विशाल गुप्ता, बरेली। बीते कुछ दिनों से महान क्रांतिकारी की सहयोगी रही क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के कुछ महत्वपूर्ण लेख गुम होने की बात मीडिया में चर्चा में है। ये लेख बरेली के लेखक रणजीत पांचाले के पास होने की बात कही जा रही है। जब रणजीत पांचाले ने कहा कि लेख उनके पास नहीं हैं तो उन पर उन्हें गायब करने का आरोप लगा। इस रिपोर्ट पर देश के अनेक क्रांतिकारियों के वंशजों, वामपंथी इतिहासकारों ने टिप्पणी की और इसे अत्यंत गंभीर कृत्य बताया। बात क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी के दस्तावेजों (9 लेख) की थी तो बरेली लाइव ने रणजीत पांचाले से बात की। इस पर रणजीत पांचाले ने विस्तार से साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए बताया कि उनके पास दुर्गा भाभी का कोई लेख नहीं है। प्रस्तुत हैं रणजीत पांचाले से बातचीत के अंश-
प्रश्न : पांचाले जी, पिछले कुछ दिनों से आप पर दुर्गा भाभी के कुछ दस्तावेज के गबन का आरोप मीडिया में लग रहा है। क्या मामला है? क्या आप दुर्गा भाभी से मिले थे।
रणजीत पांचाले :- हां, मैं दुर्गा भाभी से मिला था। मामला ये है कि ’वर्ष 2016 में सुधीर विद्यार्थी ने एक समारोह में मुझे पहली बार बताया था कि उनके पास दुर्गा भाभी की एक चिट्ठी है। जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी (दुर्गा भाभी की) कुछ सामग्री मेरे (रणजीत पांचाले) के पास है। इस पर मैंने सुधीर विद्यार्थी से कहा कि मेरे पास भाभी की कोई सामग्री नहीं हैं। मैं तो उनसे कोई सामग्री नहीं लाया था। अगर दुर्गा भाभी ने उन्हें ऐसी कोई चिट्ठी लिखी थी तो उन्होंने मुझे तभी क्यों नहीं बताया? ताकि भाभी को कोई भ्रम था तो मैं उसे तभी दूर कर देता। अब इतने सालों बाद जबकि वे जिंदा नहीं है तब उनकी चिट्ठी के बारे में क्यों बता रहे हैं ? इस पर सुधीर विद्यार्थी ने मुझसे कहा कि मेरे आपसे संबंध खराब हो गए थे इसलिए तब मैंने दुर्गा भाभी की चिट्ठी के बारे में नहीं बताया था।’
प्रश्न :- तो आप दुर्गा भाभी से कोई लेख या कोई अन्य दस्तावेज लाये थे या नहीं?
रणजीत पांचाले :- ’मेरे पास काफी किताबें, लेख आदि हैं और अपने लेखन-कार्य के दौरान मैं उन्हें प्रायः देखता रहता हूं। पिछले कुछ वर्षों में मैंने उनमें दुर्गा भाभी का कोई लेख नहीं देखा था। इसलिए मैंने लोगों से कहा कि मेरे पास दुर्गा भाभी का कोई लेख नहीं है। यही अंतिम सत्य भी है। मुझे लगा कि दुर्गा भाभी को कोई भ्रम था कि उनसे लेख मैं लाया था।’
उन्होंने कहा ’31 मई 3021 को एक हिंदी पोर्टल की एक रिपोर्ट में दुर्गा भाभी द्वारा 1985 में सुधीर विद्यार्थी को लिखी गई चिट्ठी को आधार बनाकर मुझे दुर्गा भाभी के नौ लेखों को छुपाने का अपराधी स्थापित किया गया। उनमें सात लेख दुर्गा भाभी के लिखे हुए, एक लेख रफी अहमद किदवई पर तथा एक लेख उनकी संस्था (उनके लखनऊ वाले स्कूल) के बारे में बताया जा रहा है। वह रिपोर्ट एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत प्रकाशित की गई ताकि लोगों में मेरे प्रति क्रोध उत्पन्न हो। मेरी छवि को धूमिल किया गया और लोगों को मेरे विरुद्ध भड़काया गया।’
प्रश्न :- तो क्या आप वाकई दुर्गा भाभी से कोई लेख नहीं लाये थे ?
