साइबर सिक्युरिटी कंपनी पेन टेस्ट पार्टनर में काम करने वाले एक टेस्टर की सलाह पर लेखक ने एक नया फ़ोन खरीदा और एक बिल्कुल नया सिम लिया।लेखक ने उसमें कुछ नए प्रोफाइल बनाए ताकि पुराने प्रोफाइल या सर्च हिस्ट्री से कुछ भी प्रभावित न हो। लेखक ने एक झूठे नाम से नए जीमेल और फेसबुक आईडी बनाए।फिर लेखक ने अपने फ़ोन का माइक्रोफ़ोन चालू किया और बस ऐसे ही कुछ भी बातें करने लगा।
लेखक ने फिर जैकेट के बारे में बात की. इस बार फ़ेसबुक पन्ने पर तो कुछ नहीं हुआ लेकिन गूगल सर्च में ‘महिलाओं के लिए जैकेट’ ढ़ूंढ़ा तो पहले वही लेस वाला लाल जैकेट दिखाई दिया जिसके बारे में लेखक ने बात की थी।लेकिन जब लेखक ने अपना आईफ़ोन और मैक कंप्यूटर देखा तो वहां भी वही लाल जैकेट पहले दिखाई दिया।अब कुछ और ढ़ूंढ़ने के बारे में सोचा. कहा, “मुझे एक पैरट ड्रोन चाहिए, पैरट ड्रोन. पैरट. ड्रोन.”
इसके बाद जैसे ही लेखक ने’पैर..’ तक टाइप किया सीधे ‘पैरट ड्रोन’ सबसे पहले दिखने लगा, लिखा था ये सबसे अधिक खोजे जाने वाले शब्दों में से एक है।
गूगल की प्रवक्ता एमिली क्लार्क का कहना है कि उनकी कंपनी माइक्रोफ़ोन के ज़रिए कोई भी डेटा इकट्ठा नहीं कहती लेकिन ‘ओके गूगल’ इस्तेमाल करने पर डेटा रिकार्ड किया जाता है।
अपने प्राइवेसी नियमों में कंपनी ने कहा है, “हम किसी की जानकारी नहीं बेचते.” हालांकि कंपनी का कहना है, “वेबसाइट, ऐप्स, वीडियो, विज्ञापन के सर्च और आपकी लोकेशन से संबंधित जो डेटा हम आपके फ़ोन के ज़रिए इकट्ठा करते हैं या फिर अपनी उम्र, नाम या पसंदीदा विषयों का बारे में जो जानकारी आपने हमें दी है उसका इस्तेमाल हम आपको उचित विज्ञापन दिखाने के लिए करते हैं।”
गूगल के साथ काम करने वाले ऐप डेवेलपर्स के लिए जो नियम हैं उनके मुताबिक कंपनी कहती है, “ऐप कौन सा डेटा इकट्ठा करता है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है उसके बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए।”
पेन टेस्ट पार्टनर के डेविड लॉज और केन मुनरो ने बीते साल एक जांच की कि क्या ये वाकई संभव भी है कि फ़ोन आपकी बातें सुन रहा हो।उन्होंने एक ऐसा ऐप बनाया जो फ़ोन के माइक्रोफ़ोन को ऐसेस कर सके और फिर फ़ोन के पास बैठ कर बातें करनी शुरू कर दी।
माइक्रोफ़ोन जो भी सुन पाता उसे वह उसी वक्त एक सर्वर पर भेज देता। डेविड और केन के पास सर्वर का ऐसेस था और वो सभी बातें साफ़ सुन पा रहे थे।इस जांच की मानें तो माइक्रोफ़ोन के ज़रिए बातें साफ़-साफ़ सर्वर तक उसी वक्त पहुंचती हैं।
पैट्रिक वार्डल एनएसए और नासा में काम कर चुके हैं और अब साइनेक साइबर सिक्युरिटी कंपनी की रिसर्च शाखा के निदेशक हैं। वो अपने खाली समय में मैक कंप्यूटर के लिए ऐप बनाते हैं। उनका बनाया एक ऐप है ‘ओवरसाइट’ जो जब भी कोई सॉफ्टवेयर आपके फ़ोन या कंप्यूटर का माइक्रोफ़ोन और वेबकैम इस्तेमाल करने की कोशिश करता है आपको बता देता है।
