नई दिल्ली। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में संयुक्त रूप से “मोल्डिंग ऑफ रिलीफ” पर अपनी वैकल्पिक मांगें सीलबंद लिफाफे में पेश की हैं। अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने भी “मोल्डिंग ऑफ रिलीफ” पर अपनी वैकल्पिक मांगें सुप्रीम कोर्ट में पेश कर लदी हैं। “मोल्डिंग ऑफ रिलीफ” का मतलब अदालत से यह कहना होता है कि अगर हमारे पहले वाले दावे को नहीं माना जा सकता तो नए दावे पर विचार किया जाए। दरअसल, शीर्ष अदालत ने अयोध्या मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखते समय सभी पक्षकारों को “मोल्डिंग ऑफ रिलीफ” को लेकर तीन दिन में लिखित नोट जमा करने को कहा था।
इस मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भले ही विवादित जमीन पर दावा छोड़ने के लिए तैयार हो लेकिन बाकी मुस्लिम पक्षकार किसी भी समझौते को लेकर तैयार नहीं हैं। मुस्लिम पक्षकारों ने शुक्रवार को बयान जारी कर कहा था कि अब मध्यस्थता के जरिये हल की कोई संभावना नहीं है। उनका यह भी कहना था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के समझौते के मसौदे को मध्यस्थता पैनल ने या फिर बाकी पक्षकारों ने जानबूझकर मीडिया को लीक किया।
मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने बयान जारी कर कहा था, “न हमें, न मुख्य हिंदू पक्षकारों को बुलाया गया बल्कि सिर्फ सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारुकी और धर्मदास ने हिस्सा लिया। पैनल के सदस्य श्रीराम पंचू और ज़फ़र फारुकी में तालमेल नज़र आ रहा है। हम रिपोर्ट से असहमत हैं।” उन्होंने इसके लीक होने के समय पर भी सवाल उठाया। इस तरह अन्य मुस्लिम पक्षकारों ने साफ कर दिया कि जो प्रस्ताव दिया गया है वे उसको स्वीकार नहीं करते।
मुस्लिम पक्षकार का कहना है कि मध्यस्थता में सीमित लोगों ने हिस्सा लिया था। निर्वाणी अखाड़ा से महंत धर्मदास, सुन्नी वक्फ बोर्ड से जफर फारुकी और हिंदू महासभा से चक्रपाणि सहित अन्य दो लोगों ने ही इसमें हिस्सा लिया था। जब हिंदू पक्ष खुले तौर पर कह चुके हैं कि मध्यस्थता में भाग नहीं लेंगे तो आखिर मध्यस्थता कैसे हो सकती है। मध्यस्थता समिति ने जो प्रयास किया था उसमें उनका कोई आदमी शामिल नहीं है।
गौरतलब है कि अयोध्या जमीन विवाद में सुन्नी वक्फ़ बोर्ड के अलावा 6 अन्य मुस्लिम पार्टियां भी हैं- हासिम अंसारी/इकबाल अंसारी, एम. सिद्दीकी, मिसबाहुद्दीन, फारुख अहमद, मौलाना मेहफुजूरह्मान और उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड।