उन्होंने कहा कि वास्तव में रामराज्य का निर्माण भरतजी ने किया था, श्रीराम तो मात्र उसके उपभोक्ता थे। समझाया कि श्रीभरत जी का त्याग प्रभु श्रीराम के त्याग से भी बड़ा है। उन्होंने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने तराजू के एक पलड़े पर भरत और दूसरे पर श्रीराम, सीता व लक्ष्मण को रखा तो पाया कि श्रीभरत जी का पलड़ा भारी था।
पंडित ब्रजेश पाठक ने कहा कि वे तीनों वचन में त्याग, संयम व सेवा करने गए थे। भरतजी जब प्रभु श्रीराम की खड़ाऊं लेकर चित्रकूट से अयोध्या लौटे तो वह नंदीग्राम की कुटिया में वैरागी बन गये। रामराज्य की भूमिका नंदीग्राम की एक छोटी सी कुटिया में रहकर भरत जी ने ही लिखी है। वास्तव में रामराज्य के निर्माता श्रीभरतजी ही थे न कि श्रीराम। श्रीराम तो वास्तव में रामराज्य के उपभोक्ता थे।
यहां पर श्रीराम कथा के शुभारम्भ से पूर्व श्रीकृष्ण गुप्ता, मिथलेश गुप्ता, राजेश सक्सेना, आनन्द प्रकाश माहेश्वरी आदि ने विचार व्यक्त किये।
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