मैंने पैट्रिक से पूछा कि क्या फ़ेसबुक, गूगल इंस्टाग्राम फ़ोन के माइक के ज़रिए आपकी बातें सुनते हैं।
उनका कहना था, “मुझे आश्चर्य होगा अगर ऐसा है तो, क्योंकि इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी। लेकिन हां, कुछ और ऐप ऐसा कर सकते हैं और इसके अपने ख़तरे ज़रूर हैं।”
पैट्रिक ने मुझे कैलीफोर्निया के बास्केट बॉल टीम गोल्डन स्टेट वॉरियर के ऐप के बारे में बताया। कथित तौर पर ये ऐप ‘लोगों की इजाज़त के बिना लगातार बातें सुनता रहता था।’
ऐप की तकनीक बनने वाली कंपनी सिग्नल 360 के मुख्य कार्यक्रारी अधिकारी के अनुसार “हम कोई डेटा या फ़ोन पर की जाने वाली बात ना तो सुनते हैं और ना ही स्टोर करते हैं।” मामला फिलहाल कोर्ट में है।
पैट्रिक के ऐप ‘ओवरसाइट’ का इस्तेमाल करने वाले एक व्यक्ति ने दावा किया कि मैक ऑपरेटिंग सिस्टम शाज़म ऐप लॉग ऑफ़ होने के बाद भी माइक्रोफ़ोन के ज़रिए रिकॉर्डिंग करता है।
पैट्रिक ने शाज़म से इस बारे में पूछा। कंपनी ने माना की वो ऐसा करती है लेकिन इसका मकसद ऑपरेटिंग सिस्टम को बेहतर बनाना है।
साल 2015 में एक अख़बार ने लिखा था कि सैमसंग का स्मार्ट टीवी आपकी बातें सुन सकता है।
सैमसंग की प्राइवेसी पॉलिसी में इस बारे में लिखा है, “आपकी बातों में संवेदनशील जानकारी हो सकती है और आपकी बातों के ज़रिए जो डेटा इकट्ठा किया जाता है वो थर्ड पार्टी तक पहुंच सकता है।”
सैमसंग ने बाद में सफाई दी कि वो ख़ुद ना तो ऑडियो डेटा स्टोर करते हैं, ना ही उसे बेचते हैं, लेकिन उन्होंने पुष्टि की, “यदि उपभोक्ता ख़ुद वॉयस रिकग्निशन के लिए हामी भरे तो ये डेटा थर्ड पार्टी तक, सर्वर तक पहुंचता है।”
लेकिन ये आशंका हमेशा बनी रहती है कि कोई भी आपके फ़ोन का माइक्रोफ़ोन या वेबकैम हैक कर ले. पैट्रिक कहते हैं “साधारण तौर पर हर सिस्टम को हैक किया जा सकता है.” इस तरह के कई मामले देखने को मिलते हैं।
पैट्रिक आईओएस ऐप और एंड्रॉएड ऐप के बीच में फर्क बताते हैं। वो कहते हैं, “आईओएस में जब भी कोई ऐप माइक्रोफ़ोन इस्तेमाल करना चाहता है वो यूज़र से इजाज़त मांगता है।लेकिन एंड्रॉएड ऐप में मामला अलग है।ऐप इंस्टॉल करते समय ही इस सभी बातों की इजाज़त देनी होती है।
वो कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि लोग ‘ओके’ करने से पहले इतना सब पढ़ते होंगे।”
ऐप में माइक्रोफ़ोन को बंद करना आसान है।आईफ़ोन पर आप सेटिंग्स में जा कर प्राइवेसी में जाएं और माइक्रोफ़ोन ‘ऑफ़’ कर दें।
एंड्रॉएड में थोड़ी मेहनत ज़्यादा लगेगी। आप एंड्रॉएड पर हैं तो सेटिंग्स में और फिर प्राइवेसी में जाएं।यहां हर ऐप के लिए दिए गए अनुमति को देखें और बदलें।
मोटा-मोटा कहें तो काफी ऐप्स हमारी बातें सुन सकते हैं और ऐसी तकनीक मौजूद है। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं चाहते तो थोड़ी सावधानी बरतें और ऐप पर मइक्रोफ़ोन के इस्तेमाल की परमिशन पर ज़रूर ध्यान दें।
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