-पुणे में आयोजित आज़ादी का अमृत महोत्सव एवं आजाद हिंद सम्मेलन में देश के अनेक योद्धाओं ने भाग लिया
-इंडिया गेट पर सुभाष बोस की फौज का स्मारक बनाने तथा इतिहास का पुनर्लेखन कर उपेक्षित महान देशभक्तों को उसमें उचित स्थान देने की उठी मांग
डॉ. रणजीत पांचाले
24 से 26 जुलाई, 2022 तक पुणे में एक अनूठा आयोजन हुआ। संभवत: यह देश में पहला ऐसा आयोजन था जिसमें बड़ी संख्या में सेना के तीनों अंगों के वीरता पदकों से सम्मानित सैन्याधिकारियों एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पदक प्राप्त उच्च सैन्याधिकारियों ने किसी सिविल प्लेटफार्म से अपने विचार व्यक्त किए। इस त्रिदिवसीय सम्मेलन में प्रथम दिन आजादी का अमृत महोत्सव एवं नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 125वां जन्म वर्ष मनाया गया। दूसरे दिन भारत-पाक युद्ध (1971) का स्वर्णिम वर्ष मनाया गया। अंतिम दिन कारगिल विजय दिवस मनाया गया। सम्मेलन में पूर्व सैन्याधिकारियों के अलावा, आजाद हिंद फौज के अधिकारियों के परिवारीजनों, विद्यराथियों, एनसीसी कैडेट्स, शोधकर्ताओं तथा देश के विभिन्न भागों से आए गणमान्य नागरिकों ने भाग लिया।
मुख्य अतिथि विंग कमांडर जगमोहन नाथ (महावीर चक्र एवं बार) ने सम्मेलन एवं प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर स्वाधीनता प्राप्ति में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान पर प्रकाश डालते हुए मेजर जनरल जी.डी. बक्शी ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता समर में 60,000 सैनिकों की आज़ाद हिंद फौज के 26,000 सैनिकों ने देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी दी थी। लगभग आधी फौज ने अपना खून बहाया था। इसलिए यह कहना गलत है कि हमें आज़ादी “बिना खड्ग बिना ढाल” मिल गई थी।
जनरल बक्शी ने भारत सरकार से दिल्ली के इंडिया गेट पर आज़ाद हिंद फौज के 26000 शहीद सैनिकों की स्मृति में वार मेमोरियल बनवाने की मांग की। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिंद फौज ने भले ही मोर्चा खोया, लेकिन युद्ध जीत लिया था और भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था।
समारोह में 1971 के भारत-पाक युद्ध में वीर चक्र से सम्मानित ग्रुप कैप्टन डी.के. दास एवं कारगिल युद्ध में महावीर चक्र प्राप्त नायक दिगेन्द्र कुमार ने विस्तार से अपने युद्ध संस्मरण सुनाए जिनसे प्रतिभागियों को विदित हुआ कि दुश्मन देश ने भारत के समक्ष कड़ी चुनौती पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन देश की सेना ने उसे मुंहतोड़ जवाब दिया था। एयर मार्शल भूषण गोखले, ग्रुप कैप्टन दिलीप दिघे (वीर चक्र), मेजर उदय साठे (वीर चक्र), पद्मश्री मुरलीकांत पेटकर आदि इस अवसर पर उपस्थित थे।
आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत “स्वाधीनता संग्राम में गदर आंदोलन और रासबिहारी बोस की भूमिका” विषय पर व्याख्यान देते हुए वरिष्ठ लेखक रणजीत पांचाले ने कहा कि आजादी की लड़ाई में गदर पार्टी के क्रांतिकारियों और रासबिहारी बोस की महत्त्वपूर्ण भूमिका को भारत के इतिहास में समुचित स्थान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।
समारोह में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फौज के मेजर जनरल जे.के. भोंसले तथा मेजर जनरल जी.आर. नागर के परिवारीजनों ने इन महान देशभक्त सेनानायकों से संबंधित संस्मरण सुनाए। समारोह में कैप्टन शंगारा सिंह, कैप्टन गोविंद राव किरडे, लेफ्टिनेंट पी.एन.ओक, नेताजी के साथी श्री पोसवई सुरो एवं श्री परमानंद यादव के परिजनों ने भी भाग लिया।
आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान उन देशभक्तों का तो स्मरण आवश्यक है ही जिन्होंने हमें स्वतंत्रता दिलाई थी, लेकिन 1947 के बाद जो हमारी आज़ादी की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए हैं, उनका भी स्मरण किया जाना भी आवश्यक है। साथ ही जो अभी भी जीवित हैं उनके भी प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का यह अवसर है।
सम्मेलन के दूसरे दिन 1971 के भारत-पाक युद्ध का स्वर्णिम वर्ष मनाया गया जिसमें कर्नल पी.एस. सांघा (वीर चक्र) ने लोंगेवाला मोर्चे पर लड़े गए युद्ध के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि लोंगेवाला की तरफ से पाकिस्तान का हमला अप्रत्याशित था। उस समय सेना का ध्यान अन्य मोर्चों पर केंद्रित था। इसके बावजूद शीघ्र तैयारियां करके पाकिस्तान को करारा जवाब दिया गया था। विंग कमांडर सुरेश कार्निक (वीर चक्र), सीमैन आनंदराव सावंत (शौर्य चक्र), हवलदार संतोष राले (कीर्ति चक्र) आदि इस अवसर पर उपस्थित थे।
