इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था व उसके रोम से कुष्माण्ड (पेठा) की बेल हुई थी। शास्त्रनुसार पेठा पूजन घर में शांति लाता है। इसी कारण इस दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिए।
इस दिन विधि-विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान के समान फल मिलता है। इस दिन तीर्थ में स्नान करने से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस दिन राधा-कृष्ण की उपासना से सुख व वंश वृद्धि तथा पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति मिलती है।
अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष की करें 108 बार परिक्रमा, तो होगी मनोकामना पूरी
शास्त्रनुसार इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करने से जिस इच्छा के साथ पूजन किया जाता है, वह इच्छा पूर्ण होती है।अतः इस नवमी को इच्छा नवमी भी कहते हैं। शास्त्रनुसार आंवला पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है, अतः अक्षय नवमी को आंवला पूजन से स्त्री अखंड सौभाग्य पाती है। जिससे उसकी आयु व संतान में वृद्धि होती है।
विशेष पूजन विधि: श्री राधा-कृष्ण का विधिवत पूजन करें। गौघृत का दीप करें, चंदन की धूप करें, रोली चढ़ाएं, लाल फूल चढ़ाएं, आंवले का भोग लगाएं। कुष्माण्ड चढ़ाएं तथा इस विशेष मंत्र का 1 माला जाप करें। पूजन के बाद आंवले व कुष्माण्ड किसी ब्राह्मण व ब्राह्मणी को दान दें।
पूजन मुहूर्त: प्रातः 10:00 से 11:30 तक।
पूजन मंत्र: श्रीं वृंदावनेश्वरी राधा क्लीं कृष्णो वृंदावनेश्वर: नमः॥
उपाय: धन वृद्धि के लिए राधा-कृष्ण पर चढ़े चिरमी के बीज तिजोरी में रखें।
पारिवारिक सुख के लिए राधा-कृष्ण पर चढ़ा कुष्माण्ड चौराहे पर रख दें।
संतानहीनता से मुक्ति हेतु राधा-कृष्ण पर चढ़े आंवले का नित्य सेवन करें।
व्रत की पूजा का विधान :-
* नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवलाके वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं।
* इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।
* तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है।
* महिलाएं आँवले के वृक्ष की १०८ परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं।
आँवला नवमी की कथा :-
वहीं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई।
इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी।
जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था, और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
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