आखिर कौन है भारतवर्ष की पीढ़ियों को बर्बाद करने का जिम्मेदार?

विवेक सक्सेना

राम मन्दिर पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के उपरान्त जिस तरह सर्वसमाज की ओर से इस फैसले का स्वागत हुआ, वह निश्चित ही स्वागत योग्य है। साथ ही प्रशासनिक चुस्ती और सामाजिक चेतना के कारण कहीं से कोई अप्रिय घटना का समाचार न मिलना भी बेहद प्रशंसनीय है।

इसके विपरीत इस सुखद अहसास के बाद गौर करने योग्य बात ये है कि जहां भारत का सुप्रीम कोर्ट भी यह मान रहा है कि भगवान राम ही सत्य हैं। वहीं देश का एक खास बुद्धिजीवी वर्ग समाज की इस आस्था, विश्वास एवं सनातन संस्कृति के खिलाफ सदियों के इस सत्य को झुठलाता रहा है और प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को ही नकार रहा है।

ऐसे में सवाल यह कि भारतवर्ष की पीढ़ियों को बर्बाद करने का जिम्मेदार कौन है? देश की सामाजिक एवं धार्मिक चेतना को बर्बाद करने का जिम्मेदार कौन है?

वो सोच जो दशकों से समाज को यह सिखाती रही कि राम और कृष्ण काल्पनिक हैं। वो सोच जो यह सिखाती रही कि औरत सिर्फ सेक्स का एक साधन है। समाज को व्यभिचार, नशे की लत में डूबकर भारतीयता, परिवार के सामाजिक ताने-बाने से दूर करने का अपराध विचारों की चाशनी में लपेटकर करती रही है। दशकों बाद वही सोच जो बुर्जुआ बनाम सर्वहारा की लड़ाई बनकर समाज के रक्तरंजित करके आज वापस पूंजीवाद की गोद में बैठकर भारतीय जनमानस के मंदिर के समर्थन में फैसले पर भी शर्मिन्दा करने का प्रयास कर रही है। वह कोई और नहीं, विषैला वामपंथ ही है। यह वही वामपंथ है जो अभी बीते दिनों भारत एवं भारतीयता का छठा वीभत्स हत्यारा अमेरिका द्वारा कहा गया है।

यह वामपंथ के विष का ही असर है जो कभी आपको जेएनयू में देश विरोधी नारे सुनायी देते हैं तो कभी आतंकवादियों एवं नक्सल के मानवाधिकारों की पैरवा करता समाज का कथित बुद्धिजीवी वर्ग दिखायी देता है। जहां यह वामपंथ नारी के स्वतंत्रता और उन्मुक्त सेक्स की बात करता है तो दूसरी ओर सामाजिक सुरक्षा की बात करते-करते किसी निर्भया के अपराधी को ईनाम भी देता है।

यहां खास बात ये कि समाज इनकी शातिरता को समझ नहीं पा रहा है। कभी सोचा है कि क्यूं हजारों वर्षों का इतिहास अब सिर्फ ईसाकाल एवं मूलनिवासी की लड़ाई तक सिमट गया है?

कभी सोचा है कि जिस समाज में द्वापर युग में द्रौपदी के मान-सम्मान पर आंच आने पर महाभारत का युद्ध हो गया था, उसी भारत वर्ष में आज दुधमुंहे बच्चों के साथ व्यभिचार पर भी अजीब से चुप्पी क्यों है? रगों में इस निकम्मेपन का जिम्मेदार कौन है?

जहां विदेशी आक्रमणकारियों ने तलवार की ताकत से गर्दन पर हमला किया, वैसे ही वामपंथ ने शब्दों के जाल में फंसाकर दिमाग पर हमला किया वामपंथ ने शब्दों के जाल में फंसाकर इंसान को ठीक वैसे ही मानसिक गुलाम बना दिया, जिस तरह एक महावत हाथी के बच्चे के पैर में जंजीर बांधना प्रारम्भ करके धीरे-धीरे उसे हमेशा के लिए जंजीर का गुलाम बना देता है।

असल में वामपंथ की विचारधारा की नर्सरी लगायी ही इसलिए जाती है कि किसी भी समाज एवं देश को बिना युद्ध के प्रबुंद्ध आतंकियों द्वारा मानसिक गुलाम बना सकें। उदाहरण के रुस एवं भारत, जो सोवियत संघ कभी उद्योग जगत में अव्वल था वह आज टुकड़ों में बंट चुका है। इसी तरह जो भारतवर्ष कभी विश्वपटल पर धर्म, संस्कार, ज्ञान, विज्ञान और व्यापार में शीर्ष पर था आज स्वयं की चिन्ताओं में घिरा है। जिस भारत में कन्या पूजन की परम्परा थी वहीं आज छोटी बच्चियां बलात्कार की शिकार हो रही हैं।

बलात्कार एक अपराध है और हर अपराध एक कुत्सित विचार से जन्म लेता है। विचार गंदे होते हैं तो गलत संस्कार पड़ते हैं और एक अपराधी एवं अपराध का जन्म होता है। विचारों को कुत्सित और पैशाचिक बनाने का कार्य करता है वामपंथ।

वामपंथ ही वह सोच है जो अयोध्या में राम मंदिर के फैसले पर आपको शर्मिन्दा होना सिखाती है। वामपंथ ही वह सोच है जो आपको स्वयं के भारतीय होने पर शर्मिन्दा कराती है। पीढ़ियों को निकम्मी और नपुंसक बनाने कार्य वामपंथ का है।
कैसे इंग्लैण्ड के कुलीन आभिजात्य वर्ग द्वारा रची गयी वामपंथ की विचारधारा सामाजिक, धार्मिक ताने-बाने एवं आपसी सौहार्द्र पर चोट कर रही है। क्या है वामपंथ की व्याख्या? इस पर बात होगी अगले लेख में।
(लेखक राष्ट्रवादी विचारक एवं भाजपा ओवरसीज, दुबई के पूर्व महासचिव हैं। साथ ही सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका एवं खाड़ी देशों में सामाजिक मुद्दों को लेकर यात्रा कर चुके हैं।)

डिस्क्लेमर : ये लेखक के अपने विचार हैं। बरेलीलाइव या नेशन24 का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।

vandna

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