नई दिल्ली। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन ने कहा कि हिंदू पक्ष के पास मालिकाना हक का कोई दस्तावेज़ नहीं है और ना ही था। यह वक्फ की संपत्ति अंग्रेजों के समय से है और हिंदुओं ने जबरन अवैध कब्जा किया। धवन ने कहा, “क्यों उन्हें पूजा का और सेवादार होने का अधिकार दिया गया जबकि उनके पास मालिकाना हक नहीं था?”
धवन ने कहा, “मैंने नोटिस किया है कि सुनवाई के दौरान पीठ के सारे सवाल मुस्लिम पक्ष से ही हो रहे हैं, हिंदू पक्ष से कोई सवाल नहीं पूछा गया।” रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इस पर ऐतराज जताते हुए कहा- “यह ग़लत, बेबुनियाद बात है।” धवन ने कहा, “मैं कोई बेबुनियाद बात नहीं कह रहा हूं। मेरी ज़िम्मेदारी बनती है कि मैं पीठ के सारे सवालों के जवाब दूं पर सारे सवाल मुस्लिम पक्ष से ही क्यों हो रहे हैं?” इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह टिप्पणी अवांछित है।
38वें दिन की सुनवाई के दौरान मुस्लम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि विवादित इमारत पर हमेशा से मुसलमानों का कब्ज़ा रहा है। उन्होंने सवाल किया कि जब हिंदू बाहरी हिस्से में राम चबूतरा, सीता रसोई बनाकर पूजा करते थे तो फिर आपका पूरा कब्ज़ा कैसे हुआ?
इस बीच पूजा के अधिकार की अर्ज़ी देने वाले सुब्रमण्यम स्वामी को आगे बैठा देख राजीव धवन ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह जगह वकीलों की है और यहां किसी और को अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि अपने केस की खुद पैरवी करने वाले स्वामी आगे बैठते रहे हैं। राफेल केस में अरुण शौरी भी आगे बैठे थे।
राजीव धवन ने कहा, “पुरातत्व एक विज्ञान है। यह कोई विचार नहीं है। पुरातत्व विभाग का जो नोट सबूत के तौर पर कोर्ट ने स्वीकार किया, उसे कोर्ट द्वारा परखा जाना और भारतीय पुरातत्व सर्वे (ASI) द्वारा उसकी सत्यता साबित किया जाना जरूरी है। इसे मुस्लिम पक्षकारों ने नकारा है। ब्रिटिश सरकार ने मस्जिद के रखरखाव के लिए 1854 से ग्रांट देना शुरू किया था। ये हमारे मालिकाना हक को दर्शाता है। यहां तक कि 1854 से 1989 तक किसी भी हिंदू पक्षकार ने विवादित जमीन पर अपने मालिकाना हक का दावा कोर्ट में नहीं किया।”
धवन ने कहा, “मुख्य मांग यह थी कि मस्जिद का उपयोग नहीं किया जाए। लेकिन, मस्जिद पर अवैध कब्जा किया गया और उसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।“ धवन ने अवैध कब्जे पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया। कहा. “परंपरा और आस्था कोई दिमाग का खेल नहीं है. इन्हें अपने मुताबिक नहीं ढाला जा सकता है।”
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के सवाल पर जवाब देते हुए धवन ने कहा कि 1886 के रिकॉर्ड यह साफ करते हैं कि भूमि किसकी है। प्वाइंट ये है कि इसमें हमारा अधिकार है। जब हिंदुओं की ओर से अधिकार का सवाल 1886 में उठाया गया तब मजिस्ट्रेट ने वह सिविल सूट खारिज कर दिया। लेकिन, रेस ज्यूडी काटा होने के बाद फिर अवैध कब्जे के बाद दावा किया गया।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने राजीव धवन से हिंदुओं के बाहरी अहाते पर कब्ज़े के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि 1858 के बाद के दस्तावेजों से पता चलता है कि राम चबूतरा की स्थापना की गई थी, उनके पास अधिकार था।
धवन ने कहा कि विवादित ज़मीन पर लगातार हमारा कब्जा रहा है। हिंदू पक्ष ने बहुत देर से दावा किया। 1989 से पहले हिंदू पक्ष ने कभी ज़मीन पर मालिकाना दावा पेश नहीं किया। 1986 में राम चबूतरे पर मंदिर बनाने की महंत धर्मदास की मांग को फैज़ाबाद की अदालत खारिज कर चुकी है।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या मुसलमानों का एकमात्र अधिकार होने का दावा करना उनकी दलील को हल्का नहीं करेगा जबकि हिंदुओं को बाहरी आंगन में प्रवेश करने का अधिकार था। धवन ने कहा कि इससे उन्हें अधिकार तो नहीं मिलता। न्यायमूर्ति चंद्रचू ड़ ने कहा कि कई दस्तावेज़ है जो दिखाते हैं कि वह बाहरी आंगन में रहते थे।
धवन ने कहा कि यह दिखाने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं है कि हिंदू बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का मालिक है। भूमि के उपयोग के अलावा कोई अधिकार हिंदुओं को नहीं दिया गया था। उन्हें पूर्वी दरवाजे में प्रवेश करने और प्रार्थना करने का अधिकार दिया गया था।
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