रामलला की मूर्ति गढ़ने वाले प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगिराज ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने अविश्वसनीय बात कही – ‘जब मैंने मूर्ति बनाई तब वो अलग थी। गर्भगृह में जाने के बाद और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वो अलग हो गई। मैंने प्रभु को देखा तो लगा ये तो मेरा काम है ही नहीं। अंदर जाते ही उनकी आभा बदल गई। मैं उसे अब दोबारा नहीं बना सकता।’
प्रभु की लीला देखिए!
“…मूर्ति निर्माण होते समय अलग दिखती थी। लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा होते ही भगवान ने अलग रूप ले लिया है। जिस रामलला को सात महीने तक गढ़ा, उसे प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मैं खुद नहीं पहचान पाया था। गर्भगृह में जाते ही बहुत बदलाव हो गया…”