी खासियत है व्रत रख कर भगवान की दी हर नेमत के लिए उसका शुक्र अदा करना। इसीलिए जब महीना गुज़रने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को ईद उल फितर आता है तो उसे मनाने में विशेष आनंद आता है।
इस महीने दान पुण्य के कार्यों करने को प्रधानता दी जाती है। इसीलिये इस मास को नेकियों और इबादतों का महीना कहा जाता है।
मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार इस महीने की 27वीं रात शब-ए-क़द्र को क़ुरान का नुज़ूल यानि अवतरण हुआ था। यही कारण है इस महीने में क़ुरान पढना बेहद शुभ होता है।
इस माह हर रात तरावीह की नमाज़ में कुरान का पाठ किया जाता है। जो लोग कुरान पढ़ नहीं सकते वे इसे सुन कर पुण्य लाभ ले सकते हैं।
रोजों के दौरान सूर्योदय से पहले ही निर्धारित समय में जो कुछ भी खाना पीना है उसे पूरा कर लिया जाता है जिसे सहरी कहते हैं। इसके बाद दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। इसके बाद शाम को सूर्यास्त के बाद एक तय समय पर रोज़ा खोलते हैं और तभी कुछ खाते पीते हैं। इस समय को इफ़्तारी कहते हैं।
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