बरेली। शुक्रवार को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या अर्थात वट सावित्री अमावस्या है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु और परिवार में सुख समृद्धि के लिए वट सावित्री अखंड व्रत का अनुष्ठान करती हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या यानि वट सावित्री अमावस्या इस बार 22 मई को पड़ रही है। यदि इस व्रत को पूर्ण मनोयोग से किया जाये तो इसे सौ गुना फलदायी माना गया है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. नरेश चंद्र मिश्रा बताते हैं कि वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ अर्थात वट वृक्ष की पूजा की जाती है। सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर कुमकुम, अक्षत से पूजन करती हैं। इसके बाद वृक्ष के तने में चारों तरफ से कलावा या धागा बांधती हैं। इस प्रकार पूरे विधि विधान से पूजन के पश्चात सती सावित्री की कथा सुनती हैं। माना जाता है कि सती सावित्री की कथा को सुनने से महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
मान्यता के अनुसार सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को यमराज से प्राण वापस लेकर जीवित किया था। इसीलिए इस अमावस्या को वट सावित्री अमावस्या और इस व्रत वट सावित्री व्रत कहा जाता है।
डॉ. नरेश चंद्र मिश्रा बताते हैं कि अमावस्या तिथि का शुभारम्भ 21 मई की रात 9.35 बजे से होगा तथा 22 मई की रात 11.08 बजे तक अमावस्या तिथि रहेगी। बताया कि भले ही अमावस्या 21 मई की रात को लगेगी लेकिन उदयातिथि का मान होने के कारण वट सावित्री व्रत का अनुष्ठान 22 मई को ही किया जाना श्रेयस्कर होगा।
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