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अविरल और निर्मल गंगा के संकल्प के साथ हरि मंदिर में चल रही श्रीराम कथा का विश्राम

Bareillylive: धर्म के चार प्रमुख स्तंभ हैं। सत्य, तप, दया और दान। हम जिस समय में जी रहे हैं, वह कलयुग का प्रथम चरण है और हमारे सनातन सदग्रंथ बताते हैं कि कलयुग में दान करना ही सबसे बड़ा धर्म मार्ग है। उक्त बातें बरेली के मॉडल टाउन स्थित श्री हरि मंदिर के कथा मंडप में गंगा समग्र के आवाहन और अरुण गुप्ता जी के पावन संकल्प से आयोजित श्रीराम कथा के पूर्णाहुति सत्र में पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कहीं। सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए विश्व प्रसिद्ध प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में भगवान के वन प्रदेश की मंगल यात्रा, सुन्दर कांड, लंकाकांड और श्रीराम राज्याभिषेक से जुड़े प्रसंगों का गायन करते हुए कहा कि दान करना भी सबके बस की बात नहीं है। दान करने की क्षमता तप से प्राप्त होती है। जो व्यक्ति तब करता है उसके हृदय में दया का वास होता है और जब दया का भाव परिपक्व होता है तभी दान करने की इच्छा और शक्ति प्रबल होती है। यहां एक और विचारणीय बात है कि दान तभी संभव हो पाता है जब आपके पास कोई लेने वाला हो। जब हम कुंभ में पहुंचते हैं तो वहां पता चलता है कि हर कोई दान करने को तत्पर है लेकिन कोई लेने वाला ही नहीं है। हर शिविर में प्रसाद बनाकर के खाने वालों का इंतजार किया जाता है माइक पर घोषणा की जाती है लेकिन संख्या उतनी ही नहीं हो पाती है जितनी सामग्री तैयार करते हैं।

महाराज जी ने कहा कि मनुष्य दो कार्य से हमेशा बचने का प्रयास करता है एक तो भजन करना और दूसरा दान करना वास्तविकता यही है कि मनुष्य जब यहां से जाता है तो उसके साथ पक्ष में यही दो वस्तुएं पुण्य के रूप में जाती हैं। बाबा तुलसी कहते हैं कि कलयुग जैसा कोई अन्य युग इसलिए नहीं है की मात्र भगवान नाम का जाप विश्वास के साथ करने से ही मनुष्य का उद्धार हो जाता है। पूज्यश्री नें कहा कि महर्षि बाल्मीकि की यह शिक्षा मनुष्य को हमेशा याद रखने की आवश्यकता है कि भगवत प्रसाद का रस अपने आप प्राप्त नहीं होता है। इसके लिए प्रयास करना ही पड़ता है। जिस मनुष्य को इस प्रसाद का रस लग जाता है उसकी सभी कर्मेंद्रियां अपने आप भगवान में लग जाती हैं। और ऐसे ही मनुष्य का जीवन धन्यता को प्राप्त होता है। यह संसार मनुष्य के लिए कई प्रकार की बाधाओं से भरा हुआ है। हर किसी के पास अपनी व्यथा की एक अलग ही कथा है, जिसे सुनकर किसी का भी मन विचलित हो जाता है। लेकिन जब हम प्रभु की कथा सुनते हैं, चाहे किसी भी विधि से सुनते हैं तो मन में एक आनंद और नए उत्साह का निर्माण होता है।

पूज्य श्री ने कहा कि सतयुग, त्रेता और द्वापर से भी उत्तम है कलयुग का वर्तमान समय। क्योंकि आज हमारे धरा धाम पर देव लोक से आईं मां गंगा भी हैं और बाबा शिव के मुख से निकली अमृत धार के रूप में कथा गंगा भी हैं। 100 योजन दूर से भी अगर कोई हर हर गंगे का आवाहन करता है तो उसकी मां गंगा सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। ठीक उसी प्रकार से कथा गंगा रूपी सरोवर में अगर हम नित्य स्नान करते रहें, डुबकी लगाते रहें तो हमारा जीवन सहज, सरल और सुगम हो जाता है। प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि सनातन परिवार के लोगों से मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि अखाद्य वस्तुओं से अपने परिवार को बचाने के लिए संकल्पित हों। जिसके जीवन में जितना अधिक सदाचार होगा, उसकी परमात्मा के चरणों में उतनी ही प्रीति होगी। अपने जीवन का, अपने आय का दसवां भाग परमार्थ में लगाने वाले का न केवल यह जन्म सुधार जाता है बल्कि आने वाला जन्म भी सुंदर होता है। पूज्य श्री ने कहा कि अपना भविष्य नहीं जानने में ही मनुष्य की भलाई है। मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का ही आना-जाना लगा रहता है। ईश्वर की बनाई हुई व्यवस्था में यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि मनुष्य अपने आने वाले कल के बारे में नहीं जानता है। यदि उसे अपने कल के बारे में आज ही पता चल जाए तो वह सर्वदा दुखी ही रहेगा। इस संसार में कुछ भी अनिश्चित नहीं है। सब कुछ निश्चित है। भगवान की अपनी व्यवस्था है और वह संसार की भलाई के लिए ही है। धरती पर आने वाले मनुष्य का जाना भी तय होता है। और फिर नए स्वरूप में आना भी तय है। शरीर छोड़ने के बाद जीवात्मा को 12 दिनों में अपने स्वरूप की प्राप्ति हो जाती है, ऐसा गरुड़ पुराण में कहा गया है। पूज्यश्री ने कहा कि हमारे सनातन सदग्रंथ हमें जीवन जीने की कला सिखाते रहे हैं। आप अगर अपने जीवन में सचमुच सफल होना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी निद्रा पर काबू करें, दूसरा भोजन के मामले में कभी भी आनाकानी ना करें, जो भी सात्विक आहार मिले वह खाएं और अपने साथ किसी प्रकार की मजबूरी लाद कर नहीं चलें। सदग्रंथों की बात मानकर अपने जीवन में चलने वाला व्यक्ति सदा सफल होता है।

महाराज श्री ने कहा कि जीवन में कभी भी किसी कार्य के अपूर्ण होने से घबड़ाना नहीं चाहिए, क्योंकि हर कार्य का एक निश्चित समय होता है। और अगर किसी कारण से वह कार्य पूर्ण नहीं होता है तो भी मनुष्य को अपने प्रयास बंद नहीं करने चाहिए। हमारे सद्ग्रन्थ हमें सिखाते हैं कि जीवन में मनुष्य के लिए उसका अपना श्रम और उसका कर्म ही उसके भविष्य का निर्माण करते हैं। व्यासपीठ का सपत्नीक पूजन यजमान अरुण गुप्ता जी ने किया और सर्वश्री रामदयाल मोहता, दिनेश सोलंकी, डॉक्टर सत्यपाल गंगवार, विवेक जी, श्रीमती रेनू छाबड़ा, कंचन अरोड़ा, नीलम साहनी, अखिलेश सिंह और गुलशन आनंद जी और गंगा समग्र के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ भगवान की आरती की। राजेश कुमार जी राष्ट्रीय आयाम प्रमुख सहायक नदी गंगा समग्र ने सफल आयोजन के लिए सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। हजारों की संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए।

Sachin Shyam Bhartiya

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