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8 जुलाई जयन्ती पर विशेष : साहित्य के शिखर पुरुष गिरिराज किशोर

Sahitya Desk.गिरिराज किशोर की गणना हिन्दी के प्रमुख उपन्यासकारों में की जाती है। वे एक कालजयी उपन्यासकार होने के साथ-साथ बेजोड़ कथा शिल्पी एवं नाटककार भी थे। उनके उपन्यास ‘‘पहला गिरमिटिया’’ ने उन्हें साहित्य जगत में एक उपन्यासकार के रूप में पहचान दिलाई जबकि उनके कालजयी उपन्यास ‘‘ढाई घर’’ ने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया। गिरिराज किशोर वैचारिक दृष्टि से बहुत परिपक्व थे इसकी झलक हमें उनके उपन्यासों, कहानियों, नाटकों एवं लेखों में देखने को मिलती है। वे साहित्य के शिखर पुरुष थे और उनकी कृतियां हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।

गिरिराज किशोर का जन्म 8 जुलाई सन् 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर में हुआ था। इनके पिता जी एक जमींदार थे। इनका पालन पोषण बड़े लाड़-प्यार के साथ हुआ। अपनी शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने घर छोड़ दिया और स्वतंत्रत लेखन करने लगे।
बाद में उनका रुझान प्रशासनिक सेवा की ओर हुआ। उन्होंने सोशल वर्क में मास्टर डिग्री हासिल की थी इसलिए वे सन् 1960 से सन् 1964 तक उत्तर प्रदेश सरकार में जिला सेवायोजन अधिकारी एवं प्रोवेशन अधिकारी रहे। सन् 1966 से सन् 1975 तक वे कानपुर विश्वविद्यालय में उप कुलसचिव के पद पर कार्यरत रहे।

दिसम्बर 1975 से 1997 तक वे कानपुर में रचनात्मक लेखन केन्द्र के अध्यक्ष रहे। एक जुलाई 1997 को उन्होंने राजकीय सेवा से अवकाश ग्रहण किया। अपनी 37 वर्ष की राजकीय सेवा के दौरान वे निरन्तर साहित्य सृजन में लगे रहे।

उनका कालजयी उपन्यास ‘‘पहला गिरमिटिया’’ महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास में उनके द्वारा किए संघर्ष की पृष्ठभूमि पर आधारित था। यह उपन्यास साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुआ। यह उपन्यास महात्मा गांधी के स्वराज आन्दोलन से कुछ इस प्रकार जुड़ गया कि जब-जब महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता आन्दोलन का जिक्र होता तब-तब इस उपन्यास की चर्चा अवश्य होती।

गिरिराज किशोर के प्रमुख उपन्यासों में लोग ‘‘चिड़िया घर’’, ‘‘दो’’, ‘‘दावेदार’’, ‘‘इन्द्र सुनें’’, ‘‘तीसरी सत्ता’’, ‘‘यातना घर’’ आदि हैं। उनका सबसे चर्चित एवं लोकप्रिय उपन्यास ‘‘ढाई घर’’ सन् 1991 में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास पाठकों के मध्य बहुत लोकप्रिय हुआ और इस उपन्यास ने गिरिराज किशोर को साहित्य जगत में प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया। सन् 1992 में उन्हें इस उपन्यास के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

गिरिराज किशोर ने कई कालजयी कहानियां भी लिखीं जो पाठकों में बहुत लोकप्रिय हुईं। उनकी प्रमुख कहानियां हैं-‘‘नीम के फूल’’, ‘‘चार मोती’’, ‘‘बेआब’’, ‘‘पेपर वेट’’, ‘‘रिश्ता’’, ‘‘शहर-दर-शहर’’, ‘‘बल्द रोजी’’ एवं ‘‘यह देह किसकी’’ आदि।

उन्होंने कई प्रसिद्धि नाटक भी लिखे। ‘नरमेध’, ‘प्रजा ही रहने दो’, ‘चेहरे-चेहरे किसके चेहरे’, ‘मेरा नाम लो’, ‘जुर्म आयद’, ‘काठ की तोप’, ‘देहान्त’, ‘गुलाम बादशाह’ एवं ‘जिल्ले सुभानी’ आदि। इनके नाटक-‘चेहरे-चेहरे किसके चेहरे’ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें ‘‘भारतेन्दु सम्मान’’ से सम्मानित किया।

गिरिराज किशोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। सम-सामयिक विषयां पर आधारित उनके लेख समय-समय पर देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते थे। उनके लेख बहुत विचार उत्तेजक एवं तथ्य परक होते थे। वे कालजयी उपन्यासकार, बेजोड़ यशस्वी नाटककार एवं कुशल निबंधकार थे। उनके लेखों में विचारों का स्वच्छ प्रभाव देखने को मिलता है।

गिरिराज किशोर आम आदमी से जुड़े साहित्यकार थे। आम आदमी की समस्याओं, उनकी रुचियों-अभिरुचियों एवं उनके मनो विज्ञान की उन्हें गहरी समझ थी। उनके उपन्यासों एवं कहानियों में आम आदमी का प्रतिबिम्ब झलकता है। जिससे पाठक उनसे गहरा लगाव अनुभव करता है। पारिवारिक एवं सामाजिक ताने-बाने पर बुनी हुई उनकी कहानियां एवं उपन्यासों में हमें समाज का प्रतिबिम्ब स्पष्ट रुप से दिखाई देता है।
उनकी यह विशेषता थी कि अपनी रचनाओं में वे जितनी सहजता एवं सरलता से समाज के उच्च वर्ग का चित्रण करते थे उतनी ही साफगोई से वे समाज वंचित वर्ग की पीड़ा को भी उजागर करते थे। उनमें किस्सा गोई की गजब की क्षमता थी जिसके कारण उनकी कहानियां एवं उपन्यास पाठक को अन्त तक बांधे रखने की क्षमता रखते हैं। कथ्य और शिल्प की दृष्टि से उनकी कहानियां एवं उपन्यास बेजोड़ हैं और हर युग में उनकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।

साहित्य के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक सम्मानों एवं पुरस्कारों से समादृत किया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा उन्हें उनके साहित्य में दिये गये अपदान के लिए ‘‘भारतेन्दु सम्मान’’, ‘‘साहित्य भूषण सम्मान’’ तथा ‘‘महात्मा गांधी सम्मान’’ से समादृत किया गया।

उनके ‘‘पहला गिरमिटिया’’ उपन्यास के लिए उन्हें ‘के.के. बिरला फाउण्डेशन’ द्वारा ‘व्यास सम्मान’ प्रदान किया गया। उन्हें उनके कालजयी उपन्यास ‘‘ढाई घर’’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1907 में उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘‘पदम श्री’’ से अलंकृत किया गया।

9 फरवरी सन् 2020 में कलम का यह अमर सिपाही चिर-निद्रा में लीन हो गया। देहावसान का समाचार सुनकर कानपुर में उनके अन्तिम दर्शन के लिए जनसैलाव उमड़ पड़ा था। उनके पंचतत्व में विलीन होने से साहित्य के एक युग का अवसान हो गया। अपनी कालजयी कृतियों के माध्यम से वे सदैव अमर रहेंगे।

सुरेश बाबू मिश्रा
(लेखक सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं साहित्य तथा सामाजिक विषयों के जानकार हैं।)

Vishal Gupta 'Ajmera'

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