विशाल गुप्ता, बरेली। बरेली की बड़ी कम्पनी ‘अशोका फोम’ में सोमवार की शाम एक बार फिर आग लग गयी। इस बार भी आग का कारण शार्ट सर्किट बताया जा रहा है। इस बार भी कम्पनी में अग्निशमन यंत्र ने काम नहीं किया। हाइडेण्ट में पानी नहीं मिला औरा पाइप चिपका हुआ निकला। इस बार भी फायर ब्रिगेड, एयरफोर्स की टीमों को घण्टों जूझना पड़ा अशोका फोम की आग बुझाने के लिए। यह महज इत्तेफाक है या कुछ और कि बीते कुछ सालों में कई बार अशोका फोम में ही आग लग चुकी है या यूं कहें पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा आग कहीं लगी है तो वह अशोका फोम में ही लगी है।
आग के बाद कम्पनी दोबारा और शानदार तरीके से फैक्ट्री और गोदाम का पुननिर्माण करती है। मगर ये आग है कि ठण्डी ही नहीं होती। वह फिर से गोदाम को अपने आगोश में लेकर सबकुछ भस्म कर देती है। इस बार की आग की खबर जब सोशल मीडिया पर फैली तो लोगों ने अपने जेहन में उमड़ रहे सवालों की बौछार कर दी। कोई इसे साजिश बता रहा है तो कोई बीमा कम्पनियों को चूना लगाने का हथकण्डा।
आइये देखते हैं ‘अशोका फोम’ की इस आग पर सोशल मीडिया पर आ रही जन भावनाएं।
जनमत कनेक्ट निदेशक और चुनाव विश्लेषक गिरीश पाण्डेय ने लिखा कि बरेली के इतिहास में आज तक सबसे अधिक आग… अशोका फोम में ही लगी है। लाखों-करोड़ों के नुकसान के वाबजूद हर बार पहले से अधिक भव्य बन जाता है ये संस्थान। हर 7-8 साल में इनके यहां आग लगती गयी.. अशोका फोम तरक्की करता गया। आग से लोग को बर्बाद होते सुना है। आबाद होते हुए सिर्फ अशोका फोम और दीपक स्वीट्स को ही देखा है।
गिरीश आगे लिखते हैं कि इस चमत्कार की जांच जरूरी है। वह सवाल उठाते हुए कहते हैं कि गम्भीर प्रश्न ये हैं कि
वरिष्ठ पत्रकार अनूप मिश्रा की पोस्ट पर भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गयी। अनूप ने कहा था कि इस प्रकार बार-बार आग लगने के कारणों की जांच होनी चाहिए। एक अन्य सोशल मीडिया यूजर Pintoo Rana लिखते हैं कि ये फर्जी आग हर साल लगती है इनके यहां। इसकी जांच होनी चाहिए। ये लोग बीमा कम्पनियों से मोटा क्लेम लेते हैं।
नवनीत मिश्रा नाम के सोशल मीडिया यूजर पूछते हैं कि आग बार-बार क्यूं लगती है बचाव के इंतजाम क्यों नहीं किये जाते? गजेन्द्र यादव ने तो यहां तक कह डाला कि ये आग लगवा-लगवा कर ही बड़े आदमी बने हैं। रुपेश राज गुप्ता ने लिखा कि हम इत्ते बड़े हो गये, दो-तीन बार ये लोग बीमा कम्पनी को चपत लगा चुके हैं।
प्रशान्त सिंह ने कमेण्ट किया कि बीमा भी तो होता है, उसका क्लेम भी तो लेना है। अंकुर सक्सेना ने लिखा कि इस आग की हकीकत जानते सब है लेकिन मानने को तैयार नहीं है। पाण्डेय सतीश लिखते हैं कि बीमा कम्पनियां पैसे देने से मना कर दे तो आग लगना बन्द हो जाएगी।
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