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धर्म के दस गुणों से सुशोभित हो मानव जीवन- साध्वी आस्था भारती

BareillyLive. बरेली के एमबी इण्टर कॉलेज मैदान पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस कथाव्यास साध्वी आस्था भारती जी ने सबसे पहले भगवान वामन के विराट स्वरूप का वर्णन किया। उसके उपरान्त श्रीकृष्ण के प्रकटीकरण को चित्रित किया गया। कथा दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा आयोजित की गयी है।

साध्वी आस्था भारती ने बताया कि धर्म की स्थापना के लिए ही वह परब्रह्म शक्ति समय-समय पर इस धरा पर अवतार लेकर आती है। जब मनुष्य भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोड़कर मनमाना आचरण करने लगता है, तब धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियाँ फैल जाती हैं। धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद-भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है। उस समय प्रभु अवतार लेकर ब्रह्मज्ञान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है।

स्थूल नेत्रों से दिखाई नहीं देता परमात्मा

लेकिन जिस प्रकार रेडियो तरंगों को देखने के लिए हमें एक सूक्ष्म यंत्र की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार सर्वव्यापक परमात्मा भी स्थूल नेत्रों से दिखाई नहीं देता है। उन्हें देखने के लिए एक अति सूक्ष्म यंत्र की आवश्यकता है। आध्यात्मिक शब्दावली में इस यंत्र को ‘दिव्य नेत्र’ कहा जाता है। इस दिव्य नेत्र द्वारा हम ईश्वर का दर्शन न केवल अपने भीतर अपितु सृष्टि के ज़र्रे-ज़र्रे में प्राप्त कर सकते हैं।

आज समाज को इसी धर्म की ज़रूरत है। केवल धर्म में इतना सामर्थ्य है, जो एक व्यक्ति का पूर्ण रूपांतरण कर सकता है। कारण कि जब धर्म प्रकट होता है तो अपने दस लक्षण भी मनुष्य के भीतर प्रतिष्ठित करता है। ये लक्षण हैं- धैर्य, क्षमा, संयम, अस्तेय, पवित्रता, इन्द्रिय-निग्रह, शुद्ध-बुद्धि, सत्य, उत्तम विद्या व अक्रोध! स्वाभाविक है, जब मनुष्य में ये लक्षण प्रतिष्ठित होंगे तो समाज, राष्ट्र और संपूर्ण विश्व स्वतः ही सुंदर, आदर्श एवं शांतमय दिखेगा इसलिए आवश्यक है कि आज का अशांत मनुष्य धार्मिक हो।

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