…और वो महात्मा बुद्ध से करने लगी प्रेम, फिर…

बरेली 30 जनवरी। छुआछूत, ऊंचनीच, भेदभाव, जातपात आज भी कायम है। अब ये सबकुछ नये ढंग से हो रहा है। अब जाति और धर्म के आधार पर चुनाव जीता जाता है। अपने और पराये के आधार पर लोग पहचाने जाते हैं। इसी बात पर प्रहार करता रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित कहानी पर आधारित नाटक चंडालिका का मंचन यहां विण्डरमेयर में चल रहे थिएटर फेस्ट में शनिवार को किया गया। इसी के साथ थिएटर फेस्ट का समापन भी हो गया।

नाटक में चंडालिका की बेटी प्रकृति द्वारा बोला गया संवाद जो मुझे मानता है मैं उसे मानती हूं। जो समाज हमें मानता मैं उसे मानती हूं। जो धर्म मेरा सम्मान करता है मैं उसका सम्मान करती हूं। वो धर्म किस काम का जो बांटता है अपमानित करता है। यह डायलाॅग इस नाटक की आत्मा से आत्मसात कराता है।

यह भगवान गौतम बुद्ध के दौर की घटना पर आधारित नाटक है। इसमें जादू टोना करने वाली चंडालिका मुख्य भूमिका में है। उसकी एक कन्या प्रकृति भी होती। जिसे समाज अछूत मान कर अपने पास नहीं आने देता। वह दही बेचने वाला हो, चूड़ी या अन्य वस्तु बेचने वाली महिलाएं वह भी उससे दूर रहते हैं। इस कहानी में एक बार गौतम बुद्ध जाते हुए पानी पीने के लिए चंडालिका के घर आ जाते हैं। पीने को पानी मांगते हैं मगर वह खुद को अछूत बता कर पानी पिलाने से झिझकती है। फिर भी वह उसके हाथों से पानी पीते हैं और चले जाते हैं।

इस बात पर खुद के प्रति सम्मान महसूस करते हुए प्रकृति उनसे प्रेम करने लगती है। वह उनके दुबारा आने के इंतजार करती है। मां उसे समझाती है। एक बार फिर भगवान बुध उसके घर के सामने से गुजरते हैं और उसकी ओर देखे बिना ही चले जाते हैं। इसका उसे बहुत दुख होता है। वह इसे अपना अपमान समझती है और अपनी मां से नागपाश मंत्र के जरिए उन्हें बुलाने की जिद करती है। मां चंडालिका मंत्र का जतन करती है। मंत्र के तेज प्रभाव से वह मूर्छित हो जाती है। अंत में भगवान बुद्ध आते हैं और फिर दोनों ही सन्यासिनी के तौर पर उनकी शरण में चली जाती हैं। नाटक यहीं पर खत्म होता है।

ठाकुर रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा 1933 में लिखी गई इस नाटक की कहानी आज भी उतनी ही सच लगती है। नाटक को अपने निर्देशन से सजया प्रसिद्ध निर्देशक उषा गांगुली ने। मंच सज्जा, प्रकाश व्यवस्था और संगीत शानदार रहा। नाटक का मंचन रंगकर्मी थियेटर ग्रुप कोलकाता के कलाकारों द्वारा किया गया। अंत में आरबीएमआई की निदेशक बीना माथुर ने उषा गांगुली को शाल और बुके देकर सम्मानित किया।

आयोजन की सफलता में दया दृष्टि के चेयरमैन डा. ब्रिजेश्वर सिंह, सीईओ शिखा सिंह, डा. गरिमा सिंह, डा. शालिनी अरोड़ा, शिवानी रेकी, भुवनेश्वर सिंह, चरन कमल जीत सिंह, संजीव अग्रवाल, नवीन कालरा, दानिश खान, स्मिता श्री, गोपिका, रईस खान, विनोद यजुर्वेदी की पूरी टीम के समर्पण का विशेष योगदान रहा।

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