125 वर्ष पहले स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्मसभा में “विश्व बंधुत्व” का संदेश दिया, उन्होंने भारत के ज्ञान, संस्कृति की श्रेष्ठता से विश्व को परिचित कराया। शिकागो भाषण का आज 125वां वार्षिक दिवस है। 11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में अपने भाषण के जरिये पश्चिम को जिस पूर्व के बारे में बताया था इस भाषण को दुनिया के उन चुनिंदा ऐतिहासिक भाषणों में याद किया जाता है जिसको इतना लंबा अरसा बीतने के बाद भी इतने चाव से याद किया जाता है। बुद्धिजीवियों द्वारा अनगिनत बार इसके गूढ़ अर्थों की व्याख्या की जा चुकी है। स्वामी विवेकानंद ने अपने 39 वर्ष के अल्प जीवन में ही पूरे विश्व के कोने कोने में भारत के नैतिक मूल्यों और हिंदुत्व को पहुंचाया। 125 साल पहले शिकागो में दिया गए उनका भाषण भारत के लिए किसी सांस्कृतिक विरासत से कम नहीं है। स्वामी जी के महान विचार युवाओं और संपूर्ण समाज को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरण देने वाले हैं।
ये हैं स्वामी विवेकानंद के 10 प्रसिद्ध कथन
1. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।
2. उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
3. ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
4. जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं ,उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
5. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
6. कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
7. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
8. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।
9. उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
10. हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।