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स्मार्ट सिटी बरेली : जनहित के सुझावों पर ध्यान देना और सुनियोजित विकास करना होगा

केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार के प्रयास से बरेली को स्मार्ट सिटी घोषित हुए कई साल हो चुके हैं। केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी के नाम पर भारी-भरकम धनराशि भी दी है पर स्थानीय प्रशासनिक नीति निर्माताओं के चलते आज तक कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है और देश के स्मार्ट सिटी की सूची में बरेली लगभग अंतिम पायदान पर है। यह इस योजना में लगे अधिकारियो के लिए शर्म एवं चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि कुछ अधिकारियों का जनहित की उन योजनाओं पर ध्यान कम हैं जिनके पूरा होने पर आम नागरिक को रोजमर्रा की पेरशानी से राहत मिल सकती है।

उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) के प्रदेश उपाध्यक्ष और समाजसेवी निर्भय सक्सेना ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को इस बाबत एक पत्र भेजा है। पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के बरेली शहर को “स्मार्ट सिटी” घोषित हुए कई वर्ष हो गए हैं पर पूरे महानगर में न तो कोई पार्किंग बन पाई है और न ही कूड़ा निस्तारण का प्रोजेक्ट घरातल पर उतर सका है। इसका खमियाजा आम जनता को रोजाना भुगतना पड़ रहा है। हालांकि एक कूड़ा निस्तारण प्लांट लगा भी था पर वह सत्ता से अब जुड़े कुछ नेताओ के कारण कानूनी दांव-पेंच में उलझ गया।

बरेली में आज तक कोई सरकारी मेडिकल कॉलेज और कृषि विश्वविद्यालय नहीं है जबकि पूरा तराई क्षेत्र “क़ृषि पट्टी” के रूप में जाना जाता है। समय-समय पर सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधियों सर्वश्री संतोष कुमार गंगवार, डॉ. अरुण कुमार, राजेश अग्रवाल, पूर्व सांसद प्रवीण सिंह एरन, कुंवर सर्वराज सिंह, पूर्व मंत्री भगवत सरन, पूर्व मेयर डॉ. इकवाल सिंह तोमर आदि ने भी मेडिकल कॉलेज. कृषि विश्वविद्यालय, सार्वजनिक पार्किंग आदि के संबंध में केंद्र एवं प्रदेश सरकार को कई बार पत्र भेजे पर हुआ कुछ नहीं।

पत्र में कहा गया है कि बरेली स्मार्ट सिटी परियोजना से जुड़े कुछ अधिकारी बिना किसी ठोस योजना के केवल सरकारी धनराशि ठिकाने लगाने की जोड़तोड़ में लगे रहते हैं। वे राजनेताओं की भी उपेक्षा कर रहे हैं। सपा सरकार समय में मैंने शहर की बिजली सुधार की करोड़ों की “स्काडा योजना” में हुए बंदरबांट की जांच कराने का शासन से अनुरोध किया था। इस योजना में हुए बंदरबांट के करण कारण शहर के एक बड़े क्षेत्र में बिजली फाल्ट की समस्या बनी रहती है। “स्काडा योजना” की तरह अब सीवर बिछाने के कार्य पर भी अंगुली उठ रही है।

बरेली महानगर में पार्किंग के गलत प्रस्ताव पेश कर जनता को भी गुमराह किया जाता रहा है। शहर में अभी तक वाहन पार्किंग एवं कूड़ा निस्तारण की योजना परवान नहीं चढ़ सकी है। इस स्मार्ट सिटी के मुख्य बाजारों कुतुबखाना, श्यामगंज, किला, सिविल लाइंस आदि में आड़े-तिरछे वाहनों का जमावड़ा रहता है। यही हाल कचहरी, अदालत परिसर और जेल रोड का है जहां लगभग रोजाना जाम लगता है। यह चिंताजनक होने के साथ ही जन सुविधाओं की उपेक्षा भी दर्शाता है। तहसील परिसर, जेल रोड, सब्जीमंडी कुतुबखाना, श्यामगंज सब्जी मंडी, तिलक इंटर कॉलेज और राजकीय इंटर कॉलेज के पास में अगर लख़नऊ के जनपथ और दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर मल्टी स्टोरी पार्किंग और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स सरकारी या पीपी मोड़ में बन जाए तो काफी राहत मिल सकती है।

पत्र में कहा गया है कि श्यामगंज पुल की तर्ज पर डेलापीर, कुतुबखाना और सुभाषनगर में भी उपरगामी पुल बनावाने का दावा किया गया था। लगता है कि इन उपरिगामी पुलों की फ़ाइल भी कहीं दबी पड़ी है। अब शहर में स्पान के पुल बनाने की कागजी योजनाओं को बढ़ावा किसकी शह पर दिया जा रहा है?

किला क्षेत्र में रामपुर रोड से बदायूं रोड तथा नबाबगंज में पीलीभीत से नैनीताल रोड को जोड़ कर शहर का यातायात का दवाब कम किया जा सकता है। महानगर की ज्यादातर सड़कें बदहाल हैं। भारत सेवा ट्रस्ट वाली सड़क, प्रेमनगर-धर्मकांटा रोड, केके हॉस्पिटल रोड, आईवीआरआई रोड, सिटी स्टेशन रोड, बदायूं रोड,  अलखनाथ रोड, श्यामगंज पुल के नीचे की रोड सहित कई अन्य सड़कें बदहाल हैं।

बरेली महानगर की थोक सब्जी-फल मंडी 35 साल पूर्व डेलापीर जा चुकी है। अतिक्रमण से पटी कुतुबखाना और श्यामगंज सब्जी मंडियों तथा कुतुबखाना स्लाटर/मीट बाजार को हटाकर किसी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में भेज दिया जाए तो कुतुबखाना, श्यामगंज, कचहरी और किला क्षेत्र की बड़ी समस्या हल हो सकती है। 

पीएम और सीएम के भेजे ई-मेल में कहा गया है कि जनहित में बरेली विकास प्राधिकरण (बीडीए) का कार्यालय नगर निगम परिसर में ही होना चाहिए ताकि जिला परिषद के साथ बेहतर तालमेल कर महानगर समेत पूरे जिले का सुनियोजित विकास हो सके। शक्ति भवन और  विकास भवन की तर्ज पर मंडल स्तर पर मिनी सचिवालय भवन बनाएं जाए ताकि सभी सरकारी कार्यालय एक ही छत के नीचे आ सकें। इससे विभिन्न कॉलोनियों में निजी भवन में चल रहे  सरकारी कार्यालयों का भारी-भरकम किराया तो बचेगा ही, जनता को भी नहीं भटकना पड़ेगा। इसी तरह पहले मंडल स्तर पर प्रदेश सूचना विभाग का कार्यालय और अत्याधुनिक कम्प्यूटर युक्त संकुल बने, जो प्रदेश के विकास कार्यों को आर्ट गैलरी के माध्यम से दर्शकों को दिखा सके, सूचना विभाग प्रदेश के विकास कार्यों का साहित्य वितरण कर सके। साथ ही सूचना संकुल में प्रेस क्लब, निशुल्क पुस्तकालय भी खोले जाएं ताकि युवाओं में पुस्तक और समाचारपत्र पढ़ने की रुचि विकसित हो। ऐसे सूचना संकुल बाद में जिला स्तर पर भी खोले जाएं जिसकी उपजा काफी समय से मांग करती आ रही है।

निर्भय सक्सेना

(पत्र लेखक उपजा के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं)

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