बरेली। हमारे शरीर के सभी अंग सेल्स (कोशिकाओं) से बने होते हैं। ये सेल्स लगातार विभाजित होते रहते हैं लेकिन कई बार बेकाबू होकर बंटने लगते हैं जिससे शरीर में गांठ (ट्यूमर) बन जाती है। यह गांठ दो तरह की हो सकती हैं- बिनाइन और मैलिग्नेंट। बिनाइन गांठ खतरनाक नहीं होती जबकि मैलिग्नेंट गांठ कैंसर में बदल जाती है। अपनी लाइफ स्टाइल को दुरुस्त रखें तो कैंसर से बहुत हद तक बचा जा सकता है।
यह जानकारी विश्व कैंसर दिवस पर जिला अस्पताल में आयोजित शिविर में एसीएमओ डॉ. आरएन गिरी ने दी।
नॉन कम्युनिकेबल डिजीज विभाग के एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. राजीव रंजन राय ने बताया कि सर्वाइकल और ब्रेस्ट कैंसर का कारण अनुवांशिक भी हो सकता है। इसलिए समय-समय पर जांच कराना जरूरी होता है। सबसे ज्यादा कैंसर मुंह, गले और फेफड़ों का होता है। इन तीनों ही कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू है, फिर चाहे बीड़ी-सिगरेट हो या गुटखा। स्मोकिंग से प्रोस्टेट, किडनी, ब्रेस्ट और सर्विक्स कैंसर के भी चांस बढ़ जाते हैं। पुरुषों में करीब 50 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की वजह तंबाकू होता है। खुश रहने के अलावा रोजाना 6-7 घंटे की अच्छी नींद भी बहुत जरूरी है। ऐसा करने से शरीर कैंसर से लड़ने की क्षमता हासिल करता है।
पैथोलॉजिस्ट डॉ. हरमीत पुरी ने बताया कि रोजाना कम-से-कम 30-45 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। कुछ और नहीं कर सकते तो तेज रफ्तार से सैर ही करें लेकिन ऐक्टिव रहें। हो सके तो घर से बाहर जाकर रोजाना एक घंटा खेलें। दरअसल, अगर शरीर में फैट ज्यादा होता है तो फैट में मौजूद एंजाइम मेल हॉर्मोन को फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजिन में बदल देते हैं। फीमेल हॉर्मोन ज्यादा बढ़ने पर ब्लड कैंसर, प्रोस्टेट, ब्रेस्ट कैंसर और सर्विक्स (यूटरस) कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। हाई कैलरी, प्रीजर्व्ड या जंक फूड, नॉन-वेज ज्यादा लेने से समस्या और बढ़ जाती है। पिज्जा, बर्गर, चिप्स जैसे जंक और फैटी फूड ज्यादा खाने और फाइबर (सब्जियां, फल आदि) कम खाने से शरीर में टॉक्सिंस यानी जहरीले पदार्थ जमा हो जाते हैं। बेहतर है कि ज्यादा-से-ज्यादा हरी सब्जियां और फल लें। इनमें फाइबर और एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं। एंटी-ऑक्सिडेंट बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर कैंसर सेल्स को मारने में मदद करते हैं।
शिविर में मानसिक रोग विभाग की डॉ. खुशअदा ने कई मरीजों की काउंसलिंग कर उन्हें उचित सलाह दी। शिविर में एनसीडी विभाग द्वारा बीपी और शुगर की जांच की गई। स्टाफ नर्स रानू ने बताया कि शिविर में 96 मरीजों की शुगर और बीपी की जांच की गई फिर उन्हें डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी गई।
– शौच कई बार जाना पड़ रहा हो या पेशाब भी अधिक मात्रा में आने लगी हो या सोने-जागने का वक्त बदल गया हो
– मुंह खोलने, चबाने या निगलने में दिक्कत हो रही हो
– लगातार कब्ज रहती हो या 3 हफ्ते या ज्यादा से एसिडिटी लगातार बनी हुई हो (हर एसिडिटी कैंसर नहीं होती, पर यह एक लक्षण हो सकता है)
– 3 हफ्ते से ज्यादा लंबे समय से खांसी हो
– मुंह में या फिर शरीर में कहीं भी जख्म हो और 3 हफ्ते से ज्यादा वक्त से भरा नहीं हो
– बार-बार बुखार हो रहा हो या सभी इलाज के बाद भी बुखार 3 हफ्ते तक ठीक न हो रहा हो
– हीमोग्लोबिन यानी एचबी बेहद कम हो जाना
– शरीर में कहीं भी गांठ हो और वह बढ़ रही हो (दर्द न हो तो भी दिखाएं क्योंकि कैंसर में दर्द बहुत बाद की स्टेज में होता है)
– बलगम, पेशाब, शौच, इंटरकोर्स या पीरियड्स के बीच में बार-बार खून आना
– आवाज़ में बदलाव आ रहा हो, आवाज़ भारी हो रही हो
ये लक्षण दिखने के बाद भी 90 फीसदी चांस हैं कि कैंसर न हो लेकिन अगर कैंसर होगा तो शुरुआती स्टेज में बीमारी की जानकारी मिल जाए तो बेहतर इलाज मुमकिन है।
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