विभिन्न परीक्षाओं में आए दिन अनियमितता के आरोप लगते रहते हैं। इस देखते हुए शीर्ष अदालत का यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण है। न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने यह व्यवस्था इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा केरल हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए दी है।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि उत्तर पुस्तिका की स्कैंड कॉपी और साक्षात्कार के अंक परीक्षार्थियों को मुहैया कराने से प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता आएगी तथा फेयर गेम सुनिश्चित किया जा सकेगा। छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लंबा समय खर्च करते हैं, लिहाजा उन्हें यह जानकारी देना उचित होगा।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया है, जिसमें उत्तर पुस्तिका की जांच करने वाले (परीक्षक) का नाम भी परीक्षार्थियों को बताने के लिए कहा गया था। अदालत ने साफ किया कि परीक्षक का नाम बताना मुनासिब नहीं है। इससे उस पर खतरे की आशंका रहेगी। इतना ही नहीं परीक्षक का नाम पता चलने पर असफल परीक्षार्थी भविष्य में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अपने फायदे के लिए अनधिकृत तरीके से उनसे संपर्क कर सकते हैं।
पीठ ने कहा कि अगर हम हर परीक्षा में परीक्षक के नाम का खुलासा करने के लिए कहेंगे तो असफल अभ्यर्थी परीक्षक से बदला भी ले सकते हैं। परीक्षक और लोक सेवा आयोग सहित अन्य परीक्षा आयोजित करने वाली अथॉरिटी के बीच विश्वास का रिश्ता होता है।
आयोग को पूर्ण विश्वास होता है कि परीक्षक पूरी ईमानदारी और सावधानी से बिना किसी पक्षपात के उत्तर पुस्तिकाओं की जांच करेगा। वहीं परीक्षक को भी यह भरोसा होता है कि उसके द्वारा किए गए कामों के कारण वह किसी तरह के खतरे में नहीं पड़ेगा।
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