नाटक त्रिशंकु 1

बरेली। किरदार बदलते रहते हैं, साथ-साथ विचार बदलते रहते हैं। मन की जद्दोजहद इंसान को कचोटती रहती है कि अब तक जो किया वह कितना सही, कितना ग़लत हुआ। एसआरएमएस रिद्धिमा हॉल में मंचित नाटक त्रिशंकु की पृष्ठभूमि यही रही।

त्रिशंकु कहानी है उस युवक की जो अपने माता-पिता के कहने पर उन्हीं के अनुसार पढाई तो कर लेता है और बड़ा होकर सफल आदमी बनने की कोशिश भी करता है। हर दरवाजे को खटखटाता है लेकिन समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म के चलते सफल नहीं हो पाता और त्रिशंकु बनकर रह जाता है। यह नाटक हमें सिखाता है कि माँ-बाप को अपनी इच्छाएं बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए बल्कि उन्हें उनके अनुसार आगे बढ़ने में उनकी मदद करनी चाहिए।

नाटक की सूत्रधार या यूं कहें मुख्य किरदार नीलम जोशी एक नाटककार की ही भूमिका में थीं जिन्हें अपने मन के अंदर उमड़ रहे विभिन्न भावों को आपस मे पिरो कर एक नाटक की पटकथा लिखनी थी पर वह उन भावों के झंझावातों में फंस कर रह जाती हैं। ऐसे में उनसे एक लड़का टकराता है जो अपनी तमाम शैक्षिक योग्यताओं के साथ बड़ी शिद्दत से एक अच्छी नौकरी तलाश कर रहा है, जिसके लिए वह नेता, अफ़सर, सेठ के दरवाजे तक जाता है। अंत तक वह इस प्रयास में नाकाम रहता है और बुद्धिजीवियों द्वारा भी प्रताड़ित किया जाता है। अतः में हार कर मंच से दूर भाग जाता है।

नाटक आज के समाज की कार्यप्रणाली पर एक चोट है जहाँ एक ओर पढ़ा-लिखा युवा नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है, वहीं दूसरी ओर अभिजात्य वर्ग को अपनी दुनिया से फ़ुर्सत ही नहीं है।

नाटक की प्रमुख भूमिकाओं में विनायक वर्मा, नीलम वर्मा, गौरव धीरज, शिवम यादव, जीत, मानेश यादव, अभिनव, प्रतुल, अंशुमान, सौम्या, रमाकांत, रिया सक्सेना, संजीवनी महान और डॉ दीपशिखा जोशी रहे।

नाटक का निर्देशन वरिष्ठ नाटककार अम्बुज कुकरेती द्वारा किया गया। प्रकाश व्यवस्था अजय चौहान, नईम, रवीन्द्र, जसवंत ने संभाली। पार्श्व संगीत सूर्यकांत चौधरी, शिव शम्भू कपूर और ऑगस्टीन फ़्रेडरिक द्वारा दिया गया। अन्य ध्वनियां अरुण, जाफ़र, पुलकित द्वारा प्रस्तुत की गयीं।

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