रणजीत पांचाले :- ’31 मई 2021 को उस पोर्टल पर रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद मैंने यह जानने के लिए कि सुधीर विद्यार्थी से मेरे संबंध कौन से वर्ष में खराब हुए थे, मैंने अपनी 40 साल पुरानी चिट्ठियों के रिकॉर्ड को खंगाला। जिसमें मैं सुधीर विद्यार्थी के साथ अपने पत्राचार को देखना चाहता था। मुझे सुधीर विद्यार्थी द्वारा भेजे गए 1988 तक के पत्र मिले जिनमें से किसी में भी सुधीर विद्यार्थी ने दुर्गा भाभी के लेखों के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था। ये पत्र दुर्गा भाभी की 1985 की चिट्ठी के काफी बाद मुझे लिखे गए थे। अगर दुर्गा भाभी के लेख मेरे पास होते तो सुधीर विद्यार्थी उनके बारे में अपने इन पत्रों में जिक्र जरूर करते क्योंकि भाभी ने अपनी 1985 की चिट्ठी में वे लेख प्राप्त करने की जिम्मेदारी सुधीर विद्यार्थी को ही सौंपी थी।’
’अपने रिकॉर्ड में खोजबीन के दौरान मुझे दुर्गा भाभी की भी चिट्ठी मिली जो उन्होंने 13 फरवरी 1986 को मुझे लिखी थी। उसमें दुर्गा भाभी ने अपने लेखों के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था। अगर उनके लेख मेरे पास होते तो वे अपने पत्र में उनके बारे में अवश्य जिक्र करतीं।
’बहुत पुरानी बातें जिनसे व्यक्ति का कोई संबंध न रह गया हो उनके बारे में व्यक्ति की स्मृति बहुत धुंधली पड़ जाती है। मुझे यह स्मरण था कि मैं 1985 में दुर्गा भाभी से मिला था। लेकिन मैं उनके लेख लाया था यह मेरी स्मृति में नहीं था। सुधीर विद्यार्थी और पोर्टल के लोगों को गत 11 जून 2021 को लीगल नोटिस भेजने के बाद भी मैंने अपने पुराने पत्राचार के रिकॉर्ड को खंगालना जारी रखा। मुझे ऐसे कई पत्र मिले जिनसे स्मृति की कड़ियां जुड़ती चली गईं और मुझे स्पष्ट हो गया कि मैं दुर्गा भाभी से वे लेख 1985 के उत्तरार्द्ध में लाया था।
प्रश्न :- यानि आप लेख लाये थे, फिर उनका क्या किया? वे लेख हैं कहां?
रणजीत पांचाले :- मैं दुर्गा भाभी से वे लेख 1985 के उत्तरार्द्ध में लाया था और उसी वर्ष उन्हें उनके लेख लौटा भी दिए थे। दुर्गा भाभी की मुझे 28 जनवरी 1986 को लिखी एक चिट्ठी मिली है जिसमें उन्होंने अपने लिखे सातों लेख मुझसे वापस प्राप्त होने की बात स्वीकार की है। मेरे द्वारा उन्हें लिखी गई 2 नवंबर 1985 की चिट्ठी की प्रति भी मिली है जिसके साथ मैंने दुर्गा भाभी को रफी अहमद किदवई वाला लेख और उनकी संस्था (लखनऊ वाला स्कूल) संबंधी लेख वापस लौटाया था। मैंने अपने 14 नवंबर 1985 के पत्र के साथ दुर्गा भाभी के लिखे हुए सातों लेख लौटाए थे। उस पत्र की प्रति भी मुझे मिल गई है। दुर्गा भाभी को उनके सारे लेख मुझसे वापस प्राप्त हो गए थे। यही कारण है कि 13 फरवरी 1986 को मुझे लिखी अपनी चिट्ठी में उन्होंने अपने किसी भी लेख के मेरे पास होने का कोई जिक्र नहीं किया। इसीलिए उसके बाद दुर्गा भाभी ने अपने उन लेखों के बारे में अन्य किसी से भी कभी जिक्र नहीं किया, क्योंकि उन्हें सारे लेख मिल गए थे। दुर्गा भाभी द्वारा मुझे लिखी गई चिट्ठियां मेरे पक्ष में इस बात का ठोस प्रमाण हैं कि मेरे पास दुर्गा भाभी के लेख नहीं है।’
प्रश्नः- फिर आप पर आरोप क्यों लग रहे हैं?
रणजीत पांचाले :- ’मैंने सुधीर विद्यार्थी, उस पोर्टल के मालिक, पोर्टल के बरेली यूनिट हेड और पोर्टल के रिपोर्टर को बीती 11 जून को कानूनी नोटिस भिजवाए है। उसमें सुधीर विद्यार्थी का उत्तर आ गया है, जो अस्वीकार्य हैं। जुलाई माह में इन चारों के विरुद्ध मैं मानहानि का मुकदमा दायर कर दूंगा।’
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