बरेली, 21 जनवरी 2016। गुरुवार को अपने शहर में एक ‘खामोश अदालत’ लगी। इसमें स्त्री के अस्तित्व और अस्मिता को मस्तिष्क को झकझोरने वाले कई सवालों पर मंथन करने को मजबूर कर दिया गया। क्या स्त्री का शरीर ही उसकी पहचान है? क्या यही उसका आखिरी सत्य है? क्या एक स्त्री का शरीर ही उसका अस्तित्व है। क्या.. चंद शब्दों में बहाकर कोई भी उससे खेल सकता है। क्या अमर प्रेम की पूर्णता उसके अधूरेपन में है? यही वे सवाल हैं जिन्हें इस अदालत में बड़ी कुशलता पूर्वक उठाया गया।
यह सभी सवाल उठे आज से विण्डरमेयर में शुरू हुए थिएटर फेस्ट में जब ‘खामोश अदालत जारी है’ नाटक का मंचन हुआ। जब कलाकारों ने अपना हुनर मंच पर दिखाया तो हाॅल में मौजूद हर व्यक्ति सोचने लगा और अपलक देखता रहा मंच पर चल रही अदालत को।
इस नाटक में एक स्त्री के जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़ी ही संजीदगी से मंचित किया गया। एक कुंवारी स्त्री को किन सामाजिक झंझावातों से गुजरना पड़ता है। समाज शादी में देरी पर किस तरह अटकलें लगाने लगता है। लोगों की नजरें किस तरह हरदम आचरण को संदेह की नजर से देखती हैं, इसको बहुत सलीके और कुशलता से मंच पर कलाकारों ने दिखाया।
इस नाटक में रंगविनायक रंगमंडल के प्रारम्भ से लेकर अब तक के सफर की झलकियों को दिखाया गया। कई कथाओं के मोतियों से माला बनाने का काम लव तोमर ने किया। निर्देशन दानिश खान का रहा।
गुरुवार को इसी के साथ विंडरमेयर ब्लैक बॉक्स थिएटर में 10वें थिएटर फेस्ट का शुभारंभ हुआ। शुभारम्भ निर्देशक और लेखक अमरीक एस. गिल. ने किया। विंडरमेयर में नाटक का मंचन के दौरान जिन नाटकों के दृश्य प्रस्तुत किये गये उनमें शुरूआत वीर अभिमन्यु नाटक सेे हुई। इसके बाद रंग अभंग , ऑफ माइस एंड मेन और फिर एक डायरेक्टर की ख्वाहिश और अंत में खामोश अदालत जारी है का मंचन किया गया।