बरेली। हिंदी ग़ज़ल के महानायक दुष्यंत कुमार की 87वीं जयंती पर कवि डॉ अवनीश यादव को दूसरा दुष्यंत स्मृति साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। मानव सेवा क्लब एवं शब्दांगन के संयुक्त तत्वावधान में इन्द्रदेव त्रिवेदी के बिहारीपुर खत्रियान आवास पर हुए आयोजन में डॉ अवनीश यादव को सम्मान स्वरूप उत्तरीय, स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र मानव सेवा क्लब के अध्यक्ष सुरेन्द्र बीनू सिन्हा और शब्दांगन के महामंत्री इन्द्रदेव त्रिवेदी ने प्रदान किये।

इस अवसर पर शायर रामकुमार अफरोज ने दुष्यंत कुमार का जीवन परिचय प्रस्तुत किया। उनका कहना था दुष्यंत कुमार ने लीक से हटकर साहित्य सृजन कर रचनाकारों के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया। डॉ अवनीश यादव ने दुष्यंत कुमार को कालजयी ग़ज़लकार बताते हुए उनकी कई ग़ज़लें सुनायीं। उन्होंने कहा-

“कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए

कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।

न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढक ले जो

वो आदमी ही मुनासिब है हमसफ़र के लिए।”

सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने दुष्यंत कुमार को हिंदी का पहला शायर बताते हुए उनकी एक ग़ज़ल सुनाई-

“इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है

नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है।

एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तों

इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है। “

इन्द्रदेव त्रिवेदी ने दुष्यंत कुमार  की रचनाओं के भाव एवं कला पक्ष पर प्रकाश डालते हुए उनकी यह ग़ज़ल सुनाई-

“होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिए

इस परकटे परिंद की कोशिश तो देखिए।

उनकी अपील है कि उन्हें हम मदद करें

चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिए।”

इस अवसर पर उपस्थित अन्य रचनाकारों ने दुष्यंत कुमार को कभी न भूलने वाला सरल और सहज ग़ज़लकार बताते हुए उनका भावपूर्ण स्मरण किया। इस अवसर पर लाल बहादुर गंगवार, विनोद कुमार गुप्ता, राम प्रकाश सिंह ओज, अलका त्रिवेदी, कामाक्षी मेहरोत्रा आदि उपस्थित थे।

कार्यक्रम का संचालन सुरेन्द्र बीनू सिन्हा और आभार ज्ञापन इन्द्रदेव त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम के समापन पर पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणब मुखर्जी के दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

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