सम्मेलन में कमांडो रामदास भोगड़े को देखकर कुछ लोगों की आंखें नम हो गईं। सुकमा (छत्तीसगढ़) के जंगल में पैट्रोलिंग के वक्त नक्सलियों द्वारा बिछाई गई लैंडमाइन के ब्लास्ट हो जाने पर अपने दोनों पैर गंवा देने वाले सीआरपीएफ के कमांडो रामदास भोगले जब सभागार में प्रोस्थेटिक पैरों पर आए तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। मंच पर आपबीती सुनाने के बाद उन्होंने कहा कि वे शरीर से भले ही दिव्यांग हो गए हैं लेकिन उनका मस्तिष्क पूरी तरह सुरक्षित है। वे अब भी सीआरपीएफ में कार्यरत हैं और पैरालंपिक में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने हेतु निरंतर दौड़ने का अभ्यास कर रहे हैं। सभागार में लोगों ने खड़े होकर करतल ध्वनि से उनका तथा उनकी पत्नी का अभिनंदन किया।
अंतिम दिन कारगिल विजय दिवस मनाया गया जिसमें कारगिल युद्ध के दौरान 56 माउंटेन ब्रिगेड के कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल अमरनाथ औल ने काफी विस्तार से इस युद्ध के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह एक कठिन लड़ाई थी जो 50 दिन चली थी। इसमें युवा अधिकारियों ने अदम्य साहस और कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन किया था। अपने भाषण के दौरान कर्नल वी.एन. थापर ने कारगिल युद्ध में बलिदान अपने बेटे कैप्टन विजयंत थापर (वीर चक्र) का मृत्यु से पहले परिवार को लिखा गया पत्र पढ़कर सुनाया। अपने इस पत्र में कैप्टन विजयंत थापर ने लिखा था कि अगर उन्हें फिर से मानव जीवन मिला तो वे पुनः सेना में सम्मिलित होकर देश के लिए लड़ेंगे। मात्र 22 वर्ष की आयु में बलिदान हो जाने वाले अपने बेटे पर गर्वित कर्नल थापर ने सभागार में बैठे युवाओं से सेना में सम्मिलित होने का आह्वान करते हुए कहा कि देश की सेवा के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान भारतीय सेना है। साथ ही उन्हें सलाह देते हुए कहा कि आप सदैव यह सोचें कि देश को आप क्या दे रहे हैं। आप कभी भी ऐसा कुछ न करें जिससे राष्ट्र को ज़रा-भी हानि हो और अपने जीवन को आप हमेशा बहादुरी के साथ जिएं। उल्लेखनीय है कि कर्नल थापर खुद भी 1965 तथा 1971 के युद्ध लड़ चुके हैं।
कारगिल युद्ध के समय 8 माउंटेन डिवीजन की आर्टिलरी ब्रिगेड के कमांडर रहे मेजर जनरल लखविंदर सिंह ने इस युद्ध में प्राप्त विजय में आर्टिलरी के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आर्टिलरी ने गोलों की बरसात करके दुश्मन पर कहर बरपा दिया था जिससे दुश्मन को भागने पर विवश होना पड़ा और उसके काफी सैनिक मारे गए थे। दीमापुर (नगालैंड) से आए अतुली केंगूरूसे ने कारगिल युद्ध में बलिदान अपने भाई कैप्टन निकेजाको केंगूरूसे (महावीर चक्र) के बारे में बताया कि वे एक बेहतरीन इंसान थे। उनमें देशभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी। कर्नल राजेश तंवर ने कारगिल क्षेत्र की विषम परिस्थितियों के बारे में प्रकाश डाला। भारत चीन-युद्ध (1962) के रेजांग ला मोर्चे के योद्धा कैप्टन रामचंद्र यादव ने बताया कि कठिनाइयों और अभावों के बीच भी उस युद्ध में सैनिकों का मनोबल काफी ऊंचा था।
समारोह स्थल पर आज़ादी की लड़ाई का एक ऐतिहासिक तिरंगा झंडा भी लगाया गया जो 1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था तथा जिसे जवाहरलाल नेहरू ने आज़ाद हिंद फौज के मेजर जनरल जी.आर. नागर को सौंप दिया था। वर्षों से उनके परिवार के पास सुरक्षित रखे इस झंडे को स्वाधीनता के बाद पहली बार यहां उनके पौत्र देव नागर ने प्रदर्शित किया। एक कक्ष में निनाद जाधव ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर देश की स्वतंत्रता से पहले तथा बाद में लिखी गई पुस्तकों तथा उन पर समय-समय पर जारी डाक टिकटों और सिक्कों को प्रदर्शित किया। इसी कक्ष में महाराष्ट्र के स्वाधीनता सेनानियों और आज़ाद हिंद फौज के मेजर जनरल जगन्नाथराव कृष्णराव भोसले के चित्रों की भी प्रदर्शनी डॉ. बालकृष्ण ललित एवं जेडब्ल्यूओ शरदचंद्र पाठक द्वारा लगाई गई।
पुणे के एस एम कॉलेज ऑफ कॉमर्स साइंस एंड इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में संपन्न यह कार्यक्रम डीएफएल मीडिया एवं अवार्ड्स प्रा.लि. तथा यूनाइटेड आईएनए फैमिलीज़ एंड एक्टविस्ट एसोसिएशन (UINAFAA) के संयुक्त तत्वावधान में हुआ था। सम्मेलन के संयोजक डीएफएल ग्रुप के निदेशक नरेश गोला तथा UINAFAA के नीलेश विसपुते थे। समारोह के अंत में नगालैंड में 1944 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथी रहे पोसवई सुरो के पुत्र वीको सुरो ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।