mayor election 2017बरेली ( विशाल गुप्ता) अपने शहर में नगर निगम चुनाव की सुगबुगाहट बीते कुछ महीनों से ही शुरू हो गयी थी लेकिन पिछले चंद दिनों में अंदरखाने राजनीतिक हलचल तेज हो गयी है। सभी संभावित अपनी-अपनी गोटें बिछाने में लगे हैं। सबसे ज्यादा मारामारी भारतीय जनता पार्टी के टिकट को लेकर है। सभी संभावित प्रत्याशी अंदरखाने पैठ बढ़ाने में लगे हैं। मगर आज के एक वाकये ने भाजपा के अंदर हलचल और बढ़ा दी है। लोग अब इसके राजनीतिक मायने खोजने लगे हैं।

जब से निवर्तमान मेयर डॉ. आई.एस. तोमर का कार्यकाल पूरा हुआ है, हर ओर अगला मेयर कौन होगा इसके कयास लगाये जाने लगे हैं। हर कोई अपने गणित कि हिसाब से नाम तय बता रहा है। मेयर चुनाव को लेकर सबसे अधिक चर्चा इस बात की है कि सीट सामान्य ही रहेगी या पिछड़े वर्ग के कोटे में जाएगी। आईए अब चर्चा करते हैं सीट के दावेदारों और आज की घटना की।

अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अगर सीट ओबीसी हो जाती है तो? ऐसे में भाजपा को डॉ. तोमर के एक विरोधी की आवश्यकता थी। भाजपा का एक धड़ा डॉक्टर तोमर के सामने किसी मजबूत डॉक्टर को ही लाने में जुटा था, लेकिन कोई चेहरा समझ नहीं आ रहा था। इस बीच भाजपा जिलाध्यक्ष रवीन्द्र सिंह राठौर को भी मेयर प्रत्याशी बनाने की चर्चा हुई लेकिन जिस तरह से हाल में उनकी उपेक्षा हुई और उन्हें दुःखी होकर अज्ञातवास में जाना पड़ा, उससे भी भाजपा की अंदरूनी कलह समझी जा सकती है। हालांकि नवाबगंज के नगर पंचायत अध्यक्ष रहे राठौर को प्रशासनिक अनुभव के आधार पर एकमद नजरंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन उनके विरोधी नगर पंचायत और नगर निगम के सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक अंतर के आधार पर डॉक्टर तोमर के सामने भी किसी मजबूत डॉक्टर को लाने की बात कर रहे थे।

ऐसे में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे डॉ. सत्येन्द्र सिंह की ओर निगाहें थीं। डा. सत्येन्द्र बेबाक बोलने और लिखने के लिए जाने जाते हैं। इन दिनों वह समाजवादी पार्टी के कार्यक्रमों में भी नहीं दिखायी दे रहे हैं। अगर उनकी सोशल मीडिया में टिप्पणियों को भी देखा जाये तो वह भाजपा की लाइन के करीब ही दिखती हैं।

अब हुआ यह कि कभी मेयर डॉ. आई.एस. तोमर के सदैव साथ खड़े रहने वाले डॉ. सत्येन्द्र को उनके सामने कैसे खड़ा किया जाये। भाजपा नेताओं की यह दुविधा इस बार के आईएमए चुनाव ने पूरी कर दी। डा. सत्येन्द्र सिंह अध्यक्ष पद के उम्मीदवार थे, उनके सामने डा. राजेश ने खम ठोका। हालांकि आईएमए सूत्रों के अनुसार डॉ. राजेश खुद उम्मीदवार नहीं थे, उन्हें मेयर डॉ. आईएस तोमर ने खड़ा किया था। डॉ. सत्येन्द्र के कद और वरिष्ठता और डा. तोमर के अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप ने आईएमए को दो भागों में बांट दिया। और यह चुनाव सीधे तौर पर डॉ. तोमर बनाम डा. सत्येन्द्र हो गया। चूंकि दोनों ही समाजवादी पार्टी के नेता हैं और डा. सत्येन्द्र गाहे-बगाहे डॉ तोमर के पक्ष में ही खड़े दिखायी दिये, लेकिन इस आईएमए चुनाव की राजनीति ने डॉ. तोमर और डॉ सत्येन्द्र के बीच अनदेखी दीवार खड़ी कर दी।

Dr satyendra singhहालांकि चर्चा की खास वजह रही इसके बाद की घटना। गुरुवार को चुनाव में डा. राजेश के हटने के बाद डा. सत्येन्द्र आईएमए के 2018-19 के लिए अध्यक्ष बन गये। इसके बाद शुक्रवार को भाजपा के दिग्गज और केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार, भाजपा नेता गुलशन आनन्द और आदेश प्रताप सिंह के साथ डॉ. सत्येन्द्र सिंह को पुष्पगुच्छ लेकर बधाई देने पहुंच गये। शाम से यह फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। हालांकि दोनों ने ही इसे एक आत्मीय भेंट बताया लेकिन राजनेता इसके राजनीतिक निहितार्थ निकालने लगे।

अगर मेयर सीट सामान्य ही रहती है, हालांकि इसकी उम्मीद बहुत ही कम है, क्योंकि पिछले दो बार से सामान्य ही रही है। फिर भी सामान्य होने पर सबसे ज्यादा दावेदारी डॉक्टर प्रमेन्द्र माहेश्वरी की मानी जा रही है। डा. प्रमेन्द्र बीते काफी समय से अपने चिकित्सकीय पेशे से इतर समाजसेवा के कामों में भी खासे सक्रिय और लोकप्रिय हो रहे हैं। चाहे रोटी बैंक के माध्यम से भूखों को भोजन देना हो या विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी हो, वह हर कहीं दिख जाते हैं। अपनी इसी सक्रियता और लोकप्रियता के दम पर वे मैदान में खम ठोंक रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हवाई अड्डे पर प्रधानमंत्री के स्वागत के मौके छीन लेने से वे अपनी राजनीतिक समझ का भी संकेत भी बड़े लोगों को दे चुके हैं। हालांकि उनकी राह का रोड़ा पिछली बार भाजपा के उम्मीदवार रहे गुलशन आनन्द होंगे। वह भाजपा के दिग्गज और केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार के बेहद करीबी माने जाते हैं और उनके साथ हर मौके पर दिखते भी हैं। टिकट वितरण में भी संतोष गंगवार की खासा दखल रहता ही है।

इसके अलावा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेण्ट प्लांट को लेकर चर्चा में रहे इंवर्टिस विश्वविद्यालय के चांसलर उमेश गौतम को भी कुछ लोग दावेदार मान रहे हैं, लेकिन पार्टी में उनको लेकर बहुत उत्साह नहीं दिखायी दे रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में वह बसपा के टिकट से मैदान में थे और कहीं मुकाबले में नहीं दिखे थे।

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