स्पर्श चिकित्सक वीरेन्द्र शर्मा से बातचीत
विशाल गुप्ता, बरेली। किसी के स्पर्श और हल्के से थपथपाने से दर्द से मुक्ति मिल जाये तो पीड़ा से कराहते लोगों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं है। भले ही विज्ञान की दुनिया में इससे अचरज माना जाये लेकिन भारतीय समाज में अतिप्राचीन काल से ही इसे स्पर्श चिकित्सा कहते हैं। ऐसे ही स्पर्श चिकित्सा करने वाले चंडीगढ़ के वीरेन्द्र शर्मा पिछले दिनों बरेली में थे। बरेली लाइव से बातचीत में उन्हें इसे ईश्वरीय और संतों की कृपा बताया। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
बरेली लाइव : शर्मा जी, आपका स्वागत है। लोगों को दर्द से मुक्ति दिलाने का ये संकल्प कब से चल रहा है।
वीरेन्द्र शर्मा : धन्यवाद विशाल जी। मैं पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर रहा हूं। गुरु के आदेश से 1972 से इस निष्काम सेवा में लगा हूं।
बरेली लाइव : इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के बावजूद लोगों का इलाज करने यानि चिकित्सा में कैसे आना हुआ?
वीरेन्द्र शर्मा : दैवयोग से आना हुआ। जब युवा थे तो एक पीर से भेंट हुई। मैं उन्हें लोगों का इलाज करते हुए देखता था। मरीज के दर्द का स्थान पूछा, थोड़े से तेल से मालिश की। फिर एक थपकी देकर भेज देना। अधिकांश मरीज पहले ही दिन ठीक हो जाते थे। कुछ, जो ज्यादा तकलीफ में होते थे, वे तीन-चार दिन ऐसे ही करने से स्वस्थ हो जाते थे।
उन्हें देखते हुए मन में विचार आया कि इंजीनियर की नौकरी में क्या मिलेगा? अगर यह विधि सीख ली तो मौजा ही मौजां। बस! इसी उम्मीद में पीर साहब की सेवा में लग गये। इसी बीच नौकरी भी चलती रही। कई साल बीत गये, फिर एक दिन उनसे मन की बात यानि सीखने की बात कह डाली। उन्होंने झट से कहा कि तेरे मन में अभी से लालच है। तू इस विद्या से पैसे बनाने की सोच रहा है। ऐसे कैसे सीखेगा।
मैं असमंजस में था कि उन्हें मेरे मन की बात कैसे पता कि मैं क्या सोच रहा हूं। खैर… उन्होंने नहीं सिखाया लेकिन मैं सेवा में लगा रहा। धीरे-धीरे मेरे मन से लालच जाता रहा।
बरेली लाइव : फिर कैसे सीखा, क्या उन्होंने सिखाया?
वीरेन्द्र शर्मा : नहीं, समय बीता और एक दिन 1972 में गुरु जी का देहान्त हो गया। वह मुस्लिम थे, इसलिए उनको दफनाया गया। उन्हें सुपुर्द-ए-खाक करने के बाद मैं भारी मन से घर जाकर सो गया। देर रात सपने में गुरू जी आये। बोले-तू निःस्वार्थ भाव से बिना पैसे लिये लोगों का इलाज कर। जिस व्यक्ति के दर्द हो, उसको तेल से मालिश कर, थोड़ा थपथपा देना।
मैंने पूछा कि कौन सी नस दबाना है, कहां मालिश करना है मुझे क्या पता? इस पर बोले-आंख बंद करेगा तो तुझे सब दीखने लगेगा। मैं घबराकर उठ गया। समझ में नहीं आ रहा था कि ये सपना है या हकीकत या मेरे मन का वहम? लेकिन मन में उत्सुकता थी कि ट्राई तो करुंगा ही।
बरेली लाइव : इसके बाद कैसे ट्राई किया?
वीरेन्द्र शर्मा : मेरे पिता सेना में थे। वह सुबह मीटिंग में जाने की तैयारी में थे कि उनकी गर्दन अकड़ गयी। उन्होंने मुझसे डॉक्टर को बुलाने को कहा तो मैंने कहां अकड़ी, यह देखने के बहाने गर्दन को स्पर्श किया थोड़ी मालिश की फिर पिताजी से गर्दन घुमाने को कहा, गर्दन सही हो चुकी थी, दर्द गायब पिता जी ने पूछा कि क्या किया तो सपने की बात बतायी। इस पर वह बोले-संयोग से हो गया बेटा। और किसी पर कोशिश मत करना, कुछ उल्टा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे।… हम कहां मानने वाले थे, सेवा का सफर शुरू हो चुका था, जो आज तक अनवरत निष्काम भाव से जारी है।
बरेली लाइव : यदि कोई कुछ धन देता है तो क्या स्वीकार करते हैं?
वीरेन्द्र शर्मा : इस सेवा के बदले मैं कुछ नहीं लेता। कोई व्यक्ति या संस्था कुछ देती है तो उसे हम अपने उपयोग में नहीं लेते। उस पैसे को जरूरतमंदों के इलाज पर खर्च करते हैं।
बातचीत के दौरान उद्यमी एनके मोदी, पंकज अग्रवाल, नवीन गोयल, विजय कमाण्डो और सज्जन नेमानी मौजूद रहे।