बरेली। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित “आपदाकाल में पत्रकारिता” विषयक बेविबार में कोरोना काल में दिवंगत हुए पत्रकारों के परिवारीजनों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता दिए जाने की मांग जोर-शोर से उठी। उपजा प्रेस क्लब के अध्यक्ष डॉ.पवन सक्सेना ने कहा कि आज न केवल देश बल्कि पूरी मानव सभ्यता के सामने बहुत बड़ा खतरा है। कोरोना से न सिर्फ जान का नुकसान हुआ है बल्कि पूरी सामाजिक बुनावट के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
डॉ सक्सेना ने कहा कि आज जरूरी है कि वे सभी पत्रकार जो पूर्व में अपनी सेवाएं मीडिया जगत के लिए देते रहे हैं अथवा किसी न किसी डिजिटल माध्यम पर ब्लॉगिंग करते हैं, वेबसाइट का संचालन करते हैं या किसी भी अन्य तरीकों से अपने विचार व्यक्त करते हैं, अपना ऑब्जर्वेशन और अपनी रिपोर्ट अवश्य लिखें। समाज के सामने सही तस्वीर प्रस्तुत होना जरूरी है। चारों तरफ भ्रम का वातावरण है जिससे सही जानकारी और सही तथ्य ही बाहर निकाल सकते हैं।
डॉ. सक्सेना ने कोरोना की आपदाकाल में अपनी जान गंवाने वाले बलिदानी पत्रकार साथियों के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार से आर्थिक सहायता की मांग की और कहा कि घोषणाओं के अनुरूप आर्थिक मदद शायद उन पत्रकारों तक नहीं पहुंच पाएगी जो वास्तव में फील्ड में रात-दिन एक कर के काम करते हैं और अपना जीवन गंवा देते हैं। इसके लिए सरकार को अपने नियमों को शिथिल करना होगा। ऐसे पत्रकार जिन्होंने अपना जीवन खोया है, उनके परिवारों की चिंता करते हुए उनकी मदद के मामलों को सिर्फ कागजी कार्रवाई में ना उलझा कर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। हम सभी जानते हैं बहुत सारे मीडिया हाउसेस अपने पत्रकारों को ऑन रिकॉर्ड नहीं रखते हैं। गिने-चुने संस्थानों को छोड़ कर बाकी संस्थानों में पत्रकारों का कोई रिकॉर्ड मिल पाना मुश्किल होता है। ऐसे में सरकार को चाहिए की स्थानीय पत्रकार संगठन और स्थानीय सूचना विभाग की मदद से सूची बनाकर दिवंगत हुए पत्रकारों के परिवारों तक आर्थिक मदद जल्द से जल्द पहुंचाई जाए।
डॉ. पवन सक्सेना ने इस बात पर अफसोस जताया कि आलोचना का बुरा मानने की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है पर हमें ध्यान रखना होगा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए आलोचना भी आवश्यक है और हर आलोचना विरोध नहीं होती, सकारात्मकता और सुधार का रास्ता भी दिखाती है।
वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने कहा कि पत्रकार अपडेट रहकर कहीं न कहीं लिखें जरूर। अगर मीडिया संस्थान हमारी रिपोर्ट को किसी दबाव में नकार दें तो भी तो भी हम अपने ब्लॉग या सोशल मीडिया पर तथ्यों के साथ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर ही सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस आपदा काल में मीडिया कई तरह के आरोपों से घिरा हुआ है और अब तो समाचारों को गलत तरीके से पेश करने का दंश भी पत्रकार ही झेलता है। एक पुरानी कहावत है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता है। इसलिए हमें सजग रहते हुए तथ्यों के आधार पर अपनी रिपोर्टिंग को बल देना होगा।
निर्भय सक्सेना ने कहा कि यह सही है कि आज कार्पोरेट घरानों के दौर में संस्थान के हित के लिए मीडिया जगत का भी बाजारीकरण गया है। विज्ञापनों के प्रभाव ने पत्रकारो को भी दबाव में ला दिया है। अब तो पत्रकार को उसका संस्थान भी केवल अपना प्रतिनिधि मानता है, पत्रकार नहीं। यही कारण है इस कोरोना काल में पत्रकार अधिक दवाब में हैं। बरेली में कई पत्रकारो ने कोविड काल में जान गंवाई पर उन्हें संस्थान या सरकार से मदद कम ही मिली। उनके पत्रकार साथी ही उन्हें धीरज बंधाते रहे। पत्रकार संगठन भी मानते हैं कि सरकार नियमों से अलग हट कर पत्रकारों की मदद करे। उन्होंने कहा कि इससे दुखद क्या होगा कि सबके दुख-दर्द में खड़े होते रहे और अब दिवंगत हो चुके पत्रकारों के परिवार अकेला महसूस कर रहे हैं। अन्य श्रमजीवी पत्रकार भी किसी तरह अपना जीवन यापन कर पा रहे हैं।
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राकेश मथुरिया ने कहा कि समय के साथ-साथ पत्रकारिता में बहुत बदलाव आ गया है। पत्रकारों का काम सूचना पहुंचाने का ही रह गया है, फिर भी इस आपदाकाल में पत्रकारिता करना एक चुनौती से कम नहीं है।
वेबिनार का संचालन करते हुए भारतीय पत्रकारिता संस्थान के निदेशक सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने कहा कि किसी भी परिस्थिती में कोरोना से पीड़ित पत्रकारों के परिवारीजनों को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए।
इस बेविनार का आयोजन भारतीय पत्रकारिता संस्थान और मानव सेवा क्लब के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
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