शरद सक्सेना, आंवला। एक बालक जो भविष्य में कुछ बनने का सपना लेकर स्कूल गया, स्कूल प्रबंधन की बदइंतजामी का शिकार होकर मौत के मुंह में समा गया। भले ही मोहित की मौत टैंकर की चपेट में आने से हुई, लेकिन बड़ा सवाल ये कि सुबह पढ़ने स्कूल गया मोहित इंटरवल में स्कूल से निकलकर सड़क पर कैसे आ गया?
क्या स्कूल प्रबंधन केवल फीस लेकर बच्चों को ककहरा सिखाने का कर्तव्य निभाता है। क्या पढ़ने आये बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की नहीं है? आखिर स्कूल टाइमिंग के दौरान बच्चे की जिम्मेदारी किसकी है?
एक बालक की मौत पर लोगों में उबाल आना स्वाभाविक है। उनका क्रोधित होना, टैंकर क्षति पहुंचाना या टैंकर चालक को पकड़कर पीटना या पुलिस के हवाले करना, सब कुछ ठीक है। लेकिन सवाल वही कि आखिर मोहित टैंकर तक पहुंचा कैसे?
आखिर मौत का जिम्मेदार कौन?
क्यों स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को इंटरवल में बिना किसी कर्मचारी के सड़क पार करने दी। क्यों बच्चों को स्कूल के भीतर नहीं रोका जाता। क्यों उन्हें सड़क पर या सड़क पार बिक रही चीजों को खरीदने के लिए बिना आया या चपरासी के भेज दिया गया। अगर बच्चा बिना बताये ही चला आया तो क्यों स्कूल के गेट में ताला नहीं डाला गया था।
होता यही है कि लोग बिना मानक पूरे किये येन-केन-प्रकारेण अपने घरों या छोटी जगहों पर स्कूल खोल लेते हैं। ग्रामीणों को किसी प्रकार समझाबुझाकर या अच्छी पढ़ाई का सपना दिखाकर बच्चों का दाखिला लेते हैं। लेकिन उसकी जिम्मेदारी नहीं समझते। ऐसे में क्या सिर्फ टैंकर चालक ही जिम्मेदार है? क्या स्कूल प्रबंधन या ऐसे स्कूलों को मान्यता देने वाले अधिकारी इस मौत के लिए जिम्मेदार नहीं हैं?