मोहित ‘मासूम’, बरेली : मोहनदास करमचंद गांधी यानि महात्मा गांधी को इस देश में ब्रांड बना दिया गया है। एक ऐसा ब्रांड जिसे सब अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं। हालांकि आमतौर पर बापू को या तो उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर याद किया जाता है या फिर राजनीतिक हित साधने के लिए। यदि ऐसा न होता तो उनकी समाधि की दुर्दशा न हो रही होती। बरेली के बिहारीपुर कसगरान में स्थिति गांधी प्रतिमा ही दरअसल वह समाधि है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर तो छोड़ ही दीजिये, बरेली में भी लोग नहीं जानते। यहीं पर दफन है बापू की चिता भस्म जिसके ऊपर इस छोटी सी समाधि को बनाकर उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी थी। हाल ये है कि जयंती-पुण्यतिथि पर भी यहां कोई नेता या सरकारी कारिंदा नहीं पहुंचता। उपेक्षा का शिकार यह गांधी समाधि स्थल काफी जर्जर हो चुका है।
इस समाधि स्थल पर दफन की गयी चिता भस्म (फूल/अस्थियां) को गांधी जी के अंतिम संस्कार में शामिल रहे भूप नारायण आर्य बरेली लाये थे। इसी भस्म पर समाधि बनाने के बाद महात्मा गांधी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित की गई थी। बाद में इस मिट्टी की मूर्ति के स्थान पर संगमरमर की मूर्ति लगायी गयी। गांधी समिति के महामंत्री सुनील चौधरी ने बताया कि कोई भी व्यक्ति स्वयं समाधी स्थल पर आकर दीवार पर अंकित इस महत्वपूर्ण तथ्य को पढ़ सकता है। अपनी पीड़ा बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि इतनी महत्वपूर्ण जगह होने के उपरांत भी उनकी संस्था को छोड़कर किसी भी अन्य संस्था, व्यक्ति या राजनीतिक दल सहयोग करने को तत्पर नहीं है। परिणामस्वरूप इस ऐतिहासिक स्थान का कायाकल्प नहीं हो पा रहा है।
सुनील चौधरी इस समाधि स्थल का इतिहास भी बताया। उनके अनुसार समाधि स्थल बनाने के उपरांत हर रविवार को यहां पर हवन का आयोजन शुरू हो गया। स्वर्गीय भूप नारायण आर्य के बाद उनके सुपुत्र स्वर्गीय शांति स्वरूप ने इस व्रत को बखूबी निभाया। उनके बाद उनके छोटे भाई ज्ञान स्वरूप आर्य, जो आर्य समाज अनाथालय सिविल लाइंस के मंत्री भी रहे थे, ने हवन और भजन के कार्यक्रम को निरंतर समर्पण भाव से जारी रखा। उनके दिवंगत होने के उपरांत उनके सुपुत्र जितेन्द्र कुमार आर्य इस संकल्प-यात्रा को जीवंत किए हुए हैं।
समाधि स्थल के निर्माण से से लेकर अब तक यह परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी अपने खर्च पर समर्पण भाव से यहां हवन और भजन का आयोजन करता आ रहा है। कोरोना काल में प्रोटोकॉल के कारण फिलहाल इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया है।
सुनील चौधरी ने बताया कि सन् 2015 से जगदीश कुमार संस्था के अध्यक्ष हैं। जीर्ण-शीर्ण होती जा रही महात्मा गांधी के इस ऐतिहासिक समाधी स्थल के कायाकल्प के लिए अगर कोई पहल करता है तो हम बरेली की ऐतिहासिक विरासत को बचा सकते हैं। यहा गांधी जी